खिलाड़ी की प्रेम कहानी- भाग-1

खिलाड़ी की प्रेम कहानी- भाग-1

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उसकी गाड़ी किसी कारन से रुकी हुई थी। वो कार से बाहर देख रहा था, तभी उसकी नज़र एक लड़की पर गई जो हर गाड़ी के पास जाके कुछ पूछ रही थी। थोड़ी देर बाद वो लड़की उसके विंडो के पास आके नॉक करने लगी, तभी उसकी नजर उस लड़की के चहरे पर गई वो कुछ बोल रही थी। उसी समय ड्राइवर ने गाड़ी आगे लेली। वो उसको बस देखता रहा, लड़की के हाथ में कुछ था जसकी तरफ इशारा करके वो कुछ बोल रही थी। शायद वो कुछ बेच रही थी। उस लड़की की मासूमियत उसके आंखोमे साफ दिखाई दे रही थी। और दैविक की आंखे उसके मासूम चेहरे पर एक पल के लिए रुक सी गई थी। पता नहीं क्या था पर कुछ खास था उसके चेहरे पर, जो खूबसूरती से परे था। इससे पहले की वो कुछ और सोचता गाड़ी बहोत आगे निकल गई और जिस काम के लिए वो आया था वो काम की सोच उसके दिमाग पर हावी हो गई। उसके बाद जब भी वो उस रास्ते से गुजरता वो लड़की को देखता। वो वहाँ पोंधे बेचती रहती । लेकिन दैविक के मन में उसके लिए कभी कोई खयाल नहीं आया।

दैविक एक क्रिकेटर था, जो कुछ सालो से इंडिया के लिए क्रिकेट खेल रहा था। समय के साथ उसमे एक ठहराव आ गया था। नाही वो नए प्लेयर्स की तरह जोशीला था, और नाही पुराने प्लेयर्स की तरह पॉलिटिक्स करता था। नाही वो सबसे अलग रहता था और नाही वो लोगो के बिच रहता था। उसकी एक अपनी अलग दुनिया थी। उसके अपने कुछ सपने थे, जो इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने से परे थे। वो अपनी एक अलग राह चल रहा था। और शायद यही बात थी जो उसे अपना दिमाग ठंडा रखने में और फेम को अपने ऊपर हावी न होने में उसकी मदत करती थी।

उसे बच्चो के लिए एक ऐसा स्पोर्ट्स क्लब बनाना था जहा पूरी दुनिया से बच्चे आए और हर तरह का स्पोर्ट सीखे और खेले। स्पोर्ट्स को जितना नहीं जीना सीखे। जहा पे उन्हें सिर्फ वर्ल्डस बेस्ट प्लेयर्स नहीं तो वर्ल्डस बेस्ट ह्यूमन बनाया जा सके। । जहा बच्चे खुद अपने गेम बनाये। खुद खेले और खुद जीते । सिर्फ जितना ही नहीं अपनी टीम को जिताना भी सीखे, और काफी कुछ उसके दिमाग में था जो शायद ही किसीको पता था! अपने सपने की शुरुवात उसने एक गांव में जो शहर से कुछ किलो मीटर पर था, वहाँ पर बहोत सारी जमीन खरीद के, कर दी थी। अब वो वहाँ पर कंस्ट्रक्शन शुरू करने जा रहा था।

स्टेडियम का प्रॉग्रेस्स चेक करने के लिए दो महीने बाद वो फिर उस गांव आया था , वापस जाते वक्त वो और कांट्रेक्टर गाड़ी में बात कर रहे थे तभी ड्राइवर को गाड़ी वही पर रोकनी पड़ी, रास्ते में एक पेड़ गिर गया था। कुछ लोग पेड़ हटाने की कोशिश कर रहे थे, उतने में वहाँ एक एम्बुलेंस आई जिसमे के प्रेगनेंट औरत थी जिसे लेबर पेन शुरू हो गया था। तभी वो लड़की ने अपनी खिड़की से देखा और भाग के बाहर आई और उस औरत के पास गई। वो लड़की दैविक के गाड़ी के पास आके मदत मांगने लगी। दैविक वो देख गाड़ी से उतरा और लाख कोशिशों के बाद भी जब पेड़ को हटा नहीं पाया तो उसने उस औरत के लिए पास के गांव से डॉक्टर बुलाया। बारिश के कारन एम्बुलेंस स्टार्ट नहीं हो रही थी! दैविक ने अपनी गाड़ी और ड्राइवर देके उने गांव के हॉस्पिटल में वापस भेज दिया। अब गाड़ी वापस आने तक उसे वही रुकना था। उतने में बारिश होने लगी। तभी फिर से वही लड़की आई और बोली अगर आप चाहे तो मेरे घर आके गाड़ी का इंतज़ार कर सकते हो,मेरा घर यही पास में ही है।

