कुंडली नहीं दिल मिलाइए !
कुंडली नहीं दिल मिलाइए !
"जिसके पांचवे स्थान में गुरु पडा हो उसका स्वभाव विलासी एवं आरामप्रिय होता है। वह श्रेष्ठ वक्ता, कल्पना प्रिय कवि और लेखक होता है। पुत्र के कारण उसे धन प्राप्ति होता है परन्तु जीवन में इसे कठोर संघर्षों के बीच से गुज़रना पड़ता है। ऐसा व्यक्ति आस्तिक ,ज्य्पोतिषी,लोकप्रिय ,सट्टेबाजी से धन प्राप्त करने वाला, संतति वान और हाँ नीति विशारद भी होता है। "पंडित रामेश्वर दयाल ज्योतिषाचार्य अपने ही पुत्र आनन्देश्वर की कुण्डली देख कर अपनी पत्नी को बता रहे थे। उनकी पत्नी पार्वती देवी शांत भाव से सब कुछ सुन रही थीं।
"आहि ऐ दादा ! सब कुछ बनि जाय लेकिन तुहरा जइसन ज्योतषी ते नहीए बने हमाँर बेटा ! 'पार्वती देवी ने उत्तेजित होकर कहा।
पंडित रामेश्वर दयाल हो - हो करके हंसने लगे। बोले-
" अब उसका पत्रा , जन्म पंचांग जो कह रहा है मैं वही तो तुमको बता रहा हूँ भागवान ! "पंडित जी बोले।
"नाहीं .... नाहीं ! कतो नाहीं। खबरदार जो पंडित जी आपने उसको ज्योतिष का ज्ञान दिया ! "बडबडा उठीं पार्वती देवी।
दस साल का उनका अकेला बेटा था। बेटा होते ही पंडिताइन ने पंडित जी को अस्पताल की राह दिखला दी थी। बोली थीं-"हमके लाइन नाहीं लगवावे के बाय। "
पंडित जी भी अपने ज्योतिष विद्या के सहारे जीवन चलाते आ रहे थे। यह सच है कि वैभव विलास के सामन वह नहीं जुटा पाए थे लेकिन जजमान लोग उनको भूखे भी नहीं रहने देते थे। किसी के यहाँ से दूध चला आया करता था तो किसी के यहाँ से अनाज। नकद धनराशि वैसे कम ही मिलती थी लेकिन लोगों की उन पर अपार श्रद्धा थी। इधर शहर आने जाने के भी मौके उनको मिलने लगे थे। शहर वाले तो दान दक्षिणा के नाम पर रूपया पैसा ही पकडाया करते थे। पंडित जी बहुत ही मितव्ययी थे और जो कुछ भी मिलता घर आकर पंडिताइन को सुपुर्द कर दिया करते थे।
उनका पुत्र आनन्द सचमुच शांत और स्थिर स्वभाव वाला था। गाँव के ढेर सारे अन्य लडकों से हट कर। उसका मन साहित्य पढने में , पूजा पाठ करने में और गाँव में होने वाले पूजा पाठ या भागवत पुराण के आयोजनों में हिस्सा लेने में लगा रहता था।
इस साल उसने हाई स्कूल का इम्तेहान दे दिया था और अब उसको शहर में ही अपनी आगे की पढाई करने के लिए जाना था। पंडित दम्पति थोड़ा इस बात से चिंतित थे कि अगर आनन्द रोज साइकिल की पैडल मार कर गोरखपुर पढने जाएगा तो उसका तो सारा दिन आने जाने में ही निकल जाया करेगा। वह पढ़ेगा क्या ? इसलिए वे दोनों इस जुगाड़ में थे कि कोई जजमान उनके बेटे को अपने यहाँ शहर में अगर रख ले तो उसकी पढाई ठीक से हो जाय।
पंडित जी इन दिनों शहर में जहां भी जाते थे जजमान के सामने अपनी यह दरखास्त ज़रूर लगाया करते थे। एक दिन भगवान् ने उनकी सुन ली। गाँव के पास के ही एक वकील साहब को उनके बेटे पर तरस आ गई और उन्होंने अपने घर में अपने साथ इस ब्राम्हण बच्चे को रखने की सहमति दे ही दी।
गरमी की छुट्टियाँ समाप्त होते ही हाई स्कूल बोर्ड के रिजल्ट आ गए। कला विषयों को लेकर आनन्द प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो गया था। ख़ुशी खुशी पंडित जी एक शुभ मुहूर्त देखा कर सारी आवश्यक तैयारियों के साथ आनन्द को शहर में वकील साहब के घर लेकर आ गए।
