Kumar Vikash

Inspirational

4.1  

Kumar Vikash

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हमारी बिटिया

हमारी बिटिया

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हर दिन की तरह आज भी तड़के मैं सैर पर निकला, और दिनों की तरह आजभी मेरी श्रीमती जी मेरे साथ ही थीं!हम दोनों का विगत कई वर्षों से सुबह

की सैर का यह सिलसिला बदस्तूर जारी था! ठंडी गर्मी बरसात कोई भी मौसम हो हम सुबह सबेरे की सैर से कभी चूकते नहीं थे! और हम दोनों के लिये

यही एक वक़्त होता था, जब हम टहलने के बाद थकान मिटाने के लिये,रास्ते में ही पड़ने वाले पार्क की एक बेन्च पर सुकून से बैठा करते और फूलों

को निहारते हुये बीते हुये जीवन को याद करते हुये आने वाले कल के विषय मेंचर्चायें किया करते थे! यूँ ही हमारे दिन प्रेम मोहब्बत के साथ गुजर रहे थे! बस हमारे जीवन में एक कमी थी, जो हमेंआज भी खलती थी हम दोनों पति पत्नी माता रानी के भक्त थे, और हमें हमारे दाम्पत्य जीवन में शुरू से ही माता के स्वरूप जैसी एक सुन्दर कन्या की चाहत थी! जिसकी चाहत में इस महँगाई के दौर में भी हमारे तीन पुत्र हो गये, माता की ऐसी ही इच्छा होगी सोचकर हम खुशी खुशी अपना जीवनव्यतीत करने लगे!

हमने कभी सोचा भी नहीं था की अचानक ही हमारे जीवन में माता रानी इतनी बड़ी खुशी देंगी, वो हुआ अचानक ऐसा की हम तो हर दिनकी तरह आज भी अपनी बातों में ही लगे थे! की तभी अचानक किसी छोटेबच्चे के रुदन की आवाज हमारे कानों में अचानक से पड़ी, पहले तो हमने ध्यान नहीं दिया सोचा किसी का बच्चा रो रहा है, चुप हो जायेगा पर जब आवाज़ लगातार आती ही रही और बंदन हुई, तो हमसे रहा न गया और हमदोनों इधर उधर देखने लगे, की आवाज किस तरफ से आ रही है! आवाज की दिशा का ज्ञान होते ही हम उस दिशा की तरफ भागे, तो देखते क्या हैं एक प्यारी सी नवजात कन्या झाड़ियों में एक अखबार में लिपटी पड़ी रुदन कर रही है! हमें समझते जरा भी देर न लगी की माजरा क्या है! क्यों कि अखबार में आये रोज ऐसी ही दो चार खबरें पढ़ने को मिल जाया करती थीं! अब हम दोनों प्रश्नवाचक नजरों से एक दूसरे को देख ही रहे थे, कि अचानक से मेरी श्रीमतीजी की आवाज मेरे कानों में कौंधी,"अजी क्या देख रहे हो! बच्ची को जल्दी से गोद में उठाओ! देखो बेचारी नन्ही सी जान कबसे भूख के मारे लगातार रोये जा रही है!"इतना सुनना था कि जैसे मेरी रगों में रुका हुआ खून एकदम से दौड़ने लगा! और मैंने झट से उस नवजात को उठाकर अपनी श्रीमती जी की गोद में सौंप दिया! गजब का जादू था उनकी गोद में !जाते ही बिलकुल शांत हो गई! जैसेदुधमुही अपनी भूख प्यास सब भूल गई!

