कटी उंगलियाँ भाग 7

कटी उंगलियाँ भाग 7

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कटी उँगलियाँ  भाग 7


          लगभग एक घंटे बाद ऑफिस पहुंचकर मोहित ने रचना को फोन किया। इस बार तुरंत कॉल रिसीव हुई और दूसरी ओर से रचना का मीठा स्वर सुनाई पड़ा तब मोहित की जान में जान आई। कहाँ हो यार! अनजाने में ही मोहित चीख पड़ा। 
अरे! घर में ही हूँ और कहाँ रहूंगी ,रचना बोली ,बात क्या है?मतलब अभी तुम कहाँ चली गई थी रचना? मोहित ने पूछा जवाब में रचना ने जो कहा उसे सुनकर मोहित को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, वो बोली, कहीं भी तो नहीं! जब से तुम गए हो मैं पलंग पर लेटी एक किताब पढ़ रही हूँ जी। 
मोहित को लगा मानो वो पागल हो जाएगा। लेकिन भरसक अपने स्वर को संयत बनाकर बोला, ठीक है शाम को आकर बात करता हूँ। फिर दिन भर मोहित का मन काम में नहीं लगा। अगर रचना कह देती कि वो किसी काम से बाज़ार गई थी तो वह साधारण बात समझता लेकिन जब अपनी आँखों से उसने पूरा घर देखा और रचना वहां नहीं थी तब रचना ने इस बात से इनकार क्यों किया यह बात उसकी समझ से परे थी। 
शाम को घर पहुंचकर मोहित ने रचना से इस बारे में बात की तो फिर रचना ने वही दोहराया जो फोन पर कहा था। तो मोहित बोला, रचना! तुम्हे पता है? मैं आधे रास्ते से घर वापस आया था क्यों कि मैं जरुरी फ़ाइल ले जाना भूल गया था पर तुम घर में नहीं थी। 
इतना सुनकर रचना की आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गई ,अरे! क्या बात करते हैं आप? मैं एक मिनट को भी घर से नहीं निकली आप गए तब से ही घर पर हूँ। मोहित ने अपना माथा पीट लिया। ये क्या हो रहा था? कैसा इंद्रजाल उसके आगे फ़ैल रहा था? आधी रात हो चुकी थी। रचना करवट लिए एक अबोध बच्चे की तरह सो रही थी पर मोहित की आँखों से नींद कोसों दूर थी। उसने यह रहस्य खुद सुलझाने का निश्चय किया और सोने की कोशिश करने लगा। 

कहानी अभी जारी है...

पढ़िए भाग 8 


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