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Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy Classics

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Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy Classics

खोज

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फिर से अपनी पहचान को कुरेद रहा हूँ।

मैं मझधारों से साहिल का पता ढूंढ रहा हूँ।


 जिंदगी का हर एक मील पत्थर बेगाना- सा हो गया।

मुझ से मेरा चेहरा ही अंजाना -सा हो गया।


 मैं फिर से इस खामोशी को तोड़ रहा हूँ।

खुद से कब मिला था .....आखिरी बार यह सवाल पूछ रहा हूँ।


फिर से अपनी पहचान को कुरेद रहा हूँ।

अजीब कशमकश है मैं ....हूँ।

मैं... था भी ..कभी .....?

यह सवाल फिर से मैं आज खुद से पूछ रहा हूँ।


यह कौन काट रहा बार-बार टुकड़ों में 

मैं फिर भी उन किरचों को जोड़ रहा हूँ।


न जाने कहां से कहां कब ले गई जिंदगी 

मैं आज भी कदमों के निशान ढूंढ रहा हूँ।


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