दिनेश कुमार कीर

Fantasy Inspirational Thriller

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दिनेश कुमार कीर

Fantasy Inspirational Thriller

सच्चा मित्र

सच्चा मित्र

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एक गाँव में एक व्यापारी अपनी पत्नी और बारह साल के बेटे, अनीश के साथ बहुत खुशी - खुशी रहता था। व्यापारी के कारोबार में दिन - रात तरक्की होती थी। अनीश इकलौती सन्तान होने के कारण लाड - दुलार में बिगड़ गया था। वह स्कूल नहीं जाता था। व्यापारी हर तरह से खुश होकर भी इस बात से चिन्तित रहता था कि मेरा बेटा कहीं अशिक्षित न रह जाये। इकलौती सन्तान होने के कारण अनीश को उसके माता - पिता बहुत प्यार करते थे। उसकी हर जरूरत पूरी करते, उसे जरा भी डाँटते नहीं थे। अधिक दुलार के कारण ही अनीश विद्यालय नहीं जाता था क्योंकि उसको पता था कि उसके माता - पिता उसको डाँटेंगे नहीं, सिर्फ समझायेंगे। वह हमेशा कहता कि- "कल से रोज़ स्कूल जाऊँगा।" उसका ये कल कभी नहीं आता था।

करन को फुटबॉल खेलना बहुत पसन्द था। अनीश जो भी खिलौने की इच्छा व्यक्त करता, उसके पास अच्छे - अच्छे खिलौने आ जाते। करन ने कई तरह के फुटबॉल अपने पिताजी से मँगवा लिये था। वह रोज नये - नये फुटबॉल लेकर मैदान की तरफ चला जाता था। जो भी उसे मिल जाता, उसके साथ खेलने लगता था। किसी दिन तो ऐसा भी होता था कि सब बच्चे स्कूल चले जाते थे, वह अकेला ही फुटबॉल खेलता रहता था।

किसी के समझाने का करन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। वह किसी की नहीं सुनता था। 

एक दिन की बात है। सभी बच्चे स्कूल चले गये। गाँव में उसे कोई भी साथ खेलने के लिए नहीं मिला। अनीश का मन था कि आज वह कई लोगों के साथ फुटबॉल खेले, पर उसके सारे मित्र स्कूल जा चुके थे। अनीश पास के ही दूसरे गाँव में चला गया। वहाँ कुछ बच्चे बैठे हुए थे। अनीश ने फुटबॉल देखकर उन बच्चों से दोस्ती की और उनके साथ फुटबॉल खेलने लगा। अनीश मित्रों के साथ फुटबॉल खेल रहा था। खेलते - खेलते अचानक अनीश के पेट में दर्द होने लगा। अनीश खेल के स्थान से हटकर दूर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। 

सभी मित्र करन की तरफ देखने लगे और अनीश को आवाज देते हुए बोले- "क्या हुआ अनीश! तुम डर गये क्या, खेलोगे नहीं?" अनीश ने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि अनीश के पेट में बहुत जोर से दर्द हो रहा था। वह दर्द के मारे कुछ बोल न सका और चुपचाप पेड़ के नीचे बैठा रहा। उसके सभी मित्र फुटबॉल खेलने में मस्त हो गये। अनीश पेट दर्द से कराहता रहा। पेट दर्द तेज होने के कारण अनीश घर की तरफ चलने लगा। 

समय बहुत हो गया था। उधर स्कूल में छुट्टी भी हो गयी। सभी बच्चे स्कूल से लौट रहे थे। अनीश से दर्द सहन नहीं हुआ, तो वह सड़क किनारे ही बैठ गया और रोने लगा। तभी उसका एक मित्र जो विद्यालय से लौट रहा था, उसने अनीश की हालत देखी तो दौड़कर अनीश के पास आ गया। अनीश से पूछते हुए बोला- "क्या हुआ मित्र! तुम यहाँ क्यों बैठे हो, कोई तकलीफ है क्या?" अनीश ने जवाब दिया कि- "उसे बहुत जोर से पेट में दर्द हो रहा है। मित्र दिव्यांश! मुझे घर ले चलो।" "ठीक है, मैं तुम्हें अपनी साइकिल पर बैठाकर तुम्हारे घर लिए चलता हूँ।" अनीश का मित्र दिव्यांश साइकिल पर बैठाकर अनीश को उसके घर तक ले आया। अनीश के पिताजी ने जल्दी से उसे डॉक्टर को दिखाया। कुछ ही देर में वह दवाई खाकर ठीक हो गया। अनीश ने अपने मित्र दिव्यांश का 'धन्यवाद' किया कि उसने समय से उसको घर पहुँचा दिया, जहाँ उसका इलाज उसके पिताजी ने कराया। दिव्यांश ने अनीश के धन्यवाद का उत्तर देते हुए कहा- "मित्र! मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ रोज स्कूल चलो। इस धन्यवाद की कोई जरुरत नहीं है। यह तो मेरा फर्ज था। रही बात फुटबॉल खेलने की, वह तुम स्कूल में खेल के घण्टे में भी खेल सकते हो। मैं भी तुम्हारे साथ खेलूँगा। पर तुम प्रतिदिन स्कूल चलो मेरे साथ।" अनीश ने प्रतिदिन विद्यालय समय से जाने के लिये हामी भर ली। अनीश के इस फैसले से सभी लोग बहुत खुश हुए। सभी को खुश देखकर अनीश को भी खुशी हुई क्योंकि आज अनीश को बहुत पश्चाताप हुआ कि वह उन दोस्तों के साथ खेल रहा था, जिन दोस्तों को खेल के अलावा कुछ और नहीं सूझता था। अनीश ने तय किया कि अब वह अपने स्कूल समय पर जायेगा और अपने अच्छे दोस्तों के साथ रहेगा। उन्हीं के साथ फुटबाॅल खेलेगा।


संस्कार सन्देश :- अच्छा मित्र हमेशा अच्छी राह दिखाता है।



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