yashwant kothari

Comedy

3.4  

yashwant kothari

Comedy

कहानी डबल बेड की

कहानी डबल बेड की

6 mins
472


वैसे मेरी शादी काफी वर्षों पूर्व हो गई थी। उन दिनों डबल बेड का रौब दाब राज-महाराजाओं तक ही था। हर शादी में बेड आने का रिवाज नहीं था। आजकल तो नववधू के साथ ही डबल बेड आ जाता है। इसे बनवाने की समस्या अब नहीं आती। मगर मेरे साथ समस्या है क्यों कि तब डलब बेड साम्यवादी नहीं हुआ था जनाब।

एक रोज पत्नी ने कह दिया, ‘‘अब तो एक बेड बनवा ही डालो। पूरे मोहल्ले में एक हमारे पास ही डबल बेड नहीं है। मुझे तो बड़ा बुरा लगता है।’’

मैंने कहा, ‘‘भागवान अपने पास तो बेडरूम भी नहीं है। ये सब तो राजा-रईसों के चोंचले हैं। हम गरीबों को इन चक्करों में नहीं पड़ना चाहिए।’’ मगर पत्नियां ऐसे आसानी से नहीं मानती। वो भी नहीं मानी। एक दिन कैकयी की तरह कोप भवन में बैठने की धमकी दे बैठी।

आखिर मुझे झक मारकर डबल बेड बनवाने के लिए हां भरनी पड़ी तब से सारी मुसीबतें इस डबल बेड के साथ ही शुरू हुई। यह मेरे पारिवारिक जीवन के इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना सिद्ध हुई है जिस पर भव्य ग्रन्थ लिखा जायेगा। अभी आप सारांश से रूबरू हो जाइये।

सर्व प्रथम एक अदद खाती यानी कारीगर की तलाश शुरू हुई। जो कभी भी सही समय पर नहीं मिलता था। बहुत सोच समझ कर दफ्तर के ही एक मिस्त्री से डबल बेड बनवाने का निश्चय किया। मैंने सोचा कि दफ्तर का आदमी है। कुछ लिहाज करेगा। काम अच्छा और जल्दी पूरा करेगा। फिर घी ढुले भी खिचड़ी में ही ढुले तो अच्छा रहेगा न।

मगर यह मेरा भ्रम था अकसर होता ये कि जिस दिन हमें किसी दावत में जाना होता उसी दिन हमारे ये मिस्त्री महोदय के दूर के रिश्ते में कोई शादी होती। जिस दिन हम पिक्चर जाने का कार्यक्रम बनाते उसी दिन ये महानुभाव अत्यन्त विनम्रता पूर्वक सूचना देते कि उनके ताऊ के बड़े लड़के का इन्तकाल हो गया है सो आज भी काम नहीं हो सकेगा। डबल बेड का सामान बेचारा बाहर लॉन में धूप, बारिश और सर्दी में खराब होता रहता। अचानक एक रोज कारीगर बोल पड़ा आप्त वचन उचारते हुए-

‘‘हुजूर बुरा न माने तेा एक अर्ज करूं।’’

‘‘हां......हां कहो।’’

‘‘सर ये जो लकड़ी आप लाये हैं वो असली सागवान की है ही नहीं। आसाम टीक है और आसाम टीक का फर्नीचर ठीक नहीं रहता। जब खर्च करना ही है तो.....।’’

‘‘ये तुम क्या कह रहे हो ?‘‘

‘‘मैं ठीक कह रहा हूं हुजूर।’’

‘‘तो अब क्या करें।’’

‘‘अब आप बांसवाड़ा का टूर निकाले, मुझे भी साथ ले चलें और वहां से बढ़िया सागवान खरीद लायेंगे। आम के आम गुठलियों के दाम। टी.ए.डी.ए. में काम निपट जायेगा सर।’’

मरता क्या न करता। मैंने दफ्तर में बॉस को पटाया। हम दोनों बांसवाड़ा गये और बढ़िया सागवान खरीद लाये। मगर ये तो बाद में पता चला कि वहां पर कारीगर को कोई घरेलू काम था। जिसके लिये उसने मुझे आम के आम वाला नुस्खा बताया था।

डबल बेड के विभिन्न सामान खरीदने के लिए मैं अपने दफ्तर से अकसर छुट्टियां लेने लगा। मिस्त्रीजी सुबह शाम आते। कुछ खट-पट करते और चले जाते। काम धीरे-धीरे रंगने लगा। अकसर वो कोई न कोई फ़रमाइश कर बैठते। मैं भागा-भागा बाजार जाता, कील, फेवीकोल सनमाईका, प्लाई, नट, बोल्ट, कांच, तार न जाने क्या-क्या लाता, जब तक लेकर आता मिस्त्रीजी रफू चक्कर हो जाते। हालत ये हो गई कि मेरी सभी प्रकार की छुट्टियां खत्म हो गई। केवल मातृत्व अवकाश कुछ तकनीकी कारनों से मुझे नहीं मिल सका। इस प्राकृतिक गलती के लिए भी मैंने ईश्वर को गालियां दी। इधर लकड़ी के टुकड़ों से बच्चे शाम को क्रिकेट खेलने लग गये। दूसरे दिन सुबह कारीगर रामदीन आता और कहता।

