ख़िलजी

ख़िलजी

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वॉलीबॉल का ये खेल बहुत जम रहा था। एक खिलाड़ी सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहा था, और एक के बाद एक शानदार वॉली से प्वाइंट बना रहा था। उसका नाम बार बार फिज़ा में गूंज रहा था- खिलजी,खिलजी ... सब उसे खिलजी बुला रहे थे।

खेल के बाद उन्नीस वर्षीय खिलजी ने मुझे बताया कि उसका नाम खिलजी नहीं है, आर्यन है,आर्यन यादव !

मैंने पूछा, फ़िर तुम्हें सब साथी ख़िलजी कहकर क्यों बुला रहे हैं?

वो झेंप गया और केवल इतना कह सका - पता नहीं !

उसके कुछ साथी मुस्करा कर रह गए।

कुछ दिन बाद मुझे उन लड़कों से सारी बात पता चली। अद्भुत !

दो साल पहले वे सब दक्षिण राजस्थान के एक नवोदय विद्यालय में पढ़ते थे और हॉस्टल में रहते थे।

एक दिन बातों बातों में एक लड़के पदम सिंह ने अपने एक मित्र को बताया कि मैं तो जीवन में पहली बार अपने निर्वस्त्र शरीर को अपनी पत्नी को ही दिखाऊंगा, उससे पहले कभी किसी को नहीं। बात मित्रों के बीच फ़ैल गई,और दो चार दिन के हंसी मज़ाक के बाद आई गई हो गई।

कुछ दिन के बाद स्कूल के कुछ शरारती लड़कों ने खेल खेल में एक ऐसी शर्त लगा ली कि जो हारेगा उसे जीतने वाले का कहा मानना पड़ेगा।

ये सामान्य बात थी। अक्सर लड़के ऐसी शर्तें लगाते थे और एक दूसरे से चाय, समोसा, चॉकलेट आदि खा कर शर्त जीतने का आनंद लेते थे।

संयोग से इस नई शर्त में आर्यन जीता और पदम सिंह हार गया। लड़कों को कुछ दिन पहले पदम सिंह की कही गई बात याद आ गई। उन्होंने आर्यन को उकसा कर समझाया कि वो पदम सिंह से शर्त हारने के बदले अपना लिंग दिखाने की मांग रखे।

ये सुनकर पदम सिंह घबरा गया। लड़कों के उकसाने पर आर्यन बार बार यही मांग रखता।

एक दिन स्कूल की अंतिम कक्षा के बाद पदम सिंह ने आर्यन से कहा, वो उसके साथ विद्यालय के वाशरूम में चले।

आर्यन तैयार हो गया। दोनों मित्र हंसी खुशी साथ साथ चल पड़े।

जब वहां से लौटे तो आर्यन ने लड़कों से कहा कि पदम सिंह ने शर्त पूरी कर दी।

थोड़े हंसी मज़ाक के बाद सब कैंटीन में चाय पीने चले गए।

पदम सिंह के मित्र ने अब उसे चिढ़ाना शुरू किया कि वो तो कहता था, अपना निर्वस्त्र शरीर सबसे पहले अपनी पत्नी को ही दिखाएगा ! क्या हुआ ?

पदम सिंह ने शांति से कहा- मैं अब भी वही कहता हूं।

सब आर्यन की ओर देखने लगे, कि यदि पदम सिंह निर्वस्त्र नहीं हुआ तो आर्यन ने शर्त पूरी होने की बात कैसे की ?

पर आर्यन कहता रहा - मैंने तो इसका देख लिया !

लड़कों की समझ में कुछ नहीं आया,सब अपनी अपनी अटकलें लगाते रहे कि क्या, कैसे हुआ !

असल में हुआ ये था कि पदम सिंह केमिस्ट्री प्रैक्टिकल की क्लास के बाद लैब से एक बीकर ( कांच का बोतलनुमा पात्र) जेब में लेकर चला गया। उसने वाशरूम में कांच के बीकर से ढक कर अपना लिंग आर्यन को दिखा दिया,और दोनों हंसते हुए चले आए।

सारी बात जानकर लड़के दोनों को चिढ़ाने लगे कि जैसे अलाउद्दीन ख़िलजी ने रानी पद्मिनी को देखा था, वैसे ही आर्यन ने पदम सिंह को देख लिया।

उसी दिन से लड़कों ने आर्यन का नाम ख़िलजी रख दिया जो सालों साल अब तक चला आ रहा था।


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