कुछ अधूरे यादगार लम्हे
कुछ अधूरे यादगार लम्हे
यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है।
सुबह सूरज निकला चिड़िया चहकने लगी सभी टहलने निकले कुछ व्यक्ति टहल रहे थे। मैं भी गया उधर से एक लड़की आई मुझे देखकर हँस कर चली गई। मैं सारी रात उसी के बारे में सोचा पर मैं क्या करता। क़यामत को तो देखो अगले दिन हम दोनों को फिर से मिला दिया।
उनसे बात कि कुछ अलग प्यार सा होने लगा। मुझे कुछ समझ नहीं आया। लेकिन बिना उसके मन नहीं लगता उसकी तस्वीर को देखता था तो दिल धड़कने लगता था। फिर सब कुछ अच्छा हो गया लेकिन किस्मत का कसूर। हम दोनों को एक न एक दिन अलग करवा दिया।
" वह पूरी होकर भी अधूरी रह गई"
ऐसे कुछ यादगार पल हैं। जिसे भुला कर भी हम भूल नहीं सकते।
कुणाल वर्मा

