Saroj Prajapati

Inspirational

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Saroj Prajapati

Inspirational

क्या तुम परफेक्ट हो?

क्या तुम परफेक्ट हो?

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"हर बात में बहस ! हर बात का जवाब है तुम्हारे पास! चुप रहना तो तुम ने सीखा ही नहीं है! पता नहीं क्या सोच कर घर वालों ने तुम्हें मेरे गले बांध दिया। पहले दिन ही मुझे पता चल गया था तुम मेरे लिए इंपरफेक्ट हो!आज ही तुम्हारे पापा को फोन करूंगा कि या तो आकर तुम्हें समझाए या वापस ले जाए । एक साथ हमारा गुजारा संभव नहीं !" कहते हुए उसने हाथ में पकड़ा चाय का कप फेंक दिया और उठकर ऑफिस चला गया।


तभी उसकी सास आई और बोली "बहू तुझे तो पता है ना उसका गुस्सा! चुप रहा कर। एक चुप्पी सौ झगड़ों को खत्म करती है। पर तुझे समझ नहीं आता। चला गया ना भूखा ऑफिस!" कह वह भी मुंह बनाती हुई बाहर निकल गई।गीता के लिए यह कोई नई बात नहीं। जब से इस घर में आई है। यही सब नाटक और इंपरफेक्ट वाला डायलॉग सुनती आई है।


आंखों में कितने सपने संजो, दो वर्ष पहले निलेश की पत्नी बन वह इस घर में आई थी। देखने में आकर्षक व सजीला नौजवान था निलेश। अच्छी नौकरी , घर बार सभी सही था । मायके वाले व सभी रिश्तेदार उसे देख उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे।गीता भी तो कितनी खुश हुई थी, उससे पहली बार मिलकर। कितना शांत सौम्य व्यक्तित्व। लेकिन सब फरेब!!शादी के अगले ही दिन उसकी ननदों ने उसको समझाते हुए कहा था "देखो भाभी निलेश वैसे तो बहुत अच्छा है। हर काम में तुम्हारा सहयोग करेगा लेकिन बस थोड़ा गुस्से वाला है ।उसका अपने गुस्से पर काबू नहीं तो थोड़ा चुप रह जाना।"


पहले दिन ही ऐसी बात सुन कितना डर गई थी वह। फिर उसने सोचा शायद वह मजाक कर रही होंगी । लेकिन उसका सोचना गलत निकला । निलेश छोटी-छोटी बातों पर अपना आपा खो देता। उसे पसंद नहीं था कि कोई उसकी बात को काटे । शुरू शुरू में तो गीता यह सोच चुप रही कि वह अपने व्यवहार द्वारा उसे बदल देगी। वह उसे प्यार से बदलने की कोशिश भी करती थी। इसी बीच वह प्रेग्नेंट हो गई। उसे एक उम्मीद बंधी कि शायद पिता बनने के बाद निलेश बदल जाए। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उसकी आदतें वही रही। इसलिए गीता ने भी निश्चय कर लिया था कि वह उसे अपनी चुप्पी का गलत फायदा उठाने नहीं देगी। वह अब उसकी हर गलत बात का खुलकर विरोध करती। जो उसे सहन नहीं होता था।


1 दिन वह ऐसे ही तोड़फोड़ कर चिल्ला रहा था। तब गीता ने विरोध करते हुए कहा कि " निलेश ये क्या तुम हर बात पर मुझे इंपरफेक्ट इंपरफेक्ट बोलते रहते हो ! दूसरे पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबान में झांको!! क्या तुम परफेक्ट हो!! मुझे भी गुस्सा आता है और चिल्ला मैं भी सकती हूं। लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी । इसका मतलब यह मत समझना कि मैं तुम से डरती हूं। मैं चुप हूं तो बस इसलिए कि मेरे संस्कार मुझे ऐसा करने से रोकते हैं। मुझ में अपनी गलत बात को स्वीकार करने की हिम्मत है । घर की बातें घर में रहे तो अच्छा है। बाहर निकलते ही वह तमाशा बन जाती है और पढ़ी लिखी मैं भी तुमसे कम नहीं। चाहूं तो आज भी तुमसे अच्छी नौकरी मिल सकती है मुझे! लेकिन मैं अपने बच्चे की वजह से ‌चुप हूं। हां अगर तुम्हारा यही रवैया रहा तो मुझे भी कुछ सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा!! आगे तुम समझदार हो ही!!"


गीता का यह रूप देख निलेश के चेहरे का रंग उड़ गया और उस दिन के बाद कभी उसने गीता को इंपरफेक्ट कहने की हिम्मत नहीं दिखाई।




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