कर्म दंड
कर्म दंड
"दीदी, पूजा की थाली तैयार कर दी है, जाओ पूजा के लो।" वंदना ने दिव्या को आवाज लगाई।
दिव्या अपनी व्हील चेयर सरकाते हुए पूजाघर में चली गई। अभी मुश्किल से दस मिनट ही हुए थे, पूजाघर से जोर जोर से चीखने की आवाज आने लगी। वंदना भागती हुई पूजा घर में घुसने लगी, तभी अचानक आग की लपटों ने उसे रोक लिया। वंदना आवक् सी दिव्या की जलती देह को देखने लगी।कुछ होश में आने पर उसने शोर मचाना शुरु किया और पानी की बाल्टी लेने भागी। फायर ब्रिगेड ने आग को बुझा तो दिया किन्तु सब तहस नहस हो चुका था, साथ ही दिव्या का झुलसा मृत शरीर भी।
वंदना फफक फफक कर रोए जा रही थी। यूं तो
वंदना दिव्या की भाभी थी, किन्तु उसके लिए बहन से भी बढ़ कर थी। पंद्रह साल पहले जब दिव्या ससुराल छोड़कर आयी थी,तब उसके भाई राकेश व भाभी वंदना ने ही तो उसे आर्थिक और मानसिक रुप से संभाला था। फिर जब दिव्या ने एक कार एक्सीडेंट में अपने पैर खो दिए थे, तब भी राकेश व वंदना ने ही उसे हिम्मत दी थी।तब से अब तक वे दोनों ही उसकी पूरी देखरेख रखते रहे थे।
आज दिव्या का जन्मदिन था। सुबह जल्दी उठकर उसने अपने हाथों से प्रशाद के लिए हलवा बनाया था।
आग की खबर लगते ही पड़ौसियों की भीड़ राकेश के घर में जमा हो गई। तभी भीड़ में से किसी की आवाज़ आई, " कभी कभी जीवन भी छोटा पड़ जाता है, पिछले कर्म दंड मिटाने में।
