सफ़ीना सुपर हीरोइन
सफ़ीना सुपर हीरोइन
सफ़ीना खूबसूरत छोटे कद की छरहरी काया बाली सरबती की बहू जब ब्याह कर आयी तो सास बनी सरबती फूली नहीं समाती थी। कितने चाव से चाँद सी बहू ढूँढी़ थी और सब मान मनौती पूरी कर अपने घर की लक्ष्मी के लिए बाबा जी का आभार जताती । परमात्मा ने खूब सुनी ! सच्चे मन से जो चाहो परमात्मा मुराद पूरी जरूर करते हैं। तीन लड़कियों की शादी के बाद एक अरसे से मना रही थी कि छोटे रज्जो का ब्याह हो जाए तो घर की चाबी बहू को सौंप कुछ दिन आराम के बिता लेगी। बड़े बेटे का तो घर बसा नहीं सकी । बहुत कोशिश की ,बंगालन को भी देखने गये बिहार में ...पर मोड़ा ने ही मना कर दी। " मोय ना करनो ब्याह, बिना ब्याहे ही बढ़िया , रुपया दैके ब्याह करबे से अच्छो है कि बाबाजी बन जाऊँ।"
सरबती हार मान गयी ,वैसे उसने कभी हार नहीं मानी।.चाहे लड़की अपने आदमी से परेशान होकर दूसरे के संग चली गयी हो और चाहे जमाई ने छोरी ए छोड़ कै दूसरी करबै की सोची हो। सरबती ठोक पीट के सब ठीक करती रही है। जरूरत पड़ी तो पुलिस की मदद भी लेती रही है।
अपने रज्जो को सेल्स मैन बनाबे के लैं अपनी जमा-पूंजी भी कम्पनी वालों को दे दी कि चलो छोरा चार पैसा कमाएगा,पर वो तो फंस गया जूआखोरों के चक्कर में ...ले गयी पुलिस पकड़ के। सरबती फिर पुलिस वालों के हाथ पांव जोड़ कर और कुछ खिला-पिला कर छुड़ा लायी छोरे को। आज खुश है कि ब्याह की रौनक उसके घर भी होगी। दिल से गहने ,कपड़े बनवाए हैं उसने। खुशी की चमक देखते ही बनती है उसके चेहरे पर । पूरे पन्द्रह दिन की छुट्टी लेकर खूब इन्तजाम किया और ले आई अपनी लक्ष्मी। शादी के बाद लौटी तो खूब तारीफ करती कि बड़ी मलूक है म्हाई सफ़ीना। कल बहू के हाथ से पूए बनवा के बाँटे हैं। ऐसे लम्बे बाल कि कमर तक दिखाई देत हैं। सबेरे ही सबके पांव छूती है। खाने में फैंसी आइटम ,एक से बढ़िया एक बनवा लेओ।
दिन बीतने लगे,सरबती को खाना बनाने से छुट्टी मिल गयी और अब केवल बाहर का काम ही वह करती। लौटते वक्त कुछ फल भी खरीद कर ले जाती । सफ़ीना नये व्यंजन बनाती तो ससुर जी भी खुश रहते । वे भी कुछ न कुछ घर आते समय लेकर ही आया करते। दिन आराम से कट रहे थे। पहलौटी लड़का हुआ, फिर लड़की ,फिर दो बच्चे और हुए पर नहीं बचे ,,,मरते-मरते बची सफ़ीना।
उधर रज्जो का मन करता तो काम करता ! नहीं तो पड़ा रहता पूरे दिन घर में। माँ,बाप,भाई की कमाई से घर चल रहा था। रज्जो की आदतें बिगड़ गईं। काम करने में बिल्कुल मन ही लगता। न तो राशन की लाइन में लगता और न ही बच्चों को स्कूल छोड़ने जाता। सफ़ीना अकेले ही सुबह से शाम तक सब सम्भालती । सुबह ही खाना बनाना, बच्चों को स्कूल छोड़ना। कपड़े धोना सब्जी लाना,और अब उसने जीवन यापन के लिए घरों में काम के लिए भी जाना शुरू कर दिया। शादी के समय की साड़ी पहन ,मांग में सिंदूर फिर सफेद बुंदकियों से आधा चंद्रमा