Kumar Vikash

Tragedy

4.8  

Kumar Vikash

Tragedy

कफ़न की तलाश

कफ़न की तलाश

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जिन्दगी बोझल सी बेमन सी हो गई थी दूर तक देखने पर भी न कोई राह न मंजिल मिल रही थी, सांसें मेरी मुझे अब लंबी लग रही थीं। सुबह निकलता था घर से लेके खाली हांथ साम को लौटूंगा कुछ लेके इस उम्मीद के साथ, दिनभर की मशक्कत के बाद भी जब न लगता था। कुछ हाँथ तब नज़र आते थे भूख से तङपते कलपते। अपने बच्चों के चेहरे और मन हो जाता था उदास, ऐसे घुट घुट कर जीने से तो अच्छा मैं मर जाऊं आज, और खत्म हो मेरी ये कफ़न की तलाश !


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