उनके पास कोई और ऑप्शन नहीं था, दैविक और कॉन्ट्रैक्टर उसके साथ उसके घर गए। घर के आंगन में पोंधो की नर्सरी थी। वो उसका घर देखके समझ गया वो सड़क पर पोंधे क्यों बेचती थी। घर में कोई बूढ़ा आदमी था जो सोया था, शायद उसके पिताजी थे। इनके जाते ही वो उठ गए, लड़की ने उने, इन लोगो के बारे में बताया। उसके पिताजी ने उने बैठने के लिए चटाई लगा दी और उनसे बात करने लगे। भूख लगी थी सबको पर कोई कुछ बोले नहीं। लड़की घर के अंदर गई, लड़की के पिताजी और कांट्रेक्टर बात करने लगे। एक घंटे बाद लड़की बहार आई और उसके हाथ में खाने की प्लेट्स थी। तब तक ड्राइवर वापस आ गया, लड़की ने पूछा सब ठीक से पोहोच गए अस्पताल ? डॉक्टर आ गई ? वो बोला हा, पहुँचा भी दिया, डॉक्टर भी आई और अब इलाज कर रहे है। वो बोली, चलो अच्छा हुआ! हम गरीब के घर के आप लोग खाना तो पसंद नहीं करोगे पर बारिश रुकेगी नहीं अभी तो थोड़ा बहोत खा लो। डाइवर ने कहा, ऐसी कोई बात नहीं है दीदी आपने हमारी इतनी मदत की, हम आपको और तकलीफ नहीं देना चाहते। अरे उसमे तकलीफ कैसी, मदत तो आज आप लोगो ने की उस औरत की। उसके पिताजी बोलै जितना भी लगे खा लेना, मेहमानो को भूखा नहीं रखते हम। उसने सबको खाना परोसा। दैविक जब से वहाँ आया था, मुँह से एक शब्द भी नहीं बोला था। पता नहीं किन खयालो में था। सबका खाना हुआ, ड्राइवर ने कहा पेड़ को हटाने के लिए एक बुलडोज़र आया है और थोड़ी देर में हम निकल सकते है । वो लोग गांव की हालत के बारे में बात करने लगे, चुपचाप बैठे दैविक की नज़र लड़की पर गई जो एक कोने में बैठे बैठे सो गई थी। दैविक चुपचाप उसे निहार ने लगा। जब भी वो उसकी तरफ देखता उसे कुछ फील होता कुछ अजीब सा एहसास था, वो खुद उससे अनजान था। उसके हाथ का खाना भी दैविक को अच्छा लगा, बरसो बाद उसने ऐसा खाना खाया था, पर वो बिना कुछ बोले खाने से उठ गया। नजाने क्यों वो चुप्पी साधे हुए था। जैसे ही पता चला पेड़ हट गया है, सब लोगो के साथ दैविक भी उठा और निकल पड़ा। तब उसने ने एक बार पीछे मूड कर देखा और उसे वो लड़की का सोता हुआ मासूम चेहरा फिर से एक बार दिखा जिसे वो शायद पूरी जिंदगी नहीं भूल पायेगा।

कुछ महीने बीत गए, कई बार स्टेडियम के काम के लिये दैविक उधर आया, पर वो लड़की फिर कभी नहीं दिखी। दैविक ने कभी किसी से पूछा नहीं पर अनजाने में ही सही उसकी नजरे उसे ढूंढती थी।

स्टेडियम अब काफी हद तक बन गया था, तब एक दिन.......


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