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Ajay Sharma

Drama

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Ajay Sharma

Drama

लेखक मत बनो

लेखक मत बनो

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बचपन में कहानियों का शौक फिर प्रेमचंद और मंटो को पढ़ने के बाद, कॉपी के पिछले पन्ने से निकल कब उन्ही की तरह सरल और बेबाक लिखने की इच्छा हो गयी, पता ही नही चला।

जहाँ आज के बच्चे डॉक्टर, इंजिनियर, IAS, IPS, बैंक, ssc की बात करते हैं। वहीँ मैं एक लेखक बनना चाहता हूँ। ये बात पापा से कैसे कहूँ ?बड़ी दुविधा थी मन में, उपर से समाज का डर कि लोग क्या कहेंगे?हालाँकि कहेंगे सब की ज़िन्दगी में वही करो जो तुम्हारा मन करे, पर जब मन की करने जाओ तो लोग हजार तरह की बातें करनी शुरु कर देंगे।

मेरी समस्या भी कुछ ऐसे ही थी क्यूंकि मैं एक ऐसे पेशे से जुड़ने की बात कर रहा था जिसके बारे में जानते तो सब हैं, पर नही जानते। किसी तरह हिम्मत जुटा निकल पड़ा बात करने। सामने पापा बैठे टीवी देख रहे थे और मैं अब भी दुविधा में बस उन्हें ही देख रहा था।

हिम्मत जुटाकर बोल पड़ा-“पापा..”

“हाँ बोलो...”

“मैं लेखक बनना चाहता हूँ और आगे का समय मैं लिखने में लगाना चाहता हूँ। ”

“क्या ! लेखक, वो भी फुल टाइम ?”

“हाँ....”

“लेखक बन के क्या करोगे ? किस्से कहानियाँ लिखोगे?कहानियाँ लिख कर पेट पालोगे, अपना घर चलाओगे ?”

फिर वही हुआ जो हर बाप करता है।

“बकहानियों से सिर्फ मन बहलते हैं, पेट नही भरा करता। ये कहानी लिखना कोई काम नही, ये तो बस शौक होता है। इसमें कोई करियर नही, खास करके हमारे देश में। यहाँ किताबें कम, सिनेमा और विडियो ज्यादा चलते हैं।

“पर पापा...सिनेमा और वीडियोस के लिए भी एक कहानी की जरुरत होती है। उसको भी एक लेखक ही लिखता है। ”

मेरी बात काटते हुए बोले, “अच्छा चलो मेरे कुछ सवालों के जवाब दे दो फिर मैं सोचूंगा। मान लो तुमने एक किताब लिखी जिसे लिखने में तुम्हें ३ महीने लग गये। ऐसे 6 महीने या साल भर भी लग सकते हैं। इतना वक़्त देने के बाद उस किताब को तुम खुद के पैसों से छपवाओगे। फिर तुम्हारी किताब चल गयी तो ठीक है लेकिन मान लो तुम्हारी किताब नहीं चली, तब ? सबसे पहला वक़्त बर्बाद, एक चवन्नी की भी आमदनी नहीं होगी उस दरमियाँ और छपवाने में तुम्हारे ही पैसे जायेंगे वो अलग। अब इतना सब होने के बाद मुझे बताओ, तुम घर कैसे चलाओगे ?”

एक पिता होने के नाते उनका ये सोचना भी सही था।

 “सच कहूँ तो मेरे पास अभी आपके सवालों के जवाब नहीं हैं। मैं किताबें लिख के कितना कमाऊंगा ?, कैसे ज़िन्दगी बिताऊंगा ? मैंने नही सोचा क्यूंकि मुझे तो लिखने में मजा आता है। बड़ी ख़ुशी होती है जब मैं कोई कविता या कहानी लिखता हूँ। बड़ा सुकून मिलता है।”

बात काटते हुए पापा फिर बोल पडे, "लेकिन सुकून से परिवार नहीं चलता बेटा, रोटी और रुपयों से चलता। तुम्हें खुद नहीं पता की उन सवालों के जवाब क्या है ? इसीलिए कहता हूँ कुछ और कर लो ताकि अपने आने वाले कल और परिवार के लिए कुछ कर सको। बेटा, बहुत सारे लेखक है जिसे दुनिया जानती तक नहीं। उनकी किताबें किसी बुक स्टाल की शोभा बढ़ा रही है। तुम्हारी किताब भी किसी बुक स्टाल में सजी मिलेगी बस...इसीलिए कहता हूँ कुछ और कर लो, पर लेखक मत बनो। ”

बड़ी दुविधा में था – क्या करें ?, क्या ना करें ?

पर मैं आज तक उन्हें बिना बताये लिखता रहा ताकि कुछ अलग कर सकूँ, ताकि मैं लेखक बन सकूँ, ताकि अपने मन का कर सकूं....


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