STORYMIRROR

हरीश कंडवाल "मनखी "

Inspirational Others

3  

हरीश कंडवाल "मनखी "

Inspirational Others

कलयुगी दैत्य विवाह

कलयुगी दैत्य विवाह

6 mins
164

राजू भाई जरा टेंट इस वाले खेत में लगा दो और हाँ काॅकटेल के लिए 8 मेज इधर लगा देना। इधर खाना बनाने वाले के लिए बोल दिया कि शाम के लिए मटर पनीर, मिक्स वेज, दाल मखनी सब बना देना, और कॉकटेल के लिए चिकन और चखना बना देना। 


 इधर महिला संगीत चल रहा है, सारी महिलायें भगवान के भजन में लीन हो रखी हैं, इधर खाने पीने वालों के लिए चिकन मटन बन रहा है, और उधर भगवान के भोग के लिए केला आदि काटा जा रहा है।


   वंही कुर्सी में बैठी बंसती बुआ करनाल से बरसों बाद अपने भतीजे की शादी में आ रखी है, एक कोने पर बैठकर सब देख रही है। जब बंसती बुआ की शादी हुई थी तो उस समय का माहौल और अब के माहौल में जमीन आसमान का अंतर आ गया है, अपनी शादी का संस्मरण वह वहाॅ पर बैठी रिश्तेदारों को सुना रही थी। अपनी शादी का किस्सा गोई सुनाते हुए कहने लगी कि 10 साल पहले भी गाँव में शादी विवाह सामूहिकता के आधार पर होते थे, लेकिन अब वह देख रही थी कि गाँव का कोई भी व्यक्ति भाई बंधु नहीं आये थे, जो महिलायें आयी थी वह महिला संगीत में व्यस्त थी। उनके जमाने में महिलाओं के लिए संगीत तो दूर की बात उन्हें बान और फेरे देखने का भी समय मिल जाय तो गनीमत है।


  अपनी शादी की किस्सा गोई सुनाते हुए बसंती फूफू अपने भतीजियों और और भतीजों की बहुओं को कह रही थी कि आज का जमाना भला और बुरा दोनों हैं, इस पर एक भतीजी ने कहा कि फूफू भला कैसे हैं और बुरा क्यों हैं।


  बसंती बुआ ने कहा कि आज का जमाना भला इसलिए है कि बेटी ब्वारियां भी सभी आराम से सारा कार्यक्रम में शरीक हो जाती हैं, हमारे जमाने में तो उन्हें पानी भरने से फुर्सत नहीं मिलती थी वह बताने लगी कि जब हमारे समय में शादी होती थी तो तीन या पाँच दिन पहले शाहपटा आ जाता था, उसके बाद चूल्हे पर तवा नहीं चढ़ता था जब तक कथा नहीं हो जाती है, तब तक सब पूरी और हलवा ज्यादा खाया जाता था।


  बंसती बुआ अपना संस्मरण सुनाने लगी कि उनकी शादी जेठ के महीने में हुई थी, उस समय गाँव में पानी नहीं मिलता था तो सुबह चार बजे से ही गाँव की बेटी बहु एक किलोमीटर दूर जाकर बंटे पर पानी लेकर आती थी और पानी की टंकीया भर देती थी, उनके लिए अलग से आटे का हलवा बनता था, गाँव का सरयूल उनके लिए हलवा बनाता था। पहले गाँव में शादी का कार्ड नहीं बँटता था बल्कि खास रिश्तेदारों को ही चिट्ठी भेजी जाती थी और गाँव में बतासे दिये जाते थे, हर व्यक्ति अपने हिसाब से आने का न्यौता देता था। अब तो सगे भाई को भी कार्ड दिया जाता था, उसमें काॅकटेल से लेकर बारात में जाने का निमंत्रण अलग दिया जाता है, जबकि पहले कुटुम्ब के लोगों को न्यौता नहीं दिया जाता था, कुटुम्ब के लोग अपने बेटा या बेटी की शादी समझकर शरीक होते थे।  


  शादी से पहले लकड़ी काटने से लेकर घराट में गेहूँ पिसवाने से लेकर उड़द की दाल और चावल साफ करने के लिए पूरे गाँव के लोग आते थे। इसके साथ ही अरसा बनाने से लेकर मालू के पत्तल बनाने की जिम्मेदारी भी गाँव के बड़े बुजुर्गो की होती थी, वहीं बच्चों के लिए शादी वाले घर में बंदनवार सजाने की जिम्मेदारी होती थी। खाना बनाने से लेकर बेटी की विदाई या बहु के आने व सत्यनारायण की कथा तक सब लोग शादी वाले ही घर में खाते थे।  


