Goldi Mishra

Tragedy Inspirational Others

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Goldi Mishra

Tragedy Inspirational Others

कुछ नए लोग

कुछ नए लोग

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कड़ाके की ठंड की रात थी। दिसंबर का महीना था। मैं अपनी धर्म पत्नी सुनीता के साथ रात का खाना खा कर बैठा था। सुनीता कमरे की लाइट बंद करके बिस्तर पर सोने चली गई । मुझे नींद नही आ रही थी। मैने एक किताब उठाई और अपना चश्मा लेकर मैं बाहर बरामदे में आ गया। करीब दो घंटे बाद दरवाजे पर एक दस्तक हुई। सुनीता की नींद भी खुल गई थी वो उठी और बाहर आ गई। हम दोनो परेशान हो गए इतनी रात गए कौन आया होगा। सुनीता ने दरवाजा खोला और हमने देखा की दरवाजे पर चार लोग थे। वे घबराए हुए थे। दरवाजा खुलते ही वे बोले – " हमे घर में शरण दे दीजिए। सुबह होते ही चले जाएंगे। कृपया हमारी हालत समझे "। वे काफी साधारण लोग थे। और उनका छोटा बेटा काफी घायल था। हमने उन्हे अंदर बैठाया और मैने उनसे पूछा की – " आप लोग कौन है? और ये बच्चा घायल कैसे हुआ? " । तभी वो महिला बोली – " हम शरणार्थी है, आपके पड़ोसी देश में भारी युद्ध चल रहा है हम वही रहते थे पर कल रात हमे हमारा मुल्क छोड़ना पड़ा। और हम यहां शरण लेने आ गए । पर जब आपके मुल्क की पुलिस को हमारे बारे में पता चला तो उन्होंने हम पर हमला कर दिया। उस दौरान ही मेरे बेटे रशीद को चोट लगी। " महिला मौन हो गई। मैने सुनीता को देखा सुनीता ने मुझे एक राहत की मुस्कुराहट के साथ कहा –" हमे इनकी मदद करनी चाहिए "। सुनीता ने उन सबको खाना खिलाया और रशीद की मलहम पट्टी भी की। और उन सबको सोने के लिए पीछे आंगन का कमरा दिया। 

अगली सुबह सुनीता ने सुबह की चाय और बिस्कुट मेज पर रखे हमने उन सबको भी बुलाया जो कल रात हमारे घर आए थे। सबने चाय पी । चाय पीते पीते उस महिला के पति जिनका नाम यूसुफ था उन्होंने कहा – " हम कहा जाए आप बता दीजिए। क्योंकि हम अपने मुल्क तो नही जा सकते। " 

मैने उन्हे समझाया और कहा – " मै इस जिले का उच्चस्तरीय सरकारी अधिकारी हूं। और मैं आपको और आपके परिवार को सही सलामत एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दूंगा " । 

मैने अपने सहभागी को फोन लगाया और उनसे बात की की वे जल्दी दिल्ली में एक किराए के घर का इंतजाम कर दे। मैने यूसुफ और उनके परिवार की जानकारी छुपाए रखी वरना मकान मिलना मुश्किल हो जाता। शाम को मेरे सहभागी ने दिल्ली में एक घर ढूंढ लिया और मुझे सूचना दी । रात तक मैने गाड़ी का इंतजाम करवाया और खुद यूसुफ जी के परिवार को दिल्ली छोड़ कर आया। मकान ठीक था किराया भी ठीक था

। पर यूसुफ जी को चिंता थी की अब वे गुजारा कैसे चलाएंगे। मैने उनकी चिंता दूर की और यूसुफ की को 5000रुपए दे दिए उन्होंने लेने से काफी मना किया पर मैने उन्हे दे दिए और कहा–" इनसे इस महीने का राशन पानी चल जायेगा और मैने आपके लिए एक सरकारी विभाग में गार्ड की नौकरी की बात कर ली है अब आपको रोजगार की चिंता करने की जरूरत नही है। " यूसुफ जी के परिवार ने मुझे खुदा का मसीहा कहा और वे बोले की मै उनके लिए खुदा से बढ़कर हूं । थोड़ी देर रुककर मैं वापस अपने घर आ गया। सुनीता को मैने बताया कि वे सब अब दिल्ली में सुरक्षित है । हम दोनो ने शाम की चाय पी। 

मेरे मन में एक ही सवाल था क्यूं आखिर सरहदों ने इंसानियत को खत्म कर दिया था। सरहद के दोनो ओर इंसान ही रहते है जिनके पास दिल है जज़्बात है जिनके परिवार है। यूसुफ जी के परिवार से मिलकर एक अजीब अपना पन सा लगा था।


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