मेरे पिता मेरे आदर्श
मेरे पिता मेरे आदर्श
जब से होश संभाला मैंने अपने पिता को सदैव अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए देखा। आशावादी और सकारात्मक सोच एवं ऊर्जा के स्वामी। बाल्यावस्था में ही पिता का साया सर से उठने के बाद मेरे पिता ने अकेले ही अपने-आप को सुदृढ़ और सशक्त बनाया। जीवन के हर कठिन अवस्था में भी मुस्कुराते रहते। वो कहते - मेरे शब्दकोश में 'ना' नहीं है। आदर्श और उसूलों के पक्के। हमें हर काम ईमानदारी से और स्वयं करना सिखाते। आठ दस साल की उम्र में हम लोगों को अकेले बाज़ार करने भेजते थे। कहते दुनिया को कब समझोगे। माध्यमिक विद्यालय से उच्च विद्यालय में मेरे और मेरे भाई के नामांकन के लिए मेरे साथ नहीं गये। कहा - खुद जा कर करवाओ। मेरे पिता में एक खास बात यह थी कि उनमें धैर्य, साहस और सहनशीलता बहुत थी जो हम तीनों भाई बहनों में किसी में नहीं थी। वो जल्दी न तो आपा खोते और न क्रोधित होते। जीवन में कई झंझावातों से जूझे लेकिन न कभी झुके न कभी डगमगाए और न ही अधीर हुए। मेरे पिता सचमुच मेरे आदर्श थे और हमेशा रहेंगे।
