Phool Singh

Inspirational

4.8  

Phool Singh

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कलह

कलह

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एक बार की बात है जब एक केवड़िया नामक शहर में एक बेटा हिमेश व उसकी माँ गीता साथ रहते थे। वे दोनों खुशी-खुशी अपना जीवन बिता रहे थे। हिमेश अपनी माँ से बहुत प्यार करता था क्योंकि उनके आलवा हिमेश का कोई रिश्तेदार भी नहीं था। हिमेश ने अच्छी नौकरी भी प्राप्त कर रही थी तो उन्हे किसी चीज की कोई कमी भी नहीं थी। अगर किसी चीज की कोई कमी थी वो वह थी बहू की हिमेश की शादी होने की।

जिसके लिए अक्सर हिमेश की माँ चिंतित रहा करती थी। गीता ने अपने बेटे की शादी के लिए कई सपने देखे थे क्योंकि वह उसका इकलोता बेटा था। इसलिए गीता यह चाहती थी की उसके बेटे की शादी बहुत धूम-धाम से हो। गीता ने समय आने पर बड़ी धूमधाम के साथ उसकी शादी भी करा दी। शुरुआत में सब कुछ कुशलमंगल चल रहा था। धीरे-धीरे हिमेश की पत्नी गौरी जो काफी गुस्से वाली निकली। उसकी व गीता के बीच छोटी-छोटी बात को लेकर अनबन रहने लगी। ऐसे ही धीरे-धीरे यह अनबन एक झगड़े का रूप लेने लगा व घर की खुशियों को ना जाने किसी नजर लग गयी थी।

हिमेश इसी बात को लेकर अक्सर परेशान रहने लगा इस घर की कलह की वजह से उसका ऑफिस में भी उसका मन नहीं लगता था। गौरी जब भी अपने मायके चली जाती थी व अपने ससुराल की सारी बाते उन्हें बताया करती थी जिससे यह बात धीरे-धीरे रिश्तों में और अधिक फूट पड़ने लगी। इसी प्रकार रिश्तों में फूट के कारण उसकी माँ गीता को भीतर-ही-भीतर सदमा-सा लगा गया। दिन पर दिन उसकी बीमारी गंभीर रूप लेने लगी। एक दिन इसी झगड़े के कारण गीता को बहुत तेज हृदय दर्द हुआ उसने अपनी बहू से मदद मांगी लेकिन गौरी ने जान बुझ कर ढोंग कर रही है सोच कर उसकी कोई मदद नहीं की। गीता तड़पते तड़पते परलोक सिधार गई। हिमेश की तो जानों दुनियाँ ही लूट गई थी माँ की मौत को लेकर वह सदा पश्चाताप में डूबा रहता। हिमेश ने कभी नहीं सोचा था की ये घर की कलह एक दिन उसकी माँ की जान ही ले लेगी।


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