और माँ को पाते ही जैसे बच्चे खुश होजाते हैं, वैसे ही वह नवजात भी मुस्कुरादी! हम दोनों उसमें इतने मगन हो गये की जैसे सब भूल गये! फिर अचानक ही जैसे हमारी तन्द्रा टूटी, और एक दम से चिन्ता में पड़ गये, कि ये बच्ची हमारी तो है नहीं प्यारी सी फूल सी बच्ची यहाँ पार्क की झाड़ियों में अखबार में लिपटी मिली है! इसे यूँ घर ले जाना तो उचित नहीं होगा! यह विचार अभी मन में चल ही रहा था कि, हमने फैसला लिया कि हम अभी पुलिस थाने जाके आज के इस सारे वाक्य्ये को दर्ज कराते हैं! और हम वहाँ से सीधे पुलिस थाने पहुँच गये!और सारा वाक्या थाने के बड़े साहब को बताया! वह एक बुजुर्ग पुलिस अफसर थे, इस नन्ही सी परी को देख कर उनकीभी आंखो में आंसु छलक आये, और होठों को हिलाकर कुछ गाली बुदबुदाई,और कहने लगे इस बच्ची को यहीं छोड़ जाओ इसे किसी अनाथालय भेजना पड़ेगा! शायद इसकी किस्मत में यही लिखा है! इतना सुनना था कि हमारी तो जैसे रूह कांप गई, अब हमसे रहा नगया और हमने बड़े साहब से निवेदन किया, अगर आप चाहें तो इस बच्ची कोहम ले जा सकते हैं, क्यों की कई वर्षों से हम दम्पत्ति

को एक बिटिया कीख्वाहिश रही है! हो सकता है माता रानी की कृपा से ही आज यह बच्ची हमें प्राप्त हूई हो! और साहब ने हमारी बात मानकर कागजी कार्यवाही पूंर्ण करबच्ची हमें सौंप दी! और खुशी खुशी माता रानी को धन्यवाद करते हुये उस नवजात को हम अपने घर ले आये!

घर में बच्चीके प्रवेश करते ही जैसेघर की रौनक बदल गई, हमारे तीनों बच्चे भी अभी बहुत बड़े नहीं थे और उन्हे कुछ जादा समझ नहीं थी इसलिये कोई सवाल जवाब नहीं हुआ, हमने बस इतना ही कहा बच्चों देखो आपके साथ खेलने के लिये माता रानी नें एक सुन्द रबहन भेजी है! इतना सुनते ही उसे देख तीनों बच्चे बहुत खुश हुये! बहन आई बहन आई करते करते उसके आगे-पीछे होने लगे, हम भी यह सब नजारा देखकर मन ही मन बहुत प्रसन्न थे! हमारी वर्षों की ख्वाहिश आज माता रानी कीकृपा से पूर्ण हुई थी! और देखते ही देखते समय बीतने लगा बच्चे बड़े होतेगये और हम बुजुर्ग हो गये !पढ़ लिख कर तीनों बच्चे अच्छे अच्छे पदों पर आसीन हुये! बिटिया रानी भीडाक्टर बनी, उसे हमनें कभी उसका अतीत नहीं बताया! और बताना जरूरी भी नहीं था!

तीनों बच्चों की शादियाँ करदीं वह अपनी अपनी पत्नियों में मस्त होगये! और जहाँ उनकी नौकरी थी वहींअपनी पत्नियों के साथ बस गये, कभी फुर्सत मिलती तो मिलने आ जाते याफोन पर बात करके ही काम चला लेते,बिटिया यह सब देखकर बहुत दुखी होती और गुस्सा भी करती, इसी दौरान बिटिया के लिये भी एक अच्छा रिश्ता आया पर बिटिया ने शादी से साफ मनाकर दिया! भाई लोग तो चले गये आपलोगों से दूर, अब मैं भी शादी करके आपलोगों से दूर चली जाऊँगी तो इस बुढापे में आप लोगों की देख भाल कौन करेगा! यह सुनकर हमारी आँखों से आँसू छलक आते, और सोचते हे मातारानी बेटियाँ इतनी भावुक होती हैं, हृदयसे इतनी कोमल और नाजुक होतीं हैं,फिर भी निर्दयी लड़कों की चाहत में क्यों लोग आज भी बेटियों को झाड़ी झन्काड़ियों में मरने के लिये छोड़ जाते हैं ।।


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