मन की बात

मन की बात

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"ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो" रमेश के मोबाइल मे लगा रिंग टोन बजा

रमेश :- "हेल्लो" कौन


"रमेश मैं महेश बोल रहा हूँ", हाँ भैया, कहिए कैसे हैं, सब ठीक तो है न सुना है, भाभी की तबियत खराब है। हाँ रमेश तबियत बहुत खराब है, अस्पताल में भर्ती किए हैं, वो।


"अरे हाँ भैया अगर कोई बात हो तो बता दीजिएगा, मैं अभी तो बीजी हूँ, बाद में बात करता हूँ।"

फ़ोन कट कर के रख दिया, "अरे कौन था?" रे रमेश। "अरे उ भैया थे, भाभी की तबियत", "अरे तू क्या करेगा जान के चल तू पैग बना।"


२ महीने बाद जब रमेश घर आया, एक दिन खाना खा रहा था, तभी अचानक द्वार पे कोई आया, और उसके बड़े भाई को भला बुरा कहने लगा।

"अरे महेश २ महीने हो गये, तूने अभी तक मेरा उधार नहीं दिया, कब देगा मेरा पैसा, देख अगर तूने जल्द मेरा पैसा नहीं दिया तो मैं तेरी गाय खोल के ले जाउँगा।"

अंदर खाना खा रहा रमेश अपनी पत्नी से, "अरे कौन चिल्ला रहा है, बाहर। पत्नी- "लाला है बड़े भाई साहब को भला बुरा कह रहा है।" 

रमेश- "क्यों क्या हुआ ?"

"अरे भाई साहब ने क़र्ज़ लिया था उससे, जब दीदी की तबियत खराब थी, वही माँगने आया होगा।"

रमेश खाना छोड़ बाहर आकर, "भैया आपने लाला से कर्ज़ लिया था, जब भाभी की तबियत खराब थी, मैने आप को बोला था न के अगर पैसे की ज़रूरत हो तो मुझसे कहिएगा।"

महेश चुप-चाप खड़ा उसकी बातें सुन रहा था, एक शब्द नहीं बोल रहा था।

पास में ही खड़ी महेश की पत्नी भी रमेश की बातें सुन रही थी, महेश के कुछ न बोलने पर, वो बोली...

"रमेश तुम्हें तो पता ही है, हमारी स्थिति, खेतों मे इस साल फसल भी अच्छा नहीं हुआ, तुम्हारे भैया को कोई काम भी नहीं मिलता, उनकी भी तबियत आज-कल खराब ही रहती है, तुम और तुम्हारी पत्नी हमारी परिस्थिति को भली-भांति जानते हो उस दिन तुम्हारे भैया ने पैसे के लिए ही तो तुम्हारे पास फ़ोन किया था। जब उन्हे पता चला के मेरी तबियत खराब है इसका तुम्हें पहले से पता था, फिर भी तुमने फ़ोन करके मेरा हाल तक नहीं पूछा और तो और जब उन्होने फ़ोन किया तो तुमने कहा के कोई बात हो तो मुझे बता दीजिएगा, सब जानते हुए भी के हम किस स्थिति से गुज़र रहे हैं, फिर तुम कह रहे हो के कोई बात हो तो बता दीजिएगा, ये कह कर तुमने फ़ोन काट दिया। फिर दोबारा पूछे भी नही के भैया पैसे का इंतज़ाम हुआ भी या नहीं।"


रमेश "जब तुम्हारे भैया के साथ मेरी शादी हुई थी, तब तुम ६ साल के थे, शादी के दो साल बाद ही सासू माँ गुजर गई।

मैं आज भी तुम्हें देवर नहीं, अपना बेटा समझती हूँ। जब तुम छोटे थे, तुम्हारे भैया अनपढ़ होते हुए भी मेहनत मज़दूरी करके तुम्हें पढ़ाया, खुद पुराने कपड़े पहनते रहे पर तुम्हारे लिए नये सिलवाते थे, तब तुमने अपने भैया से कहा था के भैया मुझे पढ़ना है, भैया मुझे नये कपड़े ख़रीद दो नहीं न.....क्योंकि भैया तुम्हारी मन की बात समझते थे और अपना फ़र्ज़ निभाना चाहते थे।"

"और उस दिन रमेश जब भैया ने फ़ोन किया तो तुम उनकी मन की बात नहीं समझ पाए।"


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