कतार
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"अभी और कितनी दूर चलना होगा माँ?" राहुल ने धीमे स्वर में कहा। "बस बेटा अब थोड़ी ही देर में पहुंचने वाले हैं " ऐसा कहते हुए उसने अपना आँचल अपने बेटे के सर पे रख दिया ताकि उसे धूप न लगे। "कितना अच्छा होता ना अगर पापा आज हमारे साथ होते ,मैं उनके कंधे पर बैठ जाता और तुम्हारी गठरी भी वही उठा लेते, पर वो तो..... " राहुल अचानक कुछ कहते-कहते रुक गया। फिर थोड़ा साहस करके उसने कहा "माँ तू तो कहती थी बाबा ने अपनी जान देश के लिए कुर्बान की है , तो फिर आज लोग हमारी मदद क्यों नहीं कर रहे है ?" थोड़ा रुकते हुए उसने फिर कहा " माँ चल न उस सरकारी बाबू के घर में जिसने हमें मदद देने का वादा दिया था "। माँ ने बात बदलने की कोशिश करते हुए कहा " तू ये सब छोड़ , पहले ये बता की तूने अपनी किताबें तो साथ में रख ली है ना ?" राहुल ने उत्साह के साथ कहा "माँ तू चिंता मत कर ,मैं अब अपनी पढाई का ध्यान खुद रख सकता हूँ "। "अच्छा अब इतना बड़ा हो गया है मेरा बेटा " उसके सर से फिसलते आँचल को सँभालते हुए माँ ने कहा। " तू चिंता क्यों करती है ,मैं खूब मन लगा के पढाई करूंगा , बड़ा आदमी बनूँगा " राहुल ने कहा। आस पास चलने वाले माँ-बेटे की बात को बड़े ध्यान से सुन रहे थे। एक बूढ़े बाबा ने कहा " क्या करोगे बड़े आदमी बनकर ?" । राहुल ने बूढ़े बाबा की ओर देखते हुए कहा " अपनी माँ के लिए एक बड़ा घर लूँगा , और उसमे 4-4 नौकर रखवाऊंगा। " 4 नौकरों से क्या करवाओगे ?" बूढ़े बाबा ने फिर राहुल से सवाल किया। "मेरी माँ हमेशा दूसरों के घर का काम करती रहती है , मेरे साथ कभी चैन से बैठती ही नहीं , चार नौकर रहेंगे तो मैं आराम से अपनी माँ के साथ बैठ सकूंगा" आत्मविश्वास के साथ राहुल ने उत्तर दिया। पीछे से एक बस सरपट दौड़ी चली आ रही थी। उसके हॉर्न की आवाज़ सुनकर कुछ पैदल यात्री बस की तरफ लपके। राहुल के पैर भी अब जवाब दे रहे थे। उसने बड़ी उम्मीद से अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा " माँ चल न बस में बैठ जाते हैं , जल्दी घर पहुंच जाएंगे। उसकी ये बात सुनकर माँ भी अचंभे में पड़ गयी। बस एक आखरी पायल बची थी जिसे बेचकर वो सफर के लिए कुछ खाने का सामान जुटा पाई थी। उसने अपने बेटे से कहा " बस के किराये के लिए पैसे नहीं है बेटा , तू मेरी गोद में आजा "। राहुल कुछ क्षण के लिए निराश हो गया फिर अचानक अपने बस्ते में से एक डब्बा निकाला और कहा " माँ क्यों ना हम इसे देकर बस में चढ़ जाए, पिताजी के जाने के बाद वैसे भी ये किसी काम का नहीं है"। उसके हाथों में वीर चक्र देखकर वो चौंक गयी और तुरंत उसके हाथों से वो छीन लिया। अपने बेटे को चुपचाप गोद में उठाकर वो चलने लगी। मन इस चिंता में डूबा हुआ था की अब उसके झोले में बस एक ही रोटी बची हुई थी, आज शाम में तो वह अपने बेटे की भूख को शांत कर देगी। पर