कटी उंगलियां भाग 8

कटी उंगलियां भाग 8

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कटी उँगलियाँ भाग 8


अगले दिन मोहित रोज की तरह बाइक से ऑफिस के लिए निकल पड़ा लेकिन चार फर्लांग दूर जाकर बाइक एक दुकान के आगे पार्क कर दी और कोने में छुपकर प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी देर में ही उसका परिश्रम सफल हुआ। रचना इमारत के नीचे दिखाई पड़ी। वो तीर की तरह एक दिशा में बढ़ी मानो कोई यंत्र हो! उसकी भाव भंगिमा मोहित को अस्वाभाविक मालूम पड़ी। वो सावधानी पूर्वक रचना का पीछा करने लगा। रचना सीधे चलती-चलती श्मशान पर जा पहुंची और बेधड़क अंदर घुस गई। मोहित का सर्वांग काँप उठा। हर श्मशान की तरह यहां भी एक शिव मंदिर था। रचना ने शिवलिंग के दर्शन किये और वापस लौट गई।मोहित सावधानी से उसका पीछा करता रहा पर रचना सीधे अपने घर आ गई तो मोहित चकरा गया। उसने वहीं से फोन करके पूछा, हाय रचना! कहाँ हो? 
रचना नाराज हो गई, ये क्या रोज का लगा रखा है मोहित? घर में हूँ और कहाँ रहूंगी? जब से गए हो सोफे पर बैठी टी वी देख रही हूँ। अब मोहित का दिमाग चकरघिन्नी हो गया। वो तुरंत घर पहुंचा। उसे देखते ही रचना हैरान हो गई। तब मोहित ने उसे सारा किस्सा बताया और अपने मोबाइल से चोरी से ली गई उसकी तस्वीर भी दिखाई जिसमें वो श्मशान में शिवजी की पूजा कर रही थी तो रचना एकदम घबरा गई और फ़ूट-फूट कर रोने लगी। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। यह बातें तो मोहित की समझ से भी बाहर थी पर वो इतना समझ गया था कि कोई अनजानी शक्ति रचना पर हावी थी जिसके कारण रचना अचेतावस्था में घर से निकली थी। कहीं वो शक्ति रचना से कोई गलत काम न करवा ले यह सोच कर मोहित बेहद डर गया।
दो दिन बाद रचना को झाड़ू लगाते समय फिर अखबारी पुड़िया मिली जिसे उसने बिना खोले कूड़े में फेंक दिया क्यों कि वे दोनों जानते थे कि उसमें क्या होगा। उसी रात को मोहित सोया था कि अचानक उसे अपनी गर्दन पर दबाव महसूस हुआ उसने अचकचा कर आँखें खोली तो पाया कि रचना विकराल रूप धारण किये उसका गला दबा रही है। उसकी आँखें ऊपर की ओर उलटी हुई थीं और बाल हवा में लहरा रहे थे। उसका रूप बहुत भयानक दिखाई पड़ रहा था। मोहित ने दोनों हाथों से रचना की कलाइयां पकड़ लीं पर रचना अपार बल सहित उसका गला दबोचे रही। आखिर हार कर मोहित ने एक जोरदार घुटना उसके पेट में मारा तो वो कराह कर उलट गई और उसके होशो हवास जाते रहे। मोहित अपना गला सहलाते हुए हांफता-सा पड़ा रहा। थोड़ी देर बाद रचना को होश आया तो वो सामान्य थी पर मोहित से बोली, मोहित! पता नहीं क्यों आज पेट दर्द कर रहा है। मोहित केवल उसे घूरता रहा कुछ बोला नहीं। रचना रह-रह कर किसी अज्ञात शक्ति के वश में आ जाती है यह वो समझ चुका था। उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। आखिर करे तो क्या करे। खान बाबा ने भी दो हजार रूपये ले लिए थे और स्थिति बिगड़ती ही जा रही थी। उसने रचना का पेट सहलाना शुरू किया तो वो सो गई पर मोहित की आँखें खुली ही रही। कहीं फिर रचना कोई उत्पात न कर दे वो यही सोचता रहा। मोहित हमेशा घोड़े बेचकर सोता था। एक बार नींद लग जाए तो भूकंप ही उसे उठा सकता था लेकिन इस घटना के बाद नींद आ ही नहीं रही थी। उसने देखा कि रचना गहरी नींद में थी। उसका एक पुराना सा स्मार्ट फोन उसकी बगल में पड़ा था। अनायास ही मोहित ने रचना का फोन उठा लिया और समय बिताने के लिए उससे खेलने लगा। फोन में स्क्रीनलॉक लगा हुआ था तो फोन खुला नहीं। मोहित यूँ ही किन्ही ख्यालों में गुम नौ गोल बिंदियों पर आड़ी तिरछी रेखाएं खींचता रहा कि अचानक किसी कॉम्बिनेशन से फोन खुल गया। मोहित ने गैलरी ओपन की और सारी तस्वीरें देखने लगा। विवाह के बाद की अनेक तस्वीरें थी। हनीमून पर माउंट आबू की कई तस्वीरे, आबू झील के किनारे बोटिंग की कतार में, विश्व प्रसिद्द देलवाड़ा मंदिर के प्रांगण में जहाँ की पच्चीकारी अद्भुत है। मोहित देर तक उन तस्वीरों को जूम कर के देखता रहा। अचानक उसके ध्यान में एक ऐसी बात आई जिसने उसके रोंगटे खड़े कर दिए।

कहानी अभी जारी है...

पढ़िए भाग 9


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