खौफनाक जंगल
खौफनाक जंगल


माँ " मेने रात को एक बहुत अच्छा सपना देखा",बारह साल की मंजरी अपनी माँ से बडी उत्साहित होकर बोली,।
" क्या सपना देखा मेरी सोनचिडिया ने"? , मंजरी की माँ ने लाड लडाते मंजरी से पूछा,
माँ मेने देखा एक हर भरा प्यारा सा जँगल जिसमें बहुत सुन्दर पन्क्षी थे,और पता है ,माँ " बहुत सुन्दर एक सफेद रंग का खरगोश जिसके साथ मेने खूब उछल कूद की , खिल खिलाते हुये मंजरी जैसे एक दुनियाँ में खो गई हो,
माँ मुस्कुराते बोली बहुत सुन्दर सपना था," चल मेरी लाडो अब सपनों की दुनिया से बाहर निकल आ और हाथ मुँह धोकर आजा में तेरे लिये खाना लगा देती हूँ।
"माँ मुझे जंगल देखना है ,अपने गांव की नहर के पास जो जंगल है वो भी इतना ही सुन्दर होगा ना , मुझे जाना है उस जंगल में माँ,"
खबरदार जो नहर वाले जंगल का नाम लिया तो, अपने चेहरे के उडे हुये रंग और डर को छुपाते हुये बोली, माँ" और रसोई में चली गई,
माँ तो चली गई लेकिन मंजरी के मन में सवाल छोड गई कि आखिर माँ नहर वाले जंगल के बारे मे सुनकर इतना डर क्यूँ गई थीँ
पूरे दिन अपने जंगल के सपने के बारे में सोचकर मंजरी बहुत उत्साहित और खुश थी, लेकिन मंजरी की माँ की उदासी मानो जैसे कोई जंगल के पीछे छुपी किसी कहानी को बयाँ कर रही थी।
शाम होते ही ,माँ," मैं चुटकी के घर जा रही हूँ खेलने के लिये" ,और हाथ मे अपनी कपडे की बनी गुडिया लेकर घर से बाहर दौडती हुये चली गई,
चुटकी कल मेरे साथ नहर वाले जंगल चलेगी बहुत मजा आयेगा, वो कितना सुन्दर लगता है दूर से देखने पर तो सोच अन्दर से कितना सुन्दर होगा।
अरे । "नहीं मेरी माँ बताती है कि वो जंगल जितना सुन्दर दूर से लागता है उतना ही खौफनाक है अन्दर से, ; वहाँ कोई नहीं जाता मंजरी "आश्चर्य भरी आवाज में चुटकी बोली
मैं नहीँ मानती कि वो जंगल खौफनाक है वो उतना ही सुन्दर है जितना कि मेरे सपनो वाला जंगल, और चिल्लाते हुये गुस्से में अपने घर चली गई, ।
पीछे से चुटकी ने मंजरी को खूब आवाज लगायी लेकिन उसने एक ना सुनी
अरे , "आज इतनी जल्दी कैसे खेल खत्म हो गया दोनो सहेलियों का, बडी जल्दी घर आ गई बेटा", मंजरी की माँ हसते हुये मंजरी से बोली; मंजरी बिना कुछ जबाब दिये कमरे के अन्दर चली गई।
दूसरे दिन दोपहर को," माँ मैं चुटकी के घर जा रही हूँ,।
अरे बेटा ,अभी भरी दोपहरी हो रही है बहुत गरमी हैं, शाम को चली जाना, आजा मेरे पास आकर बेठ मेरे पास, दो दिन से मुँह फुलाकर बैठी है, आजा थोडा सा लाड लडा दूँ अपनी लाडो को,।
नहीं माँ अभी जाने दो में शाम को जल्दी आ जाऊंगी,कहकर चली गयी ,।
अरे ,अपनी गुडिया तो लेती जाती , , , माँ हाथ में गुडिया लेते हुये , बोली ।
आज भरी दोपहरी में मंजरी के नन्हे कदम चुटकी के घर के तरफ नहीं, किसी और रास्ते की तरफ बढ़ रहे थे और वो रास्ता था , नहर का रास्ता जिसके पास था वो खौफनाक जंगल जहाँ पिछ्ले दस साल से गांव के किसी आदमी ने एक कदम तक नहीं रखा था,।
भरी दोपहरी की चिल चिलाती गरमी में, पसीने में लथपथ मंजरी, हांफती हुई मंजरी को भनक तक नहीं थी कि वो किस खौफनाक मन्जर की तरफ आगे बढ़ रही थी ।
नहर के पास पहुँचते पहुँचते मंजरी की सांसे जैसे मंजरी की दम तोड रही हो, जैसे ही वो नहर के पास पहुंची , चक्कर खाते हुये ,अपने आप को संभालते हुये और नहर के किनारे पर पडी रेत पर लेट गई और थोड़ी देर अपनी उफन्ती सांसो को, आराम देते हुये , जैसे ही वो नहर से पानी पीने के लिये नीचे झुकी अचानक एक परछायी सी पानी में दिखी जो पलक झपकते ही गायब हो गई, मंजरी एकदम से सहम गई । ,
इस नन्ही सी जान का शरींर नहर तक आते आते जवाब दे चुका था,,,, लेकिन नहर तक आने के बाद उसकी मंजिल उसको बहुत करीब नजर आ रही थी,,।
मंजरी ने पीछे मुडकर एक बार भी ये नहीँ देखा कि वो गांव को मीलोँ दूर छोडकर बहुत आगे आ चुकी है, जहाँ दूर दूर तक केवल सन्नाटा पसरा पड़ा था,
नहर से दिख रहे घने हरे भरे जंगल को देखते ही जैसे मानों मंजरी की आँखे चमक गई हो, जैसे कि सपनों वाला जंगल उसके सामने खडा हो, और नदी के किनारे किनारे वो जंगल की तरफ बढ़ रही थी,, जितनी तेज गति से ये नन्हे कदम बेखौफ होकर इस खौफनाक जंगल की तरफ बढ़ रहे थे ,, उतनी ही तेजी से सूरज ढल रहा था,
मंजरी के जंगल तक पहुँचते ही सूरज ढल चुका था, और घोर अन्धेरा पैर पसार चुका था,, और जैसे ही मंजरी ने पहला कदम जंगल में रखा, चररर चर्ररर की अवाज, एक उडती चमगादड उसके हाथ को खरोचं गई, और मंजरी की धड़कन बढ्ने लगी , अब मजरी का डर उसके मन को कुछ डरावनी सी दस्तक दे रहा था तो , उसने बापस लौटने के लिये जैसे ही कदम पीछे की ओर मोडे कि अचानक से अन्धेरे में एक चमकती चीज दिखायी दी, ये था एक खरगोश जो कि जंगल के काले अन्धेरे में एकदम् जुग्नू की तरह चमक रहा था, मंजरी उसको पकडने के लिये आगे बढ़ी वो तेज दौडा और मंजरी ने भागते हुये जैसे ही हाथ मे पकडा वो अचानक से गायब हो गया, घबराई,हुई मंजरी की रूह काँपने लगी ,वो जंगल से बाहर निकलने के लिये पीछे की तरफ दौडी ,लेकिन घोर अन्धेरे जंगल में डरावने काले पन के आलावा उसको कुछ नजर नहीं आ
रहा था और वो रास्ता भटक चुकी थी ,,
इस खौफनाक जंगल को और खौफनाक बनाने के लिये, सन्नाटा खींचते जंगल में मंजरी की हौंफती सांसो की आवाज मानो पूरे जंगल में गूँज रही हो, और मानो इस जंगल का खौफनाक मन्जर ये पहिचान चुका हो कि किसी इन्सान ने दस्तक दी है ,सालो बाद इस घने वीरांन जंगल में, ।
रात के अन्धेरे का सायं सांय करता सन्नाटा की चीख मानो मंजरी के कांन के पर्दों को फाड् देगी, काली रात में जानवरों की चिन्घाढ़ने की अवाज, घने अन्धेरे में हिलते पेड ऐसे लग रहे थे मानो मंजरी को अपनी आँखो से घूर रहे हो , ,,,,अचानक से एक सीं ::सीं ;सीं ; करती तेज सन सनाती हवा ने मंजरी के बाल उड़ा दिये , मंजरी चीखते हुये सूखी झाडियों की तरफ छुपने के लिये दौडी, कि अचानक किसी कठोर सी चीज से टकरा कर मुहँ के बल नीचे गिर गई, जैसे ही उठने के लिये उसने अपना मुहँ ऊपर किया और हाथ से टटोला तो उसको महसूस हुआ की वो एक जानवर के सर का कंकाल था , वो चीखते हुये और तेज दौडी , और थोडा सांसो को आराम देने के लिये एक बरगद के पेड के नीचे बेठ गई,, हांफते हुई, सूखा प्यासा गला, कि अचानक से पेड के ऊपर से," टप्प ;; टप्प ,,कुछ टपकने की अवाज आई, पानी की आस में मंजरी ने अपने दोनो हाथ उस टपकती जगह फेला दिये ,और जैसे ही पीने के लिये होठों तक लेकर गई तो उसको अजीब सी गन्ध आई और वो चीखते हुये भागी, ये गन्ध खूँन की थी।
मंजरी के एक कदम भी रखने की आहट ऐसे लग रही थी मानो जंगल के सब खुन्खार जानवरों को अपनी तरफ खींच लेगी,,
मंजरी ने अपने दोनो कांन अपने नन्हे हाथो से ढ़क रखे थे, ठुठरती ,डरी सहमी, लडखडाते कदम, और कँपकँपाते होठोँ से बस निकल रहा था" माँ,, ये मेरा सपनों वाला जंगल नहीँ है माँ,, और इस मासूम की सिसकती हुई सिसकियाँ और आँखो में पसरी पडी थकान की नींद , और डर से काँपती रूह ने नीचे पड़े सूखे पत्तों के ढेर में अपने आपको छुपा लिया ,,
अचानक से एक तेज हवा का सांय सांय करता झोंका आया और पत्तों के ढेर सहित मंजरी को उडाकर ले गया,, और लेजाकर पटक दिया एक बड़े विशाल वृक्ष के नीचे, इस खौफनाक मन्जर से निकली मंजरी की डर की चीख ने मानो जंगल का पत्ता पत्ता हिला दिया हो, और वो रोती हुई अपने टांगो को मोडकर सर नीचे घुटनो पर रखकर सिसकियाँ भर रही थी, कि अचानक उसको लगा की उसके सिर पर किसी ने हाथ फेरा हो, और मंजरी के रोंगटे खडे हो गये ,और लगा कि उसकी मौत उसके सिर पर खड़ी है,, मंजरी ने जोरजोर से काँपते हुये कहा,"मुझे मत मारना,मैं ,मैं ,मैं ,, कभी नहीं आऊंगी यहाँ ,मुझे अपनी माँ के पास जाना है।
डरो मत लाडो, सर ऊपर करो और मेरी तरफ देखो ,, मंजरी के कानो तक ये शब्द पहुँचे।
मंजरी की डर की वजह से हिम्मत नही हो रही थी कि वो सिर ऊपर उठाये, उसने हिम्मत करके अपना सिर ऊपर किया , और उसने अपने सामने मिट्टी में ऊपर से नीचे सने हुये , एक आदमीं को देखा और देखते ही मंजरी की चीख निकल गई और डर से अपनी आँखें बन्द कर ली।
"आँखे खोल लाडो डर मत मै हुँ तेरा बापू,, जिसको कि आज से दस साल पहिले इस जंगल में जिन्द्दा गाढ़ दिया था"।
धीरे से मंजरी ने अपनी आँखे खोली ,, " बापू , लेकिन माँ तो बता रही थी कि एक बीमरी की वजह से ,तेरे बापू सरग पधार गये ," मंजरी ने अपनी मासूमियत भरे स्वर में आँख से मोती से झराते हुये बोला।
"जिस घुटन को तेरी माँ दस सालों से महसूस कर रही है उतनी ही घुटन लिये तेरी बापू की ये आत्मा इस जंगल में भटक रही है"
"तो क्या इसीलिये इस जंगल को गांव मे सब खौफनाक जंगल बोलते है? मंजरी ने बुझी हुई आवाज में पूछा
ये जंगल इतना खौफ नाक नहीं,"बेटा , जितने खौफ़नाक है वो गाँव के लोग जिन्होनें मुझ निर्दोष को जिन्द्दा गाढ़ दिया, और मेरी दो साल की बेटी और मेरी पत्नी के सर से मेरा साया छीन लिया,, बापू ने अपने आँसू पोंछते हुये कहा ।
ऐसा क्यूँ किया बापू ,, ?? रोती हुई मंजरी ने पूछा
गांव के अमीर सेठ से तेरी माँ के इलाज के लिये कुछ कर्जा लिया था, और अगले ही वर्ष फसल बेचकर उस कर्जे को चुकाने का सेठ से वादा किया, लेकिन बद किस्मती से उस साल ओला पड गया और फसल बरवाद हो गयी और में सेठ का कर्जा नहीँ चुका पाया, मेने थोड़े दिनो की मन्नत मांगी ,लेकिन सेठ ने एक नहीँ सुनी, और तुझको घर से उठवा लिया रात को तुझको बेचने के लिये, जैसे ही मुझे पता चला मेने भरी सभा में सेठ पर हंसिये से वार कर दिया , और भरी सभा में की गई बेज्जती का बदला लने के लिये सेठ ने गांव के कुछ लोगो को पैसे का लालच देकर मुझे जिन्द्दा दफना दिया इस जंगल में ।
आजा लाडो मेरी गोदी में सर रख कर सोजा,, मैं सुबह होते ही तुझे जंगल से बाहर निकाल दूँगा,,, तेरी माँ की तो सांसे ही रुक गई होंगी, पता नहीँ कहाँ कहाँ तुझे पागलों की तरह ढूँढ़ रही होंगी।
और मंजरी अपने बापू की गोदी में सिर रख कर सो गई सुकून की नींद मानो कि ,एक बेटी अपने बापू के लाड़ को एक रात मे जीवन भर के लिये समेट के ले जायेगी इन आँखो में
और बापू पूरी रात अपनी गोदी में सोती अपनी लाडो को निहारता रहा एकटक ये सोचकर कि लाडो का ये अहसास इस भटकती आत्मा को सुकून दे जाएगा जो पता नहीं कितने जन्मो तक जंगल में भटकेगी।