कबूतर ने कैसे कज़ाक की रक्षा की
कबूतर ने कैसे कज़ाक की रक्षा की
लम्बी-चौड़ी विस्तीर्ण स्तेपी में कज़ाक का सामना तुर्की फ़ौज की टुकड़ी से हुआ। आत्मसमर्पण करना कज़ाक को अपमानजनक लगा और उसने मुकाबला करने का फ़ैसला किया। अपने भले घोड़े को चाबुक मारा और टीले पर चढ़ गया। दुश्मनों का इंतज़ार करने लगा। तुर्क टीले के पास आ, उसे चारों ओर से घेर लिया और चिल्लाए:
“देख रहे हो, हम कितने सारे हैं, और तू अकेला है ! अपने हथियार डाल दे और हमारे सामने आत्मसमर्पण कर दे !"
कज़ाक ने जवाब दिया: “चाहे मैं अकेला हूँ और तुम बहुत सारे हो, मगर कज़ाक कभी दुश्मन के सामने आत्मसमर्पण नहीं करता। जब तक ज़िंदा हूँ, तुम से लड़ता रहूँगा।"
तुर्कों को गुस्सा आ गया, वे कज़ाक पर टूट पड़े। वह सुबह से आधी रात तक उन्हें काटता रहा, टीले के चारों ओर मृतकों का पहाड़ लगा दिया। कज़ाक की तलवार कुंद हो गई। देखा कज़ाक ने कि उसका अंत निकट है। मगर तभी अँधेरा हो गया।
तुर्क पीछे हट गए। उन्हें डर था कि कहीं अँधेरे में अपनों ही को न काट दें। उन्होंने फ़ैसला किया कि सुबह तक तो कज़ाक उनसे बचकर कहीं जाएगा नहीं। कज़ाक आराम करने लगा। उसने घोड़े की ज़ीन खोल दी और उसे खुला छोड़ दिया। अपने आप घर जाने दो और ख़ुद टीले की चोटी पर मुर्दा होने का बहाना बनाते हुए पसर गया।
उसे पता था कि तुर्कों को मुर्दे अच्छे नहीं लगते। उन्हें वे हाथों से या हथियारों तक से छूते नहीं हैं, डरते हैं कि कहीं नापाक न हो जाए।
सुबह तुर्क उठे और टीले की ओर लपके। देखते क्या है कि कज़ाक पड़ा है और उसके सिर के पास भूरा कबूतर बैठा हैऔर चिड़िया चहचहा रही है। तुर्कों को बड़ा अचरज हुआ: कज़ाक के पैर, सीना कुछ भी कटा हुआ नहीं है, मगर वह पड़ा है, हिल-डुल नहीं रहा है, सिर्फ हवा उसकी मूँछे हिला देती थी। तुर्क सोचने लगे- कहीं ये कज़ाक हमें धोखा तो नहीं दे रहा है, मुर्दा होने का दिखावा तो नहीं कर रहा है। उन्होंने म्यानों से तलवारें निकालीं, कज़ाक को चीरने की तैयारी की, मगर डर भी रहे थे कि अगर कहीं वो सचमुच में मुर्दा हो तो ? उन्होंने पंछियों से पूछने का फ़ैसला किया– वे धोखा नहीं देंगे, सच बोलेंगे।
तुर्कों ने चिड़िया से पूछा: “ऐ, नन्हे पंछी, तू बता, वो ज़िन्दा है या नहीं ? चिड़िया एक पैर पे फुदकी और चहचहाई, “ज़िन्दा है, ज़िन्दा है ! ज़िन्दा, ज़िन्दा है !” मगर एक तुर्क यूँ ही कबूतर की तरफ़ मुड़ा और पूछने लगा: “तू क्या कहता है ?”
कबूतर ने पंख समेट लिए और गुटर गूँ करते हुए बोला: “मर गया...मर गया...”
तुर्क सोच में पड़ गए,समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें क्या करना चाहिए – किसकी बात सुने, चिड़िया की या कबूतर की. और कज़ाक तो पड़ा, कोई हलचल नहीं, सिर्फ हवा में मूँछें थरथरा रही हैं।
तुर्क टीले पर बैठ गए, पैर मोड़ लिए। बैठकर सोचने लगे। शाम तक बैठे रहे। फिर उठे और कहने लगे:
“चूँकि कज़ाक बेसुध पड़ा, हिल-डुल नहीं रहा है, मतलब वो मर गया है और ये चिड़िया, नामाकूल पंछी है, हमें धोखा देने चली थी।”
घोड़ों पर बैठे और चले गए। कज़ाक कुछ देर और लेटा रहा, फिर उठा और अपने घर चल दिया।
तब से ख़ामोश दोन के इलाके में चिड़िया को बातूनी कहने लगे। बूढ़े और जवान कज़ाक उसे अपने घरों की छतों से भगा देते हैं मगर कबूतर जिसने कज़ाक को मौत के मुँह से बचाया था, अपने आँगनों में आने देते हैं और उसके पिल्लों की हिफ़ाज़त करते हैं।