कल सुबह क्या होगा इसी के बारे में सोचते हुए वो चली जा रही थी। फिर आधे घंटे बाद एक ज़ोर की आवाज़ उनके तरफ बढ़ने लगी। राहुल जो आधी नींद में था अचानक उठा और आसमान की ओर देखते हुए बोला " माँ वो देख हेलीकॉप्टर से कुछ गिर रहा है , ज़रूर खाने की कोई चीज़ होगी। अपनी माँ की गोद से उतरकर वो हेलीकॉप्टर की ओर भागा। उसकी माँ भी उसके पीछे पीछे दौड़ी चली आ रही थी। राहुल के मन में कई सवाल उठ रहे थे की आखिर खाने में कौनसी स्वादिष्ट चीज़ मिलेगी , जो भी होगी कमसे कम सूखी रोटी से तो बेहतर ही होगी। पास पहुंचने पर राहुल का उत्साह अचानक शोक में बदल गया। वो अपनी माँ की ओर रोते हुए भागा और उसके पैरो से लिपटकर कहने लगा " ये लोग फूल क्यों गिरा रहे हैं माँ ? मैं फूल कैसे खाऊंगा ?" उसके भूख को समझते हुए माँ ने आखिरी रोटी उसे देदी। राहुल ने पुछा " माँ तू नहीं खाएगी ?" . माँ ने कहा " तू खा ले आज मेरा मंगलवार का व्रत है"। राहुल ने आधी रोटी खायी और आधी वापस अपने बस्ते में रख दी। अब वो अपनी माँ से थोड़ा आगे चलने लगा। चलते-चलते अचानक वो ज़मीन पे गिर पड़ा। उसे गिरते हुए देख आस-पास के लोग अचानक वह जुट गए। अपने बेटे को गिरता देख वो तुरंत उसके पास भागते हुए पहुंची। कोई तुरंत वह पानी की बोतल लेकर पहुंच गया। राहुल को थोड़ा पानी पिलाया और उसे जगाने की कोशिश करने लगी। पर राहुल का शरीर कोई जवाब ही नहीं दे रहा था। उसे उठाकर वो तुरंत अस्पताल की ओर भागने लगी। रास्ते में कुछ कैमरा वालों ने उसे भागते देखा तो वही से लाइव टेलीकास्ट शुरू कर दिया। ढलते सूरज के साथ-साथ राहुल की सांसें भी अब जवाब दे रही थीं। अस्पताल अब ज़्यादा दूर नहीं था। भागते-भागते माँ को महसूस हुआ की राहुल कुछ कहना चाहता था। उसे सुनने के लिए उसकी माँ थोड़ी देर रुकी और उसके मुख के पास अपने कानों को ले गयी। राहुल ने कहा " मैं अब बाबा के पास जा रहा हूँ " . इतना कहते ही उसका शरीर बेजान पड़ गया। अस्पताल पहुंचने पर पता चला की इतनी धूप के वजह से उसे हीटस्ट्रोक हो गया था। राहुल अब इस दुनिया में नहीं था। अपने पति को खोये हुए अभी एक साल भी नहीं हुए थे और उसका इकलौता सहारा भी उससे छिन गया था। कैमरा वालों की तो अब भीड़ सी लग गयी। जिस औरत को पूछने वाला कल तक कोई नहीं था अब वो सुर्ख़ियों में थी। डाक्टरों ने सहानुभूति तो बहुत दी पर एक एम्बुलेंस नहीं दिलवा सके। विवश होकर उसने अपने बेटे को अपनी गोद में वापस उठाया और अपने घर की तरफ चल दी। कैमरा वाले कुछ दूर तक उसकी तस्वीर लेते रहे फिर अपनी अपनी गाड़ी में बैठकर चल दिए। इंसानों की भीड़ तो थी वहाँ पर, लेकिन इंसानियत शायद कहीं खो गयी थी। अपनी अमानत को संभाले वो अपने जीवन के सबसे लम्बे सफर की ओर चल पड़ी थी। उसे देखकर कोई ये अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था , की वो अपने हाथों में समृद्ध समाज की भेंट लिए जा रही थी।