आनन्द के लिए शहर का वातावरण गाँव से एकदम उलटा लगा। मोहल्ले के बच्चे हाई- फाई मिले। कोई सीधे मुंह बात ही नहीं कर रहा था। उसकी उम्र के बच्चे बोलचाल में फर्राटे से अंग्रजी में बातचीत किया करते थे और वह भौचक होकर उनके मुंह ताकता रहता था। हाँ घर के ठीक सामने एक सोनार की हमउम्र बेटी तारिका ने अवश्य उसको अपने साथ बातें करने और खेलने का आमन्त्रण दे दिया। आनन्द को अब जाकर थोड़ा सा शहर की आबो - हवा में खुशी दिखी। वह स्कूल जाता और लौट कर देर शाम तक तारिका और उसकी सहेलियों के साथ खेला करता था। मुहल्ले के और बच्चे उसकी अब खिल्ली उड़ाने लगे थे। उसको कोई फर्क नहीं पड रहा था।
वकील साहब की पत्नी का स्वभाव वकील साहब से इतर था।
उनके खुद के तीन बेटे और एक बेटी थी। ठीक है, गाँव से राशन पानी आ जाया करता था किन्तु सिर्फ राशन पानी से ही तो घर नहीं चला करता है ! पांच छह महीने होते होते उनको अब आनन्द का खाना खिलाना खटकने लगा था। एक दिन वकील साहब से बोल बैठीं-
"तुमने इस लड़के को यहाँ रख कर मेरी घर गृहस्थी का खर्चा और बढ़ा दिया है। ना कुछ करता है ना धरता है। बस स्कूल जाना और आकर के खेलने निकल जाना उसका काम है। आखिर जब मुफ्त में खा पी रहा है तो उससे कुछ घर की जिम्मेदारी भी उठवावो। वकील साहब कुछ बोले नहीं।
अगले दिन से वकील साहब की पत्नी ने आनन्द को हुक्म दिया कि अब वह सुबह उठ कर सबसे पहले ग्वाला के यहाँ से अपने सामने जाके दूध ले आयेगा। आनन्द ने अपनी दिनचर्या उसी के अनुकूल बदल ली। अब वह भोर में ही उठ कर ग्वाले के यहाँ पहुंचा जाया करता था। कुछ दिन तो ठीक चला लेकिन उसके बाद कभी भैंस का दाना पानी लेट होने से दूध लगने में देर हो जाया करती थी तो कभी और कारणों से। उसका असर आनन्द के स्कूल जाने पर पड़ने लगा।
एक दिन जब उसके बाबू जी उससे मिलने आये तो आनन्द ने अपनी इस दिक्कत को उनके सामने रखी। पंडित जी ने कोई एनी विकल्उप न होने का हवाला देकर उसको प्यार से समझा बुझा कर अपनी पढाई के लिए इन सब व्यवस्थाओं के अनुरूप अपनी दिनचर्या चलाने को कहा। लेकिन यह बात आनन्द को कुछ जमी नहीं। असल में आनन्द को यह महसूस होने लगा था कि वकील साहब की पत्नी को उसके वहां रहने से असुविधा होने लगी है। कई अवसरों पर उसमें और अपने बेटे बेटियों में वे जब अंतर लाने वाली सिचुएशन क्रियेट करती थीं तो आनन्द को और भी बुरा लगा करता था। वह मन मसोस कर रह जायाकर्ता था।
हाँ अकेले में वह "अपना टाइम आयेगा ,आयेगा ,आयेगा "बुदबुदाता रहता।
भगवान् ने यदि हमें पैदा किया है तो उसने हमारे बारे में सोच भी रखा है। हम भूखे प्यासे ना रहें लेकिन हम अकर्मण्य भी ना होने पायें इसका पक्का इंतज़ाम भी उसने कर रखा है। आनन्द का इस बार इंटर फाइनल का एक्जाम था। वह जी तोड़ मेहनत कर रहा था कि हाई स्कूल की तरह इस बार भी उसका फर्स्ट क्लास आये। इधर वकील साहब की पत्नी का सर से ऊपर पानी हो चुका था। वह एक एक दिन गिन रही थीं कि कब यह लड़का वापस अपने गाँव चला जाय। हालांकि आनन्द की खुराक बहुत ज्यादा नहीं थी और अब तो वह एक नौकर की तरह शाम को सब्जी और घर का सामान आदि भी ले आने लगा था।
लेकिन वकील साहब की पत्नी उससे खुश नहीं रहा करती थीं। एक शाम आनन्द ने यह बात अपनी दोस्त तारिका से बताई और इसका समाधान पूछा। तारिका बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि की थी। उसने कहा कि वह उसे कल कोई रास्ता बताएगी।
