कुम्हारन कलावती
कुम्हारन कलावती
गली के नुक्कड़ पर एक कुम्हारन बुढ़िया का घर था। उधर से गुजरते हुए याद आया कि तीन दिन बाद तो दिवाली है क्यों न थोड़े से दीये ले चलूं। कॉलेज से आते जाते कुम्हार पट्टी रास्ते में पड़ती थी। मैं अक्सर बूढ़ी कुम्हारन कलावती अम्मा से बात कर लिया करती थी ।
इसलिए मुझे देखते ही बोली बिटिया दीये लेते जाओ दिवाली के लिये। अम्मा की आवाज़ सुनकर मैं उनके टूटे से घर की तरफ मुड़ गई।
वहां देखा कलावती अम्मा छोटे छोटे मिट्टी के दीयों में रंग भर रही थी। मैंने पूछा - अम्मा और सुनाओ कैसा चल रहा है ? अम्मा तुरंत आँखों को चमकाती हुई बोली बिटिया बहुत वर्षों के बाद लक्ष्मी जी हम से खुश हुई हैं इस बार तो हम भी दिवाली मना सकेंगे। मैंने झट से पूछा तो इस बार तुम्हारे दीये काफी अधिक बिके हैं। हाँ बिटिया कोई कह रहा था कि अपने देश का धन अपने देश में ही रहेगा। हम तो इसका मतलब नहीं समझते पर हमें तो इतना पता है कि इस बार मेरे पोता- पोती ,बहु -बेटे सब दिवाली पर भरपेट भोजन कर सकेंगे। इस बार हम भी कह सकेगें कि हमने दिवाली मनाई है पिछली बार तो बट्टा ही लग गया था। मुश्किल से सौ दीये ही बिके थे। हमारी लागत भी न निकली थी। अब तक तो यह दिवाली हम गरीबों का दिवाला निकालती थी। हमें तो पहली बार दिवाली आने का एहसास हो रहा है। भगवान राम इसी तरह लोगों को सद् बुद्धि देते रहेंगे तो रामराज्य भी जल्दी ही आ जाएगा। हमारा भी भला होगा । बिटिया हम लोग भी तो तुम लोगों की तरह जीना चाहते हैं इतनी मेहनत करते हैं पर दो समय भरपेट खाना भी नहीं खा पाते हैं। मैंने कलावती अम्मा से कहा- अम्मा उदास मत हो इस बार की दिवाली तुम हमारे साथ मनोगी। वह देखो मोड़ पर सीधे हाथ की तरफ मेरा घर है तुम सब बच्चों को लेकर मेरे घर आना। हम लोग मिलकर पूजा करेगें और पकवान खाएगें। तभी चार पांच साल के पोता बोल पड़ा अम्मा मैं भी जाऊंगा। मैंने उससे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा हां तुम जरूर आओगे। मुझे देर हो रही थी मैंने अम्मा को डबल दाम देकर पचास दीये ख़रीद और पुनः अम्मा से आने का कहकर अपने गंतव्य पर चल दी।
इस बार की दिवाली मेरे लिए अनोखी थी कलावती अम्मा अपने परिवार के साथ पाँच बजे मेरे घर पहुंच गई थी हम सबने मिलकर एक साथ पूजा की, अम्मा के बनाएं दिपक जलाएं। अपने हाथ से बने दीयों को जलता देख अम्मा की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए। मैंने समझाया अम्मा अब तुम हर साल दिवाली मनाओगी, चिंता मत करो। देर से समझ आया पर अब भारतीयों को समझ आ गया है। हम सब ने एक साथ खाना खाया फिर अम्मा व बच्चों को कुछ उपहार देकर विदा किया। अम्मा आज से पहले इतनी खुश कभी न हुई थी। जाते समय मुझे और मेरे परिवार को ढेरों आशीर्वाद देकर गई। मेरी यह दिवाली मेरे जीवन की कभी न भूलने वाली दिवाली थी ।