इंदर भोले नाथ

Drama

2.5  

इंदर भोले नाथ

Drama

कसुर किसका ?

कसुर किसका ?

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750


“भाई साहब 9:00 बजे वाली पैसेंजर चली गई या अभी है”, मैंने अपने पास ही खड़े एक सज्जन से पूछा।


उन्होंने कहा “नहीं भाई साहब अभी नहीं गई है बस कुछ ही देर में आने वाली है” थोड़ी देर बाद ट्रेन आ गई, डब्बा खाली था पैसेंजर ज्यादा नहीं थे इसलिए हमें बैठने को सीट मिल गई। जिस सीट पर मैं बैठा हुआ था ठीक उसके सामने वाली सीट पर एक बुजुर्ग बैठे हुए थे, जिनकी उम्र तकरीबन 55 साल की होगी। ट्रेन चल पड़ी मैं पॉकेट से अपना मोबाइल निकाल कर देखने लगा, तभी वो बुजुर्ग जो मेरे सामने वाली सीट पर बैठे हुए थे। मुझसे पूछे, “बेटे कहाँ तक जाओगे आप”


मैंने उनको बताया “चाचा जी बस बेगूसराय तक जाना है”


फिर वो बोलें, “अच्छा, क्या नाम है तुम्हारा”


“जी जयांश नाम है हमारा जयांश दूबे”


“अच्छा तुम्हारा भी नाम जयांश ही है”


मैंने पूछा “तुम्हारा भी से मतलब किसी और का भी नाम है क्या जयांश दूबे”


फिर उन्होंने कहा “हाँ मेरे साले साहब का एक लड़का है उसी का नाम है जयांश, और इत्तेफाक से हम भी दूबे ही है इसीलिए उसका भी नाम जयांश दूबे ही है। बहूत ही अच्छा नाम है, मेरे साले साहब का नाम है जयप्रकाश और उनकी पत्नी का नाम है अंशिता इसीलिए उन्होंने अपना और अपनी पत्नी का नाम जोड़कर अपने लड़के का नाम जयांश रखा”


“मेरे साले साहब के शादी के कई सालों बाद कोई लड़का नहीं हुआ, न जाने कितने मंदिरों के चक्कर लगायें, कितनी मन्नतें मांगी ऊपर वाले से, तब जाकर कई सालों बाद जयांश पैदा हुआ। मुझे आज भी याद है जब जयांश पैदा हुआ था, तब उसके पिता दूबे जी कितना खुश थे। पूरे गांव में उन्होंने मिठाई बंटवाई थी। दूबे जी के घर लड़का हुआ है, यह बात सुनकर पूरा गांव खुश था, जो भी सुनता बड़ा ही खुश होता और यही कहता है कि चलो भगवान ने आखिर दूबे जी की भी सुन ली। बड़े अच्छे इंसान है दूबे जी सबका भला ही चाहते है।


समय बीतता गया और धीरे-धीरे दूबे जी का लड़का जयांश बड़ा होता गया। पढ़ने में भी बढ़ा ही तेज था। पढ़ाई हो या खेल कूद हर चीज में रुचि रखता था। एक तरह से यह भी कहा जाए कि बड़ा ही तेज तरार और इंटेलिजेंट था उनका लड़का जयांश। 18 साल गुजरने के बाद बड़े ही अच्छे अच्छे घरों से जयांश के लिए रिश्ते आने लगे। दूबे जी और उनकी पत्नी अपने बेटे जयांश की शादी के सपने सजाने लगे। कई रिश्ते आए पर दूबे जी की एक ही इच्छा थी, कि भैया हमें रुपया पैसा दान दहेज नहीं चाहिए बस लड़की अच्छी चाहिए, जो गुणवान और सुशील हो जो हमारे घर में आए तो हमारा घर स्वर्ग बना दे।


