कहानी का बनना बिगड़ना
कहानी का बनना बिगड़ना
क्योंकि कहानियों को लिखते वक्त लेखक कैरेक्टर्स को बनाते और बिगाड़ते जाते है।उनमे अहसास के रंगबिरंगी या कभी कहानी के हिसाब से स्याह सफेद रंग भरते जाते है।और बस फिर हो जाती है कोई एक कहानी तैयार।
लेखक तो वाकई जब तब क़त्ल करते रहते है।कभी उन कैरेक्टर्स का तो कभी उन कैरेक्टर्स के अहसासों का।
रिश्तों का कत्ल करने के लिए कोई हथियार की जरूरत नही होती है लेखकों के लिए।अपने तरीके से लिखते रहना,बस लोगों के स्थापित तरीकों को नजरअंदाज करने का हुनर होना चाहिए।कहानियों में रिश्तें तो खुद ही खुद बेमौत मर जाते है या फिर नए रिश्तों का आगाज़ होता रहता है।
कहानियों को लिखने के बाद मुझे हर बार इसका अहसास होता है की असल जिंदगी में भी तो ऐसा ही कुछ होता है।नजरअंदाज करने से भी कुछ रिश्तों का कत्ल किया जाता है.....
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