करवाचौथ
करवाचौथ
सुनो ना, सीमा ने प्यार से पति रवि के कंधे पर सिर रखते हुए कहा ... " करवा चौथ में सिर्फ तीन दिन रह गए है।
क्या उपहार चाहिए तुम्हें। " रवि ने सीमा की बात बीच में काटते हुए तल्खी भरी आवाज में कहा, जैसे वो जानता हो की सीमा क्या कहना चाहती है।
सीमा ने भी रवि के रूखेपन की परवाह ना करते हुए, अपनी बात जारी रखते हुए कहा " उपहार की बात नहीं कर रही हूँ आपसे। " मैं तो बस यही कह रही थी ...
" भाभी जी अभी तक सरगी देने नहीं आयी । " ( करवाचौथ के व्रत पर सासु माँ या जेठानी जी द्वारा आशीर्वाद के रूप मे दिए जाने वाले मिठाई और सुहाग के सामान को सरगी कहते है। ) वो हमेशा सरगी व्रत से एक हफ्ते पहले ही दे जाती है। रवि ने गुस्से में सीमा को घूरते हुए कहा " भूल गई बड़े भाई साहब ने मेरा कितना अपमान व अनादर किया है, और जो मुझसे रिश्ता ना रखने की हिदायत दी है, क्या अब भी तुम्हें लगता है भाभी जी इस बार सरगी देने आएंगी ? "
रवि ये तो गलत बात है ना, व्यापार में एकमत ना होने पर आपस में लड़ो आप दोनों भाई, और परिणाम भुगते हम दोनों औरतें। भाभीजी नहीं आयेंगी तो मैं खुद जा कर उनका आशीर्वाद और सरगी दोनों ले आऊंगी। आपको साथ चलना हो तो चलना, वैसे भी वो बड़े है आपको।
सीमा का सिर अपने कंधे से झटकते हुए रवि दूसरे कमरे में चला गया। तभी दरवाजे की घंटी की आवाज़ सुन जैसे ही सीमा ने दरवाज़ा खोला, भाभी जी सरगी के थाल के साथ दरवाज़े पर खड़ी थी।
सीमा उनके चरणस्पर्श कर उनसे लिपट गई। आँखों में आँसुओं की अश्रुधारा को रोके हुए रूंधे गले से कहने लगी " मुझे तो लगा इस बार ... भाभीजी ने बात बीच में काटते हुए कहा " क्या लगा तुम्हें अपना फ़र्ज भूल गई। रिश्ते खत्म करने आसान है, मुश्किल तो प्यार से निभाने है।
कहाँ है हमारे लक्ष्मण जैसे देवर भाई साहब जी, खींचे उनके कान। तभी रवि नज़रें झुकाये कमरे से बाहर आ कर भाभीजी के पैरो में गिर कर माफ़ी मांगने लगा। भाभी जी भी अपने आँसू पोंछते हुए रवि से कहने लगी " अब अपने भाईसाहबजी को भी अंदर ले आओ मुँह फुलाए गाड़ी में बाहर बैठे है। "
रवि हवा से भी तेज गति से बाहर भाई साहब जी को लेने भागे। ये देख कर भाभीजी और सीमा की खिलखिलाती हुई हंसी से पूरा घर रोशन हो गया। करवाचौथ का त्योहार तो दीवाली का त्योहार बन गया था।