लाइब्रेरियन
लाइब्रेरियन
" दिमाग जगह पर तो है तुम्हारा ? तुम इन जैसी औरतों को शेल्टर दोगी और उनकी आवाज़ भी बनना चाहती हो.. तुम लाइब्रेरियन हो एक साधारण सी, कोई महान समाज सुधारक नहीं " पुनीत का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था।
"हाँ याद है मुझे की मैं एक लाइब्रेरियन हूं और मुझे पता है हर एक किताब जिसका किसी की बुक शेल्फ में सजने का सपना था और जो अब घंटे दिनों के लिए किसी की होकर आती है उन सारी किताबों के पास एक अलग सी कहानी भी होती है। वो कहानी जो वो सुनाना चाहती है और मैं उन्हें आवाज़ देकर सिर्फ अपने लाइब्रेरियन होने का फर्ज अदा करने जा रही हूं। " श्वेता अपने दिमाग में चल रहे सवालों के उतार चढ़ाव को विराम दे चुकी थी।