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meri khamoshiyan

Abstract

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meri khamoshiyan

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कॉलेज के दिन.......

कॉलेज के दिन.......

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मंजिल की और जाते रास्ते मे एक मोड़ ऐसा आया कि आगे जाना तो जरुरी था मगर एक मन था जिसके हाथ मे अगर "समय रोकना" लिखा होता तो, बिना सोचे समझे हमेशा के लिये रोक देता। मगर ऐसा हो नही सकता और ना ही ऐसा हुआ।


एक वो दिन थे जब घर और मम्मी-पापा से पहली बार दूर जाना पड़ रहा था। अब अगर किसी अच्छे कॉलेज से एम एस सी करनी है तो इतना तो करना ही पड़ेगा।


वहा गया तो नये चेहरे के साथ नये लोग मिले जिनको ना जानते हुये भी उनके साथ रहना था। लडके और लड़कियाँ दिन-ब-दिन दोस्त बनते गये, कुछ थोडे दिनो के लिये, कुछ हमेशा के लिये तो कुछ केवल जिन्दगी जीने के तरीके सिखाने के लिये थे। 


फिर जब पहला सेमेस्टर खत्म हुआ तो फाइनल एग्ज़ाम के बाद की वो आदत नही जा रही थी। रोज मोबाइल पर बात करना, वीडियो कॉल और वॉट्सएप्प ग्रुप जिसका नाम लेते ही वो दिन याद ताजा हो जाती है।


क्या क्या नही किया हमने,हर नये दिन बर्थडे मनाना, चाय के बहाने घंटो साथ गप्पे मारना, क्लास बंक करके मार्केट निकल जाना, असाईनमेंट के सहारे बातों मे लगे रहना, वो रात 12 बजे वाली चाय, दिनभर साथ रहने के बावजूद भी रात को घंटो दोस्तो से बात करना............शायद ही कोई दिन ऐसा रहा होगा जब कुछ अजीब नही किया होगा, 

6 महिने ऐसे गुजरे जैसे किसी एक्सप्रैस ट्रेन मे बैठे हो और वो रुकने का नाम ही नही ले रही।....


और फिर कोरोना की नजर लगी की सब छूट गया......वो यार, वो प्यार, वो चाय, वो क्लास, वो लडाई.... सबकुछ

ऐसा लग रहा था जैसे सब खत्म हो गया हो। 

मगर फिर भी एक आस लिये बैठे हैं......जब सब ठीक होगा, फिरसे कॉलेज खुलेगी, फिरसे हमारा मिलना होगा, फिरसे साथ बैठ के चाय के बहाने घंटो बातें करेंगे। फिर से बचे हुये दिनो को यादो मे बदलेंगे। 


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