ख्वाबों की जमीन पर यथार्थ के कदम
ख्वाबों की जमीन पर यथार्थ के कदम
अध्याय 1
एक ढ़लता दिन और बारिश के पानी से तर एक लहराती, पहाड़़ी सड़क। देवदार की पत्तियों पर अटकी बूंदें झाड़ते सर्द झोंके, बादलों के आते-जाते गुबार, और पहाड़ की सतह पर उगी काई की ठण्डी महक।
फुटपाथ पर खड़ी इस काले रंग की एम्बेसेडर कार की छत पर उंगलियाँ टकटकाते हुए आकाश ने चुपचाप सुधा को ताका, और फिर एक लम्बी-भारी सांस खींचतें हुए दोनों हाथ पेन्ट की जेबों में डाल लिये। सुधा जस की तस है। अभी भी सैंकड़ों फीट गहरी खायी को ही तके जा रही है। इस तरफ देख नहीं रही, हिल तक नहीं रही-एक नाराज़, मग़र बेहद खूबसूरत मूरत सी। मुस्कुराते हुए आकाश ने अपने बालों पर हाथ घुमाया। ”बहुत जिद्दी है।“ उसके पास जाकर वह खुद से कुछ आठ इंच कम इस लड़की के चेहरे के ठीक सामने अपना चेहरा लाया, और- ”तुम ने गाड़ी का स्टीयरिंग भी दो-तीन बार ही पकड़ा है।“ वह मुस्काया
”मैं चला तो लेती हूँ।“ एक बात बोल कर उसने यूँ मुंह फेर लिया मानो अब जि़न्दगी भर बात नहीं करेगी। उसे मुंह फेरना ही पड़ा, वर्ना आकाश के चेहरे पर देखते ही उसका ये बनावटी गुस्सा बोल जायेगा। जाने क्या बात है उसके फरिश्ते से चेहरे में-उन काली आंखों में?
आकाश फिर मुस्कुरा कर रह गया। सीधे होकर अपनी बाँहें सीने पर बाँधते हुए, बनावटी संजीदगी के साथ। ”जानता हूँ-, घर के सामने उस सीधी सड़क पर चला लेती हो तुम, और बैक करते हुए या तो पार्क में घुस जाती हो, या पड़ोसी के गेट के अन्दर।“ हँसी छुपाने के लिए एक हाथ की उंगलियाँ उसने होंठों पर रख लीं। ”उस सीधी सड़क पर तुम से गाड़ी नहीं सम्हलती, यहाँ की पहाड़ी सड़क पर क्या करोगी?“ उसने जोर दिया
”वह दस दिन पहले की बात है....“ उसने एक बार आकाश के चेहरे पर देखा। ”... और ये सड़क तो बिल्कुल खाली है। सिर्फ पाँच किलोमीटर ही तो और जाना है हमें, चलाने दो ना? फिर आप भी तो हैं मेरे साथ, प्लीज़?“
”सुधा अन्धेरा होने लगा है। और सड़क गीली है अभी, जिस तरह तुम ब्रेक लगाती हो, गाड़ी स्लिप कर सकती है। तुम्हारी ख़ुशी के लिए मैं तुम्हें खतरे में नहीं डाल सकता-,“
”आपको मेरी कसम-, अब?“ सुधा ने अपने तरकश का आखिरी तीर छोड़ा, और बड़ी-बड़ी मुस्कुराती हुई आँखों से आकाश को ताकने लगी।
आकाश ने एक तरफ देखते हुए गहरी सांस छोड़ दी-,बस।
जब से ये बहस शुरू हुई थी, तभी से जानता था कि वही हारेगा, और वही हारा भी। उसने बे-मन से चाबी सुधा के हाथ में दी और चुपचाप जाकर गाड़ी में बैठ गया। सुधा ने जाकर स्टीयरिंग व्हील पकड़ा और चोर नज़रों से आकाश की ओर देखा। उसके सीट बैल्ट लगाने के तरीके से ही जाहिर है कि वह नाराज़ है, लेकिन सुधा उसे मना लेगी। उसे मनाना मुश्किल नहीं होता, वह जानती है। उसने मुस्काहट जारी रखते हुए गाड़ी स्टार्ट कर दी।
