करवट बदलते रिश्ते

करवट बदलते रिश्ते

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''अरे बिंदिया जो का बचपनो है? तू आज हमसे घूँघट क्यों ढक रही है?'' प्रसादी ने आश्चर्य चकित होते हुए बिंदिया से पूँछा।

''देखो जी अब अगले माह हमार बिटूआ को विवाह है और हम नाय चाहत कै बहुरिया कौ हमार रिश्ते के संबंध में कौनउ जानकारी होय।'' बिंदिया ने घूँघट खींचते हुए कहा।

''तोय होय का गयो है? अरे तू मेहरुआ है हमारी। पूरे गाँव के सामने और भोले-बाबा के सामने दिल से अपनाओ मैने तोय और तेरे चार बालकन कौ। का मेरी देखभाल में कौनऊ कमी रह गयी?''

''अरे नाय तब मेरी मजबूरी थी अब नाय है!''

''तो का तू ऐसे ही ढोंग करत रही?''

''न तो का तुम सहारो देते मोय और मेरे बालकन कौ?'

''एक फेरे कै कै तो देखती!'' और प्रसादी धम्म से घास की बनी झौंपडी में पड़ी टूटी खाट पर बैठ गया और अतीत में खो गया।

जब बिंदिया के पति लक्खा की मौत हो गयी तो पूरे गाँव के मर्द जवान बिंदिया पर गिद्ध-सी नज़र रखते, ऐसे में घरवालों के खिलाफ़ जाकर प्रसादी ने बिन्दिया और उसके चार दूधमुँहे बच्चों को अपनाया और पाला-पोसा मगर आज जब समय गुज़र गया तो बिन्दिया को उनके रिश्ते में खोट नज़र आने लगा !अचानक बकरी के बोलने से प्रसादी की तन्द्रा भंग हुई तब तक बिन्दिया जा चुकी थी झोपडी से और उसकी ज़िन्दगी से भी। अब जब बुढापे में वास्तव में सहारे की ज़रूरत हुई तब प्रसादी बेसहारा हो गया।


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