कितने आदमी थे?
कितने आदमी थे?
ये कहानी है मिस्टर शिवेन्द्र शर्मा की जो कि होली से जुड़ी हुई है और ये सच्ची घटना है,हुआ यूं कि होली के दिन मिस्टर शर्मा बाहर होली खेलने, चूंकि होली वाले दिन के पहली वाली रात को उन्होंने शोले फिल्म देखी थी, इसलिए दिमाग़ में थोड़ी बहुत यादें फिल्म की रह होगी।
बाहर होली खेलने गए तो भांग वाली ठण्डाई भी दो चार गिलास गटक गए,अब भांग जो चढ़ी तो यूं चढ़ी कि खुद को गब्बर सिंह समझ बैठे और वहां मौजूद लोगों से पूछने लगे कि....
कितने आदमी थे?
सूअर के पिल्लों, बताओं कितने आदमी थे ?
इतना पूछकर वो जोर जोर से हंसने लगते...
वहां मौजूद लोंग शर्मा जी के सवाल से परेशान हो उठे और तीन चार लोंग उन्हें सहारा देकर घर तक छोड़ गए,अब घर आकर उन्होंने अपने बेटे से पूछना शुरू कर दिया.....
बेटा! कितने आदमी थे ?
उन्होंने ये सवाल उससे कई बार पूछा और पूछकर जोर जोर से हंसने लगते
अब मिसेज शर्मा परेशान हो चुकीं थीं, उन्होंने शर्मा जी को नींबू पानी पिलाया,अचार खिलाया कि भांग का नशा उतर जाए लेकिन कमबख्त नशा उतरने का नाम नहीं ले रहा था
अब कुछ देर में शर्मा जी ने अपनी श्रीमती जी से भी वही सवाल पूछना शुरू कर दिया
कितने आदमी थे ?
श्रीमती का दिमाग़ अब बहुत ज्यादा भन्ना गया था वो चीख़ते हुई बोलीं
मेरा एक ही आदमी है और वो हो तुम!जो भांग पीकर गब्बर सिंह बन गया है।।
ये सुनकर शर्मा जी कुछ देर को सन्न रह गए, जवाब सुन कर उनका नशा छू हो गया था।