दस-बीस कदम की दूरी तय करते ही सुधा के चेहरे से वह हल्की-फुल्की घबराहट भी खत्म हो गयी जो आकाश की फिक्र के चलते थी। अब उसे गाड़ी चलाने में मज़ा आने लगा है। खूबसूरत मौसम और एक खूबसूरत रास्ता, और आकाश का साथ-, वह तो जिन्दगी भर इस गाड़ी को चला सकती है। अन्दर ही अन्दर कुछ गुदगुदा रहा है उसके जज़्बातों को। लेकिन दूसरी तरफ आकाश को गुदगुदा रहा है एक अजीब सा डर। सुधा की खुशियाँ छोटी-छोटी ही होती हैं, मगर आज उसकी इस छोटी सी ख़ुशी पर आकाश को अपनी जिन्दगी दाँव पर लगानी पड़ी है, और उसकी जिन्दगी का मतलब अपनी सांसें नहीं है... वह सांसें है सुधा की।
एक गहरे मोड़ पर जैसे ही सुधा ने गाड़ी घुमायी, उसकी सांसें थम गयीं, और छूटी तब, जब वह सकुशल पार हो गया।
सड़क दूर तक खाली पड़ी है, लेकिन फिर भी जितनी बार सुधा सड़क के मोड़ पर गाड़ी घुमा रही है, आकाश घबरा सा जाता है। वह अपनी सीट से थोड़ा आगे आ जाता है, और उसके सधे हुए हाथ खुद ही स्टीयरिंग के पास चले जाते है। ”गाड़ी मुझे चलाने दो, प्लीज़।“ भौंहें सिकोड़ते हुए उसने सुधा से फिर कहा।
”आप मुझे डरा रहे हैं।“
आकाश वापस अपनी सीट पर टिक गया। ”तो ज़रा आराम से चलाओ न? और मुझे घूरने के बज़ाय अपनी नज़रें सड़क पर ही रखो।“
खिड़की पर कोहनी टिकाये बैठे आकाश की तर्जनी लगातार अंगूठे के पोर को मसल रही है। वह जताना नहीं चाहता कि कितना डरा है-,घबराया है। गाड़ी पर सुधा का हाथ साफ नहीं है। ”काश कि मैं आज उसकी जिद ना मानता।“ वह बुदबुदाया।
स्पीडोमीटर की सुई 35 से 40 के बीच ही तैर रही है। सुधा ने आधे से ज्यादा रास्ता आराम से तय कर लिया, और उधर आकाश बस ये ही अन्दाज़़ा लगा रहा है कि अब और कितने मोड़ बाकी है? होटेल पहाड़ की लगभग चोटी पर है, और गाड़ी जितना फासला तय करती जा रही है, उसके साथ दूसरी तरफ खाई की गहराई बढती जा रही है। ऐसे ही एक गहरे मोड़ पर आकाश खाई की तरफ देख रहा था, कि अचानक हार्न की तेज आवाज के साथ किसी ट्रक की हैड लाईट्स उसकी आँखों पर पड़ी।
”सुधा..!!“ वह चिल्लाया। स्टीयरिंग पर अनायास ही चले गये उसके हाथों ने गाड़ी को बायी ओर से आ रहे ट्रक से बचाने के लिए दायीं तरफ घुमा दिया। सुधा के पैर ब्रेक पर पूरी तरह दब गये, लेकिन गाड़ी फिर भी गीली सड़क पर फिसलती हुई खाई के मुंह पर झूलने लगी। आकाश और सुधा ने डर से कांपते चेहरों से एक दूसरे को देखा, और जब तक उनका दिमाग कुछ समझ पाता, गाड़ी पूरी तेजी से खाई पर फिसलती चली गयी।
”आकाष...!“ सुधा की चीखें उसके होठों तक आते ही छिटक कर समीक्षा की आँखें अपने बिस्तर पर खुलीं। उसकी सांसें धौंकनी सी चल रहीं हैं। आँखों के सामने सफेद छत पर लटकता पंखा है, बिल्कुल स्थिर। उसने दो बार पलकें झपकायीं। खुद को अपने बिस्तर पर महसूस करते ही उसने गर्दन घुमा कर दीवार घड़ी देखी, जो रात के ढाई बजा रही है।
एक भारी सांस के साथ उसने कोहनी के बल उठकर, मेज पर रखा पानी का गिलास उठाया और घूंट भरकर फिर उसी तरह सो गयी।


