एक लम्हा जो लौटा नहीं
एक लम्हा जो लौटा नहीं
मैं दसवीं के बाद 11वीं कक्षा में आई। सब कुछ नया सा था नए लोग हर चीज नई। ना जाने क्यूं इस नई कक्षा में किसी से मेरी सोच नही मिलती थी ना ही मेरा कोई दोस्त बन पाया। फिर कुछ माह बाद एक नई लड़की का कक्षा में दाखिला हुआ। मैं पहली बेंच पर अकेली बैठी थी। वो आई और मेरे पास बैठी। उसने पूछा " क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूं?" मैने कहा "हा"। उस पहले दिन ही ऐसा लगा मानो कोई ऐसा मिला जो मुझे समझेगा। हम दोनो ने बहुत सारी बातें की। धीरे धीरे दोस्ती और गहरी हो गई। साथ खाना खाना स्कूल के बगीचे में बैठना घंटों बातें करना। साथ पढ़ना आदि सब हमने किया। कक्षा के बच्चों ने कई बार हमारी हसी भी उड़ाई। पर हम लोगों ने इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया।
12 वीं कक्षा में जब हम आए चीजें बदलने लगी। उसने मुझसे दूर रहना शुरू कर दिया। जब मैंने इस बदलाव की वजह पूछी तो उसने कहा" कुछ महीनों बाद हम अलग होजाएंगे फिर तुम कही और मै कही और तो क्यों ना अभी से अलग रहने का अभ्यास हम करे ताकि आगे तकलीफ ना हो। " मैंने उसे कहा कि" छोड़ो इन बातों को जीतने भी पल है उनको जीना चाहिए कल क्या होगा इसकी फिकर में नहीं जीना चाहिए"। हम दोनो ने साथ में ज्यादा वक्त बिताना शुरू कर दिया ताकि हमारे पास यादें हो भविष्य में याद करने के लिए।
अंतिम दिन आ गया स्कूल का। सब एक दूसरे को गले लग कर अंतिम बिदाई दी रहे थे। मैं भी उसके गले लग कर बहुत रोई। वो मेरे मुश्किल वक्त का साथी थी उसने मुझे समझा था।
स्कूल समाप्ति के बाद अब हम दोनो ने कालेज में दाखिला ले लिया। वो कही और है और मै कही और। उसने मेरा फोन मैसेज आदि सब का जवाब देना बंद कर दिया। वो शायद अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गई है नए दोस्त मिल गए हो शायद उसे। पर मेरे लिए वो आखरी दोस्त थी जिसपर मैंने खुद से ज्यादा यकीन किया था। पर अब वो मेरे साथ नहीं है सिर्फ उसकी दी यादें है मेरे साथ उम्र भर के लिए। क्या पता हम कही टकराए फिर से।