STORYMIRROR

Anamika Sachdeva

Abstract

3  

Anamika Sachdeva

Abstract

लालच

लालच

1 min
529

यह जीवन भी है कैसा

यहां इंसान को चाहिए है हरदम पैसा

पैसे की खातिर इंसान बन गया हैवान

छोड़ दी लोक लाज, शर्म और बन गया बेईमान


काले धंधो के बनाए उसने अड्डे

और दुनिया में खड़े किए अपने नाम के झंडे

पैसे के खातिर इस पैसे की खातिर

बहू को दिया जला बेटों को खड़ा किया बाजार


बेटों की लगाते बोली बेटों का करते व्यापार

अरे ओ इंसान यह दो दिन की जिंदगानी

फिर तू करता है बेईमानी किसकी खातिर


मरने पर तेरे कोई न साथ होगा

दो गज कफन का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।


Rate this content
Log in

More hindi story from Anamika Sachdeva

Similar hindi story from Abstract