तारिका ने अपनी माँ को जब ये सारी बातें बताईं तो उसकी माँ को भी बहुत दुःख हुआ।
किसी तरह दिन बीतता रहा और अब परीक्षाओं के भी दिन आ गए। पूरी रात जाग जाग कर आनन्द ने अपनी तैयारियां कीं। पेपर ठीक हो रहे थे की एक शाम तारिका ने उसे अपने साथ अपनी माँ से मिलवाया। उसकी मां ने उसके आगे के प्लान के बारे में पूछा तो आनन्द ने विस्तार से अपनी दिक्कतें बतलाईं कि वह आगे भी अपनी पढ़ाई तो जारी रखना चाह रहा है लेकिन उसके आवास की दिक्कतें हैं। तारिका की माँ ने उसे आगे की पढ़ाई करने के लिए अपने आउट हाउस में रहने की इजाजत दे दी। आनन्द की खुशी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। उसे लगा कि ये लोग कितने हमदर्दी से उसके साथ पेश आये।
इंटर बोर्ड की परीक्षा में आनन्द ने उस स्कूल में 94 प्रतिशत अंक पाकर टाप किया। अब उसके माँ - बाप की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। यूनिवर्सिटी में उसने एडमिशन ले लिया और यह संयोग बना कि तारिका के भी दो सब्जेक्ट उसके साथ ही थे। वे दोनों भावनात्मक रूप से एक दूसरे के करीब आते जा रहे थे। एक दिन उन दोनों ने एक दूसरे के प्रति अपने भाव की अभिव्यक्ति भी कर डाली।
ऐसा अक्सर होता है कि जो दिखाई देता और महसूस होता है वह सच नहीं होता है और जो महसूस नहीं होता है और दिखाई भी नहीं देता है वही सच होता। अब भला पंडित रामेश्वर दयाल और उनकी पत्नी पार्वती देवी सपने में भी सोच सकती थीं कि उनका भला मानुष ,सीधा- साधा , संस्कारी लड़का किस तरह धीरे - धीरे कैशोर्य अवस्था से युवावस्था में जाकर अपने जीवन साथी के रूप में एक सोनार की लड़की के सपने देखने लगा है ? कतई नहीं साहब। असंभव। लेकिन यही तो विधाता का अजब खेला है। पंडित रामेश्वर दयाल पोथी पत्रा लेकर लाख ज्योतिष बांचें , कितनो माथापच्ची करते रहें लड़का तो हाथ से गया।
एम.ए करके उसने रिसर्च के लिए अप्लाई किया और यू.जी.सी की स्कालरशिप भी मिल गई। उधर गांव पर उसके बाबूजी और मां उसके लिए रिश्तों की जांच पड़ताल कर रहे थे कि एक दिन किसी ने बताया कि उसने तो शहर में आनन्द को किसी लड़की के साथ देख लिया था। अब तो मानो पंडित परिवार पर पहाड़ टूट पड़ा। आनन फानन में पंडित रामेश्वर दयाल शहर पहुंचे और बेटे से उस बारे में पूछताछ की।
बेटे ने बिना कुछ छिपाये सारी बात बता दी और यह भी कि वह शादी करेगा तो तारिका से।
पंडित जी को चक्कर आ गया। भारी मन से गांव लौटे और पंडिताइन को आनंद के निर्णय से अवगत कराया। दोनों सदमें में चले गये।
लेकिन उधर आनन्द भी दुखी था। मां बाप को हर्ट नहीं करने का उसका इरादा था। एक सुबह अचानक गांव पहुंच गया । उसने पहले मां को समझाया कि मां,अगर कुंडली मिलान हो भी जाय और बेटे बहू का आपस में दिल न मिले तो क्या तुम दुखी नहीं होगी ?मां,अब समय बदल रहा है। जाति,धर्म से हम सबको ऊपर उठना ही होगा।
आनन्द की मां पार्वती देवी ने हरी झंडी दे दी और आगे चलकर पंडित जी को भी उनके निर्णय पर अपनी मुहर लगानी पड़ गई। पंडित जी भी अब मानने लगे हैं कि कुंडली, रंग, वर्ण, जाति नहीं सच्चे और दीर्घायु वैवाहिक जीवन के लिए दिल मिलना ज़रुरी है।
आत्मकथ्य -समय तेजी से बदल रहा है। युवा सामाजिक क्रांति कुछ ध्वजवाहक हैं। मेरी कहानी का नायक अपनी शादी गैर बिरादरी की लड़की से करके बदल रही बयार की ओर इशारा करता है।