एक दिन एक रिश्ता आया किशनपुरा से, दूबे जी ने रिश्तेदारों की खूब आव भगत की। लड़की के पिता लड़की का फोटो भी लेकर आए हुए थे। फोटो देखते ही दूबे जी को लड़की पसंद आ गई और उन्होंने कहा कि “ठीक है हमें तो लड़की फोटो में सही लग रही है। अब जल्दी से एक दिन निकाल के हमारे साथ साथ लड़का और लड़की भी एक दूसरे को आमने सामने से देख ले। फिर जब सब कुछ ठीक रहा तो शादी का मुहूर्त निकाल लेते है”


शादी वाले दिन नजदीक आ गये। दोनों परिवारों में बड़ा ही खुशी का माहौल था, खासकर दूबे जी के यानी जयांश के पिता बहूत ही खुश थे। समय गुजरा और शादी वाला दिन आ ही गया। बड़े धूमधाम से दूबे जी ने अपने बेटे जयांश की शादी की। बहू को विदा कराकर अपने घर लेकर आए, घर में बहूत ही खुशी थी। सारे रिश्तेदार आए हुए थे घर में स्वर्ग जैसा माहौल हो गया था सभी के चेहरे पर खुशियां थी।


दो-तीन दिनों तक तो रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहा, फिर धीरे-धीरे सारे रिश्तेदार अपने अपने घर चले गए। हम भी अपने घर आ गए थे, अचानक एक सुबह हमें खबर मिली कि जयांश की पत्नी ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली है। फिर मैं और मेरी पत्नी भागे भागे दूबे जी के घर पहुंचे। वहाँ जाकर देखा पूरे घर में मातम छाया हुआ था और पूरे गांव के लोग हैरान थे। अभी तो शादी के 7- 8 दिन भी नहीं गुजरे हुए थे और यह क्या हो गया? अभी कुछ दिनों पहले जिस घर में इतनी खुशियां और चहल पहल थी, आज इस कदर मातम में कैसे बदल गई? आखिर क्यों दूबे जी की बहू ने आत्महत्या कर लिया, जबकि दूबे जी और दूबे जी का पूरा परिवार बड़ा ही नेक और दिलखुश इंसान है।


जयांश की पत्नि के मरने की खबर उसके मायके पहुंची तो उसके माता पिता भी आ गए और उन्होंने दूबे जी और और उनके पूरे परिवार के ऊपर यह आरोप लगाया कि इन लोगों ने ही मेरी बेटी को मारा है। उनके नाम मुकदमा दर्ज करा दिया। फिर क्या था पुलिस आई और अपनी कारवाही की और पूरे परिवार को जेल हो गई।


दूबे जी और उनका पूरा परिवार लाख सफाई देता रहा कि हम ऐसा क्यों करेंगे, अगर हमें दहेज के लिए उत्पीड़न करना ही होता और अपनी बहू को मारना ही होता तो हम शादी से पहले ही आपसे बहूत सारा दहेज मांगे होते। जबकि हमने तो आपसे एक रूपया भी दहेज नहीं लिया था। हम पर गलत आरोप लगाया गया है, दूबे जी और उनका पूरा परिवार रोता गिड़गिड़ाता रहा, लड़की के पिता से और प्रशासन से, पर किसी ने उनकी एक बात न सुनी। दूबे जी और उनके पूरे परिवार को जेल भेज दिया गया।


दूबे जी और उनका पूरा परिवार एक ऐसे जुर्म की सजा काट रहे है, जिस जुर्म को उन्होंने किया ही नहीं था। दूबे जी और उनके पूरे परिवार के सजा होने के दो महीने बाद हमें पता चला कि लड़की किसी और से प्यार करती थी। जिस कॉलेज में वो पढ़ती थी, उसी कॉलेज के एक लड़के से लड़की को प्यार हो गया था। जब यह बात लड़की के पिता को पता चली तो उन्होंने लड़की की शादी करने का मन बनाया, जब की लड़की ने बहूत ही विरोध किया था।