बनाती। माथे पर भी लाल सफेद बुलंकियों से बिंदिया सजा कर आया करती। अब फिर गर्भ से थी। पूरे नौ महीने काम करती रही। दसवें महीने में लड़की हो गयी। एक महीने आराम के बाद फिर काम पर जाने लगी। पति आराम से घर में फोन पर गाने सुनता और अब शराब की लत भी लगा ली और सफ़ीना पर हाथ भी उठाने लगा। सरबती मना करती ,"क्यों जाती है कमाने ,इसे हराम की मुँह लग गयी है, नहीं करैग़ो जै काम,तू भी बैठ जा घर।"
"जै बच्चा भूखे मर जाएंँगे,तुम्हारी तो कट गयी अब मैं भी तो काटूँगी अपनी । काम का अपने शौक से जा रही हूँ। तुम चौं जा रही हैं बुढ़ापे में ,बैठ कै खाओ न तुमहूँ। ससुर जी तो चले गए । अबकी तो न कलींदे खाए न खरबूजा। वे होते तो बैठ जाती घर...। सबीना अपने श्वसुर जी की बातें करके रोने लगती।
फिर तो दोनों सास-बहू खूब रोतीं बुक्का फाड़ के पर रज्जो पर तो न पहले फर्क पड़ता था और न अब पड़ा। वह अपने रेडियो और वीडियो में मगन रहता। जनधन खाते में पैसा आ जाता तो एटीएम से पैसा निकालने चला जाता।
डस्टिंग करते समय जब सफ़ीना ने कराह भरी तो डाक्टर मैडम ने पूछ ही लिया ,"क्या हुआ सफ़ीना??"
कुछ नहीं मैडम!! "कल पटक-पटक कर मारा है ,कमर दर्द कर रही है।"
"तो तेरी पिटाई भी होती है? कौन सी होती है ये ? प्यार वाली या गुस्से वाली...?"
"अरे मर्द है न! तो हाथ उठा के अपनी जात दिखाते हैं। क्या करें भाग में लिखा कर लाए हैं।"
"चल आ,ये आयोडैक्स लगा और दूध में हल्दी डालकर पीले थोड़ा सा, आराम पड़ जाएगा। किस बात की मर्दानगी दिखाता है बता तो ? मर्द का काम तो तू कर रही हैं,कमा कर खिला रही है और बच्चे भी पाल रही है। छोड़ दे ये औरत वाली सोच।देख ! ये चित्र देख काली माई का! जब ये दुष्टों का संहार करने जा रहीं थीं तो इनके पाँवों के नीचे देख कौन पड़ा है ? पति को परमेश्वर मानने की सोच से अलग हटकर अपनी स्वतंत्र सोच से सोच कर तो देख सफ़ीना।
"ये तो भोले बाबा हैं मैडम जी ! "भोले बाबा को तो हमारे परिवार में भी पूजते हैं सभी । पर वह दूसरे हैं....हम सब तो उनको ही मानते हैं और पूजा करते हैं।"
"अरे ! औरत तो दुर्गा होती हैं ,जब वे अपनी शक्ति का जागरण कर लेती हैं तो ऐसे- ऐसे काम कर जाती हैं कि देखने वाले मुँह देखते रह जाते हैं। बैठ जा मेरे संग दुर्गा शक्ति कवच का पाठ कर ले।"
"मैडम जी मैं आठवीं तक पढ़ी हूँ,घर पे कर लूँगी । बैंक,कचहरी,नगर निगम,स्कूल,अस्पताल सब काम मैं ही करती हूँ धड़ल्ले से पर आदमी से मात खा गयी हूँ। बच्चों की वजह से टिकी हूँ, नहीं तो कब की अपने पापा के घर उनकी चाट पकौड़ी की दुकान सम्भाल लेती।"
"तो जगा ले अपनी शक्ति और दिखा दे अपना असली रूप,बैठ कर खा अपने आदमी की तरह । जब भूखा रहेगा तो ही तो जाएगा वह काम पर ....."
मंत्र दे रही हूँ ,बोलती रहा कर...जाग जाग नारी जाग!!!मन से भय दे त्याग !!!धूम फट,झूम झट,धूम फट,झूम झट ...
जाग-जाग, जाग ,नारी जाग!!!!
