कटी उंगलियां भाग 10

कटी उंगलियां भाग 10

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कटी उंगलियाँ भाग 10


क्या उसकी पत्नी किसी और के साथ चक्कर चला रही थी? कौन था ये श्याम? अभी उँगलियों वाली बला दूर नहीं हुई तब तक यह झंझट आ खड़ा हुआ। मोहित ने अपने स्तर पर जांचने का फैसला किया। उसने ऑफिस से तीन दिन की छुट्टी ले ली पर रचना को बताया कि तीन दिन के लिए ऑफिस के काम से पूना जाना है। बाकायदा कपडे लत्ते पैक किये और घर से निकल कर दादर पहुंचा जहां से पूना के लिए शिवनेरी बसें चलती थी। उसने बाकायदा टिकट लेकर पूना की बस पकड़ी। वातानुकूलित बसों में टिकट के साथ पानी की छोटी-सी बोतल और अखबार मुफ़्त मिलते हैं। उसने पूरी बोतल पी ली और अखबार से मुंह ढँक कर सो गया। वो नहीं जानता था कि जब से वो घर से निकला है तब से दो जोड़ी आँखें साये की तरह उसका पीछा कर रही हैं। जब बस रवाना हो गई तब उन आँखों में चमक आ गई। उसने संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और मोबाइल निकाल कर कान से सटा लिया और किसी से बोलता हुआ वहाँ से चल पड़ा। 
         इधर लगभग पौने घंटे बाद बस पनवेल के निकट पहुंची जहाँ मोहित बस से उतर पड़ा। बसस्टॉप पर ही उसका ऑफिस का मित्र दिनेश अपनी बुलेट मोटरसाइकिल लिए खड़ा था। दोनों ने पहले ही बात तय कर रखी थी। मोहित उसकी बुलेट पर सवार हो गया और दिनेश ने यू टर्न मारकर बुलेट फिर मुम्बई की दिशा में दौड़ा दी। दिनेश मंगलौर का रहने वाला था। उसका पूरा नाम दिनेश पुजारी था। उसकी अभी शादी नहीं हुई थी तो वो अकेला एक परिवार में पेइंग गेस्ट के रूप में रहता था। उसका बाकी का परिवार मंगलोर में ही रहता था। मोहित का बैग उसने अपने घर पर रख दिया और दोनों मोहित के घर की ओर उड़ चले। 
       कांदिवली के अपने घर के पास पहुंचकर मोहित ने दिनेश को घर का दरवाजा दिखा दिया और खुद वहां से कुछ दूरी पर स्थित एक बार में जाकर बैठ कर एक कोल्ड्रिंक का ऑर्डर देकर धीरे-धीरे चुसकने लगा। यहां दिनेश को कोई नहीं जानता था। काफी देर की प्रतीक्षा के बाद दिनेश का फोन आया। फोन पर उसने कुछ भी न होने की सूचना दी। मोहित निराश हो गया। क्या यह कवायद व्यर्थ जायेगी? क्या रचना निर्दोष है और वो अपने भ्रम के चलते बिना मतलब शक कर रहा है? 
वो बार में बिल चुका कर उठा और बोझिल क़दमों से दिनेश की ओर बढ़ने लगा। अभी वह आधी दूर पहुंचा था कि मोबाइल पर रचना का नंबर चमकने लगा। मोहित ने उठाया तो रचना बोली, पूना पहुँच गए जानू?
मोहित बोला, अभी नहीं थोड़ी देर में पहुँच जाऊँगा। 
ओके! अपना ध्यान रखना! कहकर रचना ने फोन काट दिया। 
तुरंत ही दिनेश का फोन आया कि रचना कहीं जाने के लिए घर से निकली है। 
मोहित - ओके दिनेश। सावधानी से वॉच करते रहो। 
फिर रिपोर्ट देना। वो अस्वाभाविक तो नहीं लग रही?
नहीं मोहित! दिनेश बोला, वो एक दम नार्मल है। खूब सजी धजी भी है। 
ओके! मोहित ने कहा और फोन काट दिया। 
रचना, कैफे कॉफी डे में श्याम के साथ बैठी थी। खूब हंस हंस कर बातें की जा रही थी। कुछ दूरी पर कार के पीछे छुपा मोहित मानो अंगारो पर लोट रहा था। दिनेश टोह लेने के लिए रेस्टोरेंट के अंदर गया पर उनके आसपास कोई जगह न मिलने के कारण वापस लौट आया। मोहित ने उसे साथ लिया और अपने घर की ओर चल दिया। घर की एक चाबी हमेशा मोहित के पास ही रहती थी। मोहित ने डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोला और जाकर घर में छुप गया। दिनेश को उसने जाने को कहा। दिनेश जाना नहीं चाहता था पर मोहित ने परिस्थिति संभाल लेने का आश्वासन देकर उसे विदा कर दिया। लगभग एक घंटे बाद दरवाजे पर खटपट की आवाज सुनकर मोहित चौकन्ना हो गया। दरवाजा खोलकर रचना और श्याम भीतर दाखिल हुए और श्याम जूते उतार कर पलंग पर लेट गया और रचना बाथरूम में चली गई। फिर वो हाथ मुंह धोकर जैसे ही पलंग पर आकर बैठी कि परदे के पीछे छुपा मोहित निकलकर उनके सामने आ खड़ा हुआ। रचना का चेहरा मानो बर्फ सा सफ़ेद पड़ गया। तो ये हैं तुम्हारे लक्षण? निगाहों से आग बरसाता मोहित बोला। मोहित ने आगे बढ़कर एक तमाचा रचना को रसीद किया इतने में श्याम ने लपक कर दरवाजे की ओर भागना चाहा तो मोहित ने उसे लंगी मार दी। वो लड़खड़ा कर गिरा तो मोहित ने उसपर छलांग लगा दी और दोनों गुत्थम गुत्था हो गए। मोहित मुक्केबाज था लेकिन श्याम भी कम शक्तिशाली नहीं था उसपर काबू पाने में मोहित के औसान ठिकाने आ गए। इसके पहले कि मोहित श्याम को मार-मार कर बेदम कर देता रचना ने वजनी फूलदान मोहित के सिर पर दे मारा उसकी निगाहों के आगे चाँद सितारे चमकने लगे और वो बेसुध होकर जमीं पर गिर पड़ा। 

कहानी अभी जारी है...

पढिए भाग 11 


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