“पापा मैं किसी और से प्यार करती हूँ, इसलिए मैं उसी से शादी करना चाहती हूँ” पर उसके पिता ने उसकी एक भी न सुनी, और जबरदस्ती उसकी शादी दूबे जी के लड़के जयांश से कर दी।


शादी तो उसने अपने पिता के दबाव में आकर कर ली, लेकिन वह अपने पहले प्रेमी को भुला न सकी और इसलिए उसने आत्महत्या कर लिया। यह बात लड़की के पिता भी जानते थे कि दूबे जी ने उनकी लड़की को या दूबे जी के परिवार के किसी भी सदस्य ने उनकी लड़की को नहीं मारा। फिर भी लड़की के पिता ने दूबे जी और उनके पूरे परिवार को इस आरोप में फंसाया।


आज पांच साल हो गए है दूबे जी और उनके पूरे परिवार को सजा काटते हुए। उन्हीं लोगों से आज मैं मिलने जा रहा हूँ। पता नहीं और कितने साल उन्हें जेल में रहना होगा। बेटा मैं ये नहीं कहता कि लड़कें और लड़कियों में फर्क है, बल्कि मैं भी यही मानता हूँ कि लड़कें और लड़कियां दोनों एक समान है। मैं हर माँ-बाप से यही कहता हूँ की जितनी छूट हम लड़कों को उनका करियर बनाने में देते है, उतनी छूट हमें लड़कियों को भी देनी चाहिए। लेकिन पूरी देनी चाहिए ये नहीं कि हम उनके मर्जी से पढ़ाई और उन्हें बेहतर बनाए और जब उनके जिंदगी का अहम फैसला वो खुद लेना चाहें, तब हम अपने पुराने ख्यालों और लोक लाज के डर से उनकी इच्छाओं को दबा दें।


जब हम उन्हें उनके बेहतर भविष्य बनाने में इतना छूट देते है, तब हम उनके चुने गए लड़के से या जिससे वो प्रेम करती है क्यों नहीं शादी करा देतें है, ताकि वो पूरी उम्र खुश रहें। फिर क्यों हम जबरदस्ती किसी और से उनकी शादी कर देते है। ऐसा करके हम सिर्फ उनका ही नहीं बल्कि उस घर का भी भविष्य बर्बाद करते है जिस घर में हम उनकी शादी करते है।


क्या कसूर होता है उनका, उन परिवार वालों का जो बेकसूर होते हुए भी कसूरवार ठहराये जाते है। मैं ये नहीं कहता कि हर लड़की ऐसी होती है जो आत्महत्या करती है। लेकिन आज के समय में अधिकांश जो लड़कियां आत्महत्या करती है इसकी वजह बस यही है। दहेज उत्पीड़न नहीं, क्योंकि आज हमारा समाज शिक्षित हो गया है और कोई भी नहीं चाहता कि वो दहेज के लिए अपने बहू को उत्पीड़न करें या उसे मार दे, खासकर उस लड़की को जो पढ़ी लिखी हो। हम ये भी मानते है कि अगर ऐसा होता भी है तो उसकी अच्छी तरह जांच कराई जाए। पहले सबूत इकट्ठा किए जाएं, फिर जब यह साबित हो जाये कि लड़के के माँ-बाप और लड़का उस लड़की के मौत के जिम्मेदार है, तब उन पर कार्रवाई की जाये और उन्हें सजा दिलाई जाये।


मैं आज तक एक बात समझ नहीं पाया कि आखिर कसूर किसका था? दूबे जी का जिन्होंने बड़े धूमधाम से अपने बेटे की शादी की वो भी बिना एक रूपया दहेज लिए? या लड़की के पिता का जिसने यह जानते हुए भी कि उसकी लड़की किसी और से प्यार करती है? फिर भी जबरदस्ती उसकी शादी दूबे जी के लड़के से कराई? या फिर उस लड़की का जिसने अपने पिता के दबाव में आकर ये शादी की?


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