सरल है बोलती रहा कर और अपनी शक्ति को जगा और पहचान कर।"
सफ़ीना को आज अपनी मैडम की बात पसंद आ गयी और वह गुनगुनाने लगी यही मंत्र...जाग ,जाग नारी जाग....कराटे का फ्री कोर्स भी मैडम ने सीखने के लिए कहा ,क्यों कि उनके बच्चे भी वह कोर्स कर रहे थे,ट्रेनर घर पर ही आता था।"
महीने भर में ही सफ़ीना खुद को नयी ऊर्जा और जोश से भरा हुआ पाने लगी। उसको लगने लगा कि वह इस संसार को अपने सिर पर उठा कर चल सकती है । उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि नहीं पिटेगी आज के बाद।
एक दिन जब सब्जी में नमक ज्यादा हो जाने पर रज्जो का पारा गरम हो गया और उसने सफ़ीना के बाल पकड़ कर उसे गिराना चाहा तो उसने भी प्रतिरोध में रज्जो को ये पटखनी लगायी कि फुफकारने लगा वह नाग की तरह...मेरी बराबरी करेगी तू.!"
"तेरी बराबरी नहीं तुझसे भी ऊपर हूँ मैं ..ये देख!"उसने गिरे हुए रज्जो के सीने पर पैर रखकर चूल्हे में सुलगती लकड़ी खींची और तान दिया उसे त्रिशूल की तरह उसके सीने पर । उसकी पनीली आँखों में रक्त उतर आया।
ऐसी तो कल्पना भी नहीं की थी ,किसी ने परिवार में। रज्जो चिल्लाने लगा ,"कोई बचाओ ,ये पागल हो गई है।"
पागल संबोधन से सफ़ीना ने अपनी साड़ी को लंगोट की तरह बाँध लिया,और पांवों में घुंघरू बांध लिया। बच्चों का डमरू एक हाथ में ले लिया और ऐसा नृत्य किया कि मोहल्ला इकठ्ठा हो गया। वह एक पांव पर खड़ी होकर नृत्य करने लगी और मन ही मन गुनगुनाती जाती थी। जाग -जाग नारी जाग ,मन से भय को दे त्याग ,जाग- जाग नारी जाग... घुंघरू और डमरू दोनों उसकी लय में लय मिला रहे थे। मोहल्ले की हर औरत ही दुखियारी थी। सब चाह रहीं थीं कि ऐसी शक्ति उन्हें भी मिल जाए तो एक बार वे भी अपने अपने-अपने आदमियों को पटखनी खिला दें। पर यह बात कोई भी कह नहीं पा रही थी।
सफ़ीना बोली," किसी को चाहिए ऐसी शक्ति तो बोलो ,मेरा शरीर फट जाएगा । इतनी ताकत है मेरे अंदर.."..रज्जो मन मन ही खुश कि फट जाए तो बढ़िया,आज की जो बदनामी हुई है उसका बदला ऐसे ही मिल जाएगा मुझे। पास खड़ी बहुत सी महिलाओं ने अपनी झोली पसार दी। मैया ! तुम जो भी हो , हमें दे दो अपनी शक्ति।
सफ़ीना ने एक-एक कर सबके सिर पर हाथ रखा तो महिलाएं सचमुच शक्ति महसूस करने लगीं। उन्हें लगा जैसे वे हवा से बातें कर रहीं हैं। उनके हाथ स्वत: आकाश की ओर उठ गये। इसके बाद सफ़ीना एक चारपाई पर बैठ गयी और अपने बालों को इकठ्ठा करके बांधा और घुंघरू उतार कर अपने मूल स्वरूप में आ गयी। जैसे कुछ हुआ ही न हो।
दूसरे दिन जब वह काम पर गयी तो मोहल्ले की बहुत सी अन्य स्त्रियाँ भी उसे मिलीं तो सबने जानना चाहा कि कैसे मिली है सफ़ीना यह शक्ति ? हमें भी दिलवा दे ..