  बंसती बुआ ने कहा कि आज तो यहाँ कोई दिखाई भी नहीं दे रहा है। उसने दूल्हे की मां के लिए कहा कि हम बैठे हुए हैं कोई काम हो तो बताओ, पत्तल या पुडके ही बना देते हैं, इतने में दुल्हन की मां ने कहा कि दीदी आप आराम से बैठे रहो हमने सब बाजार से मंगवा रखे हैं, अब कौन खा रहा है मालू के पत्तों में खाना। यह तो पुराने रीति रिवाज हैं, अब तो यहाँ भी प्लेट में लेकर खड़े खड़े खाने का रिवाज हो गया है। यह सुनकर बंसती बुआ ने कहा कि मैं तो मालू के पत्तल में फड़ का भात खाने विशेष आयी थी, ऐसा तो हम करनाल में रोज ही खाते रहते हैं।


  इधर शाम हो गयी है, ढोल दमो वाले भी आ गये हैं, साथ में मशकबीन की धुन सुनाई दी तो बंसती बुआ बाहर आई और उनको नौबत बजाने के लिए कहने लगी तो ढोल वाले ने कहा कि ताई जी तुमको ही याद रही नौबत बजाने की, नहीं तो अब तो पहले हमें कोई बुलाता ही नहीं है, यदि किसी ने बुला भी दिया तो उसे नौबत तो दूर की बात है वह पूछता तक नहीं हैं। आप आज भी पुरानी रीति रिवाजों को नहीं भूली हैं। बंसती बुआ ने कहा कि तुम हमारे ही औजी मगनू के बेटे, हो अन्वार आ रही है। मैं विनय की सबसे बड़ी बुआ हूँ करनाल से आयी हूँ।


   शाम के लिए इधर नाॅनवेज में चिकन बनकर तैयार हो गया है, काॅकटेल के लिए मूगफली तल दी गयी हैं, और पनीर को तेल में फ्राई किया जा रहा है, वही जो नाॅनवेज नहीं खाते उनके लिए मटर पनीर और मिक्स वेज बन रही है। बंसती बुआ को जब पता लगा कि शाम के लिए चिकन बन रहा है, वह ठहरी शुद्ध शाकाहारी उसको यह सुनकर अटपटा लगा और भोजन नहीं करने का निर्णय लिया। इधर अपनी छोटी बहिन के कान में खुसर फुसर करते हुए बोलने लगी कि हमारा भी धर्म भ्रष्ट कर दिया है, अब गाँव में भी चिकन मटन बनने लगा है, मैं तो सोच रही थी कि गाँव का वह परंपरागत भोजन मिलेगा, छक कर खाके आउंगी। छोटी वाली बुआ ने मुंह में उंगली रखते हुए चुप रहने का इशारा किया। 


   बंसती बुआ से रहा नहीं गया और अपने भतीजे को बुलाकर कहा कि यह क्या कर रहे हो। तुम शादी में यह राक्षसी भोज बना रहे हो। मदिरा और सुरा तो असुरों की शादी में परोसा जाता है। तुम लक्ष्मी के रूप में दुल्हन लेकर आ रहे या कोई हिडिंबा। 


आज शादियां क्यों फलित नहीं हो रही है, इसलिये की हम अब मानव समाज की प्रवृत्ति को छोड़कर दानव प्रवृत्ति को अपना रहे है। आज सनातन धर्म अन्य धर्मालंबियों से असुरक्षित नहीं है बल्कि स्वयं हिंदु ढोंगियों से असुरक्षित है। हम लोग किस दिशा में बढ़ रहे हैं यह हमने कब सोचा है, आज हम अपने हिसाब से धर्म को चला रहे हैं। बुवा बोलती जा रही थी बाकी सब इधर उधर बगलें झांक रहे थे, सबके मुँह में दही जमी हुई थी।

  बुवा ने कहा कि बेटा तुम भी इसी समाज का हिस्सा हो, लेकिन समाज में बदलाव लाने के लिये किसी को तो बुराई मोल लेनी ही होगी, यदि तुझे लक्ष्मी घर में लानी है तो यह सात्विक भोजन खिला दे, और अगर तुझे भी दैत्य बनना है तो अपनी इस दैत्य बिरादरी को दैत्यों का भोजन करा दो, मैं तो आज उपवास कर लूँगी लेकिन यह जो हो रहा है, वह अच्छे संकेत नहीं है।

   बुवा की बात में सच्चाई थी, सबने सात्विक भोजन करने का निर्णय ही नहीं किया बल्कि पूरे गाँव वासियो ने शादी या मांगलिक कार्यों में शराब और गोश्त नहीं परोसने का निर्णय लिया, सब लोग बुवा की हिम्मत को दाद दे रहे थे, इधर सब पंगत में बैठकर सात्विक भोजन कर ढोल दमो में आँगन में खुशी खुशी नृत्य करने में मग्न थे।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational