खैरात
खैरात
ज़ब रमजान शुरू होता है तो हम अपने आस पड़ोस में गरीब ढूंढने में जुट जाते हैं और दिल खोल कर खैरात करने लगते हैं । या करने की सोचते हैं रमजान आते ही सब को खैरात जकात करने की सूझती है। उस से पहले कुछ लोगो को ऐ होश तक नहीं रहता कि हमारे पड़ोसी और गाँव मोहल्ले के लोग किस हाल मे हैं। पर रमजान मे खैरात जरूर करते हैं क्योकि अल्लाह ने फ़रमाया है। अल्लाह ने ये भी फ़रमाया है की अपने आगे पीछे चालीस घर का हिसाब रखो । चाहे वो किसी मजहब का क्यों ना हो उसका मजहब देखे बिना उसकी मदद करो। किसी ने खाना खाया या नहीं कहीं कोई भूखा तो नहीं । पर हमें इतनी फुर्सत कँहा कोई जिए या मरे हम सुकून से हैं बस बात खत्म अब हमारी ऐसी सोच है ।
हुक्म है कि पहले अपने पड़ोस मे देखो कंही कोई जवान लड़की कुंवारी तो नहीं कंही कोई बीमार तो नहीं पहले उसकी मदद करो उसके बाद हज करो पर आजकल ऐसा नहीं हम अपने जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लेते हैं ,आजकल हम हज अल्लाह के लिए नहीं खुद का स्टेटस मेंटेनेंस करने के लिए करते हैं ।
ताकि व्हाट्सप्प और फेसबुक पर पोस्ट कर सकें । और अल्लाह के यहाँ से हुक्म है अगर किसी को कुछ दो तो अगर एक हाथ से दो तो दूसरे कों मालूम ना हो पर आज कल सब कुछ उल्टा हो गया।
अगर आज हम किसी की मदद करते हैं तो उसकी पिक्चर लेते हैं उसको व्हाट्सप्प और फेसबुक पर लगाते हैं उसे सारे दुनिया के सामने उसके गरीबी का मज़ाक उड़ाते हैं।ये कैसी मदद है ये कैसा खैरात जो लेने वाला शर्मिंदा हो जाय दुनिया की नज़रो मे उसकी आँखे झुक चाय।
क्या बिना रमजान के हम किसी गरीब की मदद नहीं कर सकते, किसी को कुछ खैरात नहीं कर सकते? अपने पड़ोस का हाल चाल नहीं जान सकते की वो किस हाल मे हैं ? बैगर उसका मजहब देखे किसी की हम मदद नहीं कर सकते ? क्या हम इतने खुद गर्ज़ हो गए हैं हम कैसे इंसान हैं ? ज़ब हम किसी भूखे को खाना नहीं खिला सकते? किसी का जिस्म नहीं ढक सकते ?
आजकल हम लोग मशीन बन गए हैं जिसके अंदर जान तो है जज़्बात नहीं ,दिल तो है पर मोम नहीं, धड़कन तो चल रही है,पर दिल जिन्दा नहीं । रमजान के अलवा भी अपने आस पड़ोस की मदद कीजए देखें आपको कितना सुकून मिलेगा । वैसे भी कोरोना महामारी फैली है सब काम धंधा बंद है लोग बेरोजगार हैं कुछ लोग ऐसे जरूर होंगे आपके पड़ोस मे जो मुश्किल वक़्त से गुजर रहे होंगे । पर किसी के सामने हाथ नहीं फ़ैलायंगे । कृपा कर के उनकी मदद कीजए वो भी बिना सेल्फी वगैरह लिए हमें उनकी मदद करनी है उनको जलील नहीं । भले वो किसी धर्म किसी मजहब के क्यों ना हो उनका मजहब बाद मे है,पहले वो इंसान है । इंसानियत के खातिर मदद कीजए!