मिली क्या हैं। जागरण किया है । तुम भी कर सकती हो ..आ जाया करो खाली प्लाट में सीखने।
सबको सलाह अच्छी लगी तो किसी तरह से चोरी छिपे सभी अपनी शक्तियों का जागरण करने लगीं। अब तो स्थिति यह हुई कि अगर कोई भी उन पर हाथ उठाता तो वे उसका हाथ पकड़ कर ऐसे मोड़ देतीं कि हफ्ता भर दवा लेनी पड़ती। शर्म के मारे कोई बता भी नहीं पाता कि कैसे क्या हुआ है। धीरे धीरे यह बात एक से दो ,दो से तीन लोगों को पता लगी । सभी महिलाएं समय निकाल कर शक्ति जागरण करने में रुचि लेने लगीं। उनकी टोलियाँ बन गयीं और एक ड्रेस भी सुनिश्चित कर ली जिससे सभी में एकरूपता रहे। वे शराब की दुकानों पर जाकर शराब न बेचने का अनुरोध करतीं । यदि दुकानदार नहीं मानता तो वे उसे वहीं बन्धक बना कर रख लेतीं और खुद दुकान सम्भाल लेतीं। जब मैहल्ले के लोग वहाँ अपनी औरतों को बैठे हुए देखते तो उल्टे पांव लौट जाते और अगर कोई कहीं और से ले भी आता तो वे भी घर पर उस शराब को खुद पीने लगतीं और विरोध करने पर गीत गाने लगतीं...जाग -जाग,नारी जाग , जाग- जाग नारी जाग!!!मन से भय दे त्याग !!!धूम फट,झूम झट,धूम फट,झूम झट.।
पहुंचते पहुंचते उनकी ख्याति वर्ल्ड विक्टिम लेडीज़ ऑरगेनाइजेशन तक पहुँच गयी जो उन्हें हर सम्भव मदद पहुँचाने के लिए तत्पर थी।
सफ़ीना ने अपनी सहयोगी महिलाओं को साथ लेकर ग्रुप बनाया जिसका नाम रखा ,"जाग-जाग नारी जाग*"
"वर्ल्ड विक्टिम लेडीज़ आर्गेनाइजेशन" संस्था ने जाग जाग नारी जाग संस्था को आर्थिक मदद दी तो सभी महिलाओं के लिए विशेष कास्ट्यूम सिलवाए गये। जिनमें हवा भरी जा सकती थी और उनकी मदद से उड़ना भी संभव था। नीले रंग पर पीली ज्वालाएं निकलती हुई बहुत ही आकर्षक लगती थीं। सफ़ीना आज खुश थी कि उसके सपनों में अब उड़ान की ताकत भी आ गयी थी।
आज पहला दिन था कुल बारह महिलाओं को अपने कास्ट्यूम के साथ उड़ान भरनी थी। सबने उन्हें पहना और गैस भरवाई और वे चल पड़ीं अपने लक्ष्य की ओर जो कि शराब की दुकानें थीं, जिसके कारण से उनकी जिंदगी में सभी परेशानियां थीं। वे रात में में दुकानों पर जातीं और विक्रेता को पकड़ कर सभी बोतलें वहीं खाली कर देतीं। उनका दूसरा लक्ष्य होते लुटेरे ... जिन्हें वे उनकी मोटर साइकिल सहित हवा में उठा कर नीचे गिरा देतीं। इसके बाद बलात्कारी गैंग जिन्हें वे ऊपर से देखते ही उतर आतीं और उनकी वह गत बना देतीं कि कहीं मुंँह दिखाने लायक नहीं रहते। बाबजूद इसके अपराध का साम्राज्य इतना बड़ा है कि एक छोटा सा ग्रुप अभी बड़ा आकार लेने का लक्ष्य बना रहा है और अपनी योजना के क्रियान्वयन में सक्रिय है। घर में तो तांडव नृत्य से ही सुधरने लगे हैं महामहिम पति महोदय।.
बहुत दिनों बाद सफ़ीना अपनी डाक्टरनी मैडम के यहाँ गुरु दक्षिणा में उड़न कास्ट्यूम लेकर पहुँची है और वह भी उड़कर।
मैडम ने तो ऐसी कल्पना भी नहीं की थी कि शक्ति का जागरण इस स्तर तक पहुँच जाएगा। उन्होंने आवाज लगाई... बच्चों ! बाहर आकर देखो ! कौन आया है । तुम्हारी सुपर हीरोइन ....कुछ पीले फूल तोड़ कर लाना बगीचे से राम लली ! बरसा दो आज सफ़ीना के ऊपर । आज हम नारी शक्ति का नर्तन देखेंगे। जाग! जाग! नारी जाग..!
