कभी कभी सोचता हूं
कभी कभी सोचता हूं
कभी कभी मैं सोचता हूं कि आजकल दिखावा कितना हो गया है ? अब प्रश्न यह है कि क्या मैं कभी सोचता भी हूं ? आप लोग सही सोच रहे हैं । मैं कभी नहीं सोचता हूं । और सोच भी नहीं सकता । सोचने के लिए एक अदद दिमाग की जरूरत होती है । वो अपने पास शुरू से है ही नहीं । अब "ऊपर वाला माला" जब खाली हो तो क्या कोई आदमी सोच सकता है ?
लेकिन अपने देश में ऐसा बहुत होता है । जिनको भगवान ने "दिमाग" नाम की चीज दी ही नहीं वे नेता, अभिनेता , अर्थशास्त्री , विशेषज्ञ और पत्रकार भी बने हुए हैं । बहुत सारे "पप्पू" ऐसे हैं जो देश का प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब देख रहे हैं। जब जान्हवी कपूर हीरोइन बन सकती है और वरुण धवन हीरो, तो फिर देश में कुछ भी हो सकता है । तो उसी तरह मैं भी कभी कभी बिना दिमाग के भी सोच लेता हूं ।
तो आज मैंने क्या सोचा कि जब "मातृ दिवस" आता है तो सोशल मीडिया पर "मां" की महिमा का बखान होता है । सब लोग मां के ऐसे आज्ञाकारी बच्चे बन जाते हैं जैसे कि उनसे बड़ा मातृ भक्त और कोई नहीं है इस दुनिया में। मां का खूब प्रशस्ति गान होता है सोशल मीडिया में और घर में मां दर्द में कराह रही होती है ।
इसी तरह जब "पितृ दिवस" आता है तो वे अपने देवता तुल्य पिता के ऐसे बच्चे बन जाते हैं कि "श्रवण कुमार" भी शर्म से चुल्लू भर पानी में डूब जाए । गजब की पितृ भक्ति का प्रदर्शन होता है।
फिर मैं सोचता हूं कि अगर लोग इतने ही मातृ और पितृ भक्त हैं तो फिर ये वृद्धाश्रम में कौन लोग रहते हैं ? फुटपाथों पर कौन हैं जो दर दर की ठोकरें खा रहे हैं ?
घरों में लोहे की जंजीरों से बंधे हुए कुछ वृद्ध माता-पिता के फोटो या वीडियो आते हैं । क्या वो इसी दुनिया के हैं या कोई और भी दुनिया है , जिसके फोटो और वीडियो हमें इसलिए दिखलाए जाते हैं जिससे हम गर्व कर सकें कि देखो, हम लोग कितने अच्छे हैं, कितने महान हैं जो अपने मां बाप को कितना सम्मान देते हैं । वरना वो फोटो और वीडियो वाला हाल भी किया जा सकता है उनका । ऐसे फोटो और वीडियो देखकर दिल श्रद्धा से भर उठता है उन लोगों की पितृ और मातृ भक्ति देखकर ।
जीते जी जिन्हें पानी की एक एक बूंद को तरसाया मगर मरने पर हरिद्वार में गंगा स्नान कराते हैं । जिंदा थे तो खाने के लाले पड़े हुए थे जिनके, मगर श्राद्धों में खीर मालपुआ खिलाए जाते हैं । अरे, कुछ शर्म बची हुई है या वो भी बेच खाई , दोगलों ?
हर औरत यह चाहती है कि उसका बेटा तो श्रवण कुमार हो मगर पति श्रवण कुमार के विपरीत हो । आज यह मातृ शक्ति के सोचने का विषय है कि उनकी वजह से कितने लोग बेघर होकर दर दर की ठोकरें खा रहे हैं । बात कुछ कड़वी है मगर सत्य तो कड़वा ही होता है ।
जब जब भी मैं ऐसी बातें सोचता हूं तब तब मुझे "पागल" करार दे दिया जाता है । मगर मुझे ऐसा "पागलपन" बहुत अच्छा लगता है और जी चाहता है कि मैं जिंदगी में हमेशा ऐसा ही पागल बना रहूं।
क्यों साथियों, क्या खयाल है आपका ?