Goldi Mishra

Children Stories

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निराली चली मेले

निराली चली मेले

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निराली को अपनी दुकान लगानी हैं मेले में जिसके लिए वह सुबह से तैयारी में लगी हैं। शहर जाकर उसे मेले में अपनी दुकान लगानी हैं।वह बहुत उत्सुक थी।)–ठुमक ठुमक कर चली निराली। दबा कर कमर में घर की चाबी। कभी इधर चले कभी उधर चले। सर पर अपनी टोकरी धरे। 

तभी उसे उसका दोस्त मंकू मिलता हैं,जो की एक बंदर हैं । और वो उससे पूछता हैं कहां जा रही हो निराली।) बंदर ने पूछा कहां चली, बिल्ली नाक चढ़ाती बोली मैं मेले चली मैं तो मेले चली मैं मेले चली। जाती हूं मैं शहर दूर बहुत हैं ,अब बात न कर मुझसे मुझे काम बहुत हैं। इठलाती बल खाती, ठुमक ठुमक कर चली निराली। चली जो वो थोड़ी दूर, प्यास लगी जोर की क्योंकि बहुत तेज़ थी धूप ,झटपट उसने टोकरी खोली,घट घट पानी की बोतल पी ली,। याद आया तभी मेले में भी तो जाना हैं,अपनी रंग बिरंगी टोकरी भी तो दिखाना हैं। झट पट सरपट निराली भागी, आसमान से बातें करती निराली भागी।

अरे..जाऊंगी मैं मेले, मैं जाऊंगी शहर अकेले, अरे देखो देखो, मेरी टोकरी देखो, बड़ी बड़ी गलियां और लंबी लंबी इमारत हैं, मेरा गांव हैं छोटा सा और शहर बहुत बड़ा हैं, शाम होगी जैसे मैं घर चली जाऊंगी, इतनी दूर मां से मैं ना रह पाऊंगी, नई गली नया शहर, चलते चलते हो गईं दोपहर,)

  अब निराली शहर आ चुकी हैं। गांव से इतनी दूर पहली बार आई थी ना तो डर रही थी।) टेड़ी डगर मेड़ी डगर हर कोई कभी ऐसे घूरे कभी वैसे घूरे ,हर कोई धुर धुर घूरे निराली की टोकरी देखे।गांव से शहर आ गई निराली, थर थर कांप गई निराली।

अब निराली मेले में पहुंच गईं हैं। और अब उसे अपनी दुकान लगानी हैं। )तभी मेले में पहुंची निराली, थोड़ी थोड़ी खुश हुई निराली,। अपनी झांझर छनकाती, अपना लहंगा पकड़े बस चलती जाती।एक कोने में जा रुकी, वहीं अपनी दुकान लगा ली।चम चम करती अपनी टोकरी उसने खोली। ले लो ले लो लाल नारंगी गोली ले लो वो बोली।खट्टी मीठी तीखी ले लो। अरे ताज़ी ताज़ी ले लो।एक रुपए दस रुपए,और धीरे धीरे बड़ गए रुपए, । टोकरी उसकी थी खाली,बांध के टोकरी घर को चल दी निराली। और कैसे चली…ठुमक ठुमक कर चली निराली। दबा कर कमर में घर की चाबी। कभी इधर चले कभी उधर चले।


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