‘‘साहब वो छोटा गुटका कहां है ?’’ मैं समझ नहीं पाता क्यों कि गुटका तो छुटका गें द बना कर खेल चुका था। रामदीन फिर गुटके बनाने बैठ जाता डबल बेड का काम किसी शैतान की आंत की तरह बढ़ता ही चला जा रहा था।

इधर मोहल्ले बाजार और दफ्तर में सभी लोगों को यह जानकारी मिल चुकी थी, कि हम डबल बेड बनवा जा रहे हैं। पोस्टमैन मुझे डबल बैड वाला साहब कहने लग गया था। दूध, सब्जी वाले बाहर से ही चिल्लाते।

डबल बेड वाले साहब दूध, सब्जी ले ले.। राह चलते लोग बाग मुझे रोककर अब डबल बेड के हाल-चाल पूछते। मेरी दुखती रग को छेड़ते। मैं बाजार भागता, दफ्तर जाता, घर की और दौड़ता मगर डबल बेड बनकर तैयार नहीं हुआ। इस परेशानी में एक सुझाव यह आया कि अपनी चारपाई से ही काम चला दिया जाये। मगर बात बनी नहीं। इधर मिस्त्री रोज कोई न कोई ऐसी चीज की फ़रमाइश करता जो उसे तुरन्त आवश्यक थी और मैं बाजार दौड़ पड़ता।

सुबह शाम उनके इर्द-गिर्द चक्कर लगाता कि काम पूरा हो मगर नहीं साहब डबल बेड कोई ऐसे ही तैयार हो जाते हैं। डबल बेड पर लगने वाली सनमाईका हम फोरेन की खरीदना चाहते थे, मगर मुझे दुकानदारों ने बताया कि यूरोप में भारतीय सनमाईका की धूम है, मजबूर होकर मुझे भी यूरोप में प्रचलित सनमाईका लेनी पड़ी। प्लाई के बारे में दुकानदार ने बताया कि यह एक्सपोर्ट क्वालिटी की है, मगर मन न माना मैं प्लाई के लिए केरल जाना चाहता था, मगर सम्भव न था, मैंने प्लाई दिल्ली से खरीदी, वापसी पर जब बाजार से पता चलाया तो ज्ञात हुआ कि जो प्लाई मैं दिल्ली से लाया हूं वो दिल्ली के भाव में ही जयपुर में भी मिल रही है। मैंने माथा ठोक लिया।

इधर बच्चे अब मेरा मजाक उड़ाने लग गये थे। उनके अनुसार पापा को डबलबेड फोबिया हो गया था, जो लाइलाज था। श्रीमतीजी का मुंह भी सूजा रहता था और काम था कि फैलता ही चला जा रहा था रामायण काल की राक्षसी सुरसा के बदन की तरह। मैंने रामदीन को एक रोज डांट लगाई वो तीन दिन तक आया ही नहीं। मैंने घर जाकर उसे मनाया, बारिश सर पर थी। बाहर पड़ा-पड़ा सामान खराब होने की सम्भावना थी। मिन्नत करने पर रामदीन आया, इस बार उसके तेवर ठीक नहीं थे।

उसने जल्दी-जल्दी सब कल पुर्जे जोड़े और मुझे कहा इसे कुछ दिन ऐसे ही पड़े रहने दो। अब डबल बेड लगभग तैयार था। मेरा मन मयूर नाचने लग गया था। एक रोज मैं उस पर बैठा मगर ये क्या ‘‘चर......चर.....की आवाज के साथ ही मैं पूरा डबल बेड के अन्दर समा गया था। बच्चों ने खूब मजाक बनाया। कई दिन तक वे मुफ्त में मनोरंजन का आनन्द लेते रहे।

मैंने दूसरे दिन रामदीन से कहा तो बोला।

‘‘साहब वो प्लाई जो आप दिल्ली से लाये थे, पुरानी थी, टूट गई। नई लगवा लें । अब फिर प्लाई खरीदी गई। लगवाई गई। हमारे घर के एक मात्र कमरे में डबल बेड शोभित किया गया। मगर मैंने किसी को बैठने नहीं दिया। अब हर कोई आता-जाता तो हम उसे डबल बेड बताते मगर बैठने नहीं देते। बच्चे अकसर कहते, ‘‘ये हमारा डबल बेड है, मगर देखने के लिए, सोने या बैठने के लिए नहीं।’’

एक रोज हिम्मत करके हम इस पर सो गये। रात भर इससे चर-चर की आवाज आती रही। कोई सो न सका। करवट बदलने मात्र से डबल बेड के अंग-अंग से आह निकलती। एकाध बार आंख लगी तो सपने में डबल बेड दिखाई दिया। मैं डर गया कि आखिर यह है क्या बला।

किस्सा कौताह ये कि डबल बेड में डबल बेड (दोहरा बुरा) ही है और कुछ नहीं। मैंने मित्र से कहा ‘‘यार डबल बेड बनवा लिया है।’’ वह बोला यार बेड तो नया है मगर सोने वाले तो बीस साल पुराने हो क्या खाक मजा आयेगा डबल बेड का। बेकार ही जेब कटवा डाली अपनी। आप ही कहिये कट गई न गरीब कर्मचारी की जेब।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy