कॉलेज के दिन
कॉलेज के दिन
इंटरमीडिएट में नामांकन के लिए पापा के साथ ही कॉलेज गया था। पापा ने नजदीक के कॉलेज के बजाय कुछ दूर के कॉलेज में मेरा नामांकन करवा दिया क्योंकि वहां के प्राचार्य उनके परम मित्र थे और चाहते थे कि मुझ पर उनकी नज़र हमेशा रहे ताकि मैं कोई शरारत न करूं। वैसे मैं बहुत ही शर्मीला और शांत स्वभाव का था। नामांकन बाद पहली बार कॉलेज गया। पहले दिन मुझे अपना वर्ग कक्ष ढूंढने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी। मैंने कुछ विद्यार्थियों से पूछा तो कोई कुछ बताता कोई कुछ। अंततः मुझे मिल ही गया अपना कक्ष। कक्षा में प्रवेश करते ही अपना स्थान ढूंढने लगा बैठने के लिए जहां बैठता वहीं विद्यार्थी अपना स्थान बताते या दूसरे विद्यार्थी का। मैं पीछे जाकर बैठ गया। दिक्कत ये थी कि मेरी दूर दृष्टि कमजोर थी। अब श्यामपट्ट देखने में असुविधा होती। कुछ न दिखाई देता न समझ आता। यह करीब करीब हर बार होता रहा। नतीजा मेरी पढ़ाई पटरी पर नहीं आ रही थी। लोग मित्रता भी नहीं करते ताकि उनसे कॉपी लेकर छूटा हुआ विषय लिख पाता। वर्ग शिक्षक से मैंने अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने भी मेरी सहायता करने में असमर्थता जताई। हार कर मैंने प्राचार्य महोदय का सहारा लिया। उन्हें जाकर शिक्षक, विद्यार्थी शिकायत और अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने मेरी सहायता करते हुए स्वयं मेरे साथ वर्ग में जाकर शिक्षक और विद्यार्थीयों से मेरी परेशानी बताई और उसका हल निकालते हुए मेरी सहायता करने को कहा। सभी राज़ी हो गए। फिर मेरे कई मित्र बने और सब ठीक हो गया।