Akanksha Pathak

Tragedy

4.5  

Akanksha Pathak

Tragedy

काश हम भी होते रामअवतार

काश हम भी होते रामअवतार

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मैं अपने कमरे की खिड़की से सुन रही हूं।

पड़ोस के लाखन लाल जी आज बड़का शहर जा रहे हैं।

 पतिपत्नी के बीच मे रह रह कर खिटपिट हो रही।

गांव के हरिहर के बाबूजी रामअवतार महतो जी के साथ बड़का शहर जा रहे लाखनलाल जी।

रामोतार बिमार है बड़का हस्पताल मे भर्ती कराया गया है।

अरे ऊ लोग पढा लिखा नहीं है न अकेले बड़का शहर कैसे जायेगा इसिलिए लाखन लाल जी भी साथ जायेंगे। 

 गाँव के सबसे बुधियार बाबू हैं लाखन लाल जी।

पर पत्नी को वो एक दम निपट मूरख लगते हैं।

हलाकी गांव वाले लोग कहते हैं

"अहा! एतना पढे लिखे हैं।

खाली परोपकार का काज करते हैं।"

गांव के हर दुखियारे के साथ खड़े मिलते हैं लाखन लाल जी

रामोतार (रामअवतार) को बडका हस्पताल मे भर्ती कराया गया है। बडका शहर मे कोई बुधियार आदमी के बिना इलाज नहीं होता है न इसलिये लाखन लाल जी भी जायेंगे।

उनकी पत्नी को ई परोपकार का काज नहीं पसन्द।

मैं खिड़की से सुन राही हूं लाखन लाल कहते हैं तुम कैसी पत्नी हो जी परोपकार का कारज करने से रोक देती हो पत्नी उन्हे बीच मे ही टोक देती है काहे जी परोपकार घर के बाहर के लोग की साथ ही होता है का?

 घर मे भी तो ससुर जी बहुत दिन से बिमार चल रहे बुखार से देह तप रहा है ,पर उनके साथे डॉक्टर के यहां जाने आप खऊझा( झल्ला) जाते हैं

और सासू मां भी तो हस्पताल मे भर्ती रही थीं डॉक्टर बोला रहा 6 बोतल पानी चढ़ाने को पर 3 बोतल चढा उसके बाद जबरदस्ती नाम कटा के घर ले आए रहे सासू माँ को?

शायद लाखन लाल जी के हिसाब से परोपकार त ऊ होता है जिसमे चार गो लोग बुझता है की परोपकार हो रहा है।

घर के लोग के साथ कही परोपकार हुआ है भला।

 उनकी पत्नी भी अब बिमार रहने लगी है।

 डॉक्टर को दिखाये है।

डॉक्टर को दिखाने ले जाते वक़्त गरियाये भी खूब कहाँ से ई हरमजादी सब हमरे करम मे बथा गई है।

इसके इलाज पीछे कोई परोपकार नहीं हो पा रहा।

इधर बाबू जी सोच रहे हैं की काश हमहु होते राम अवतार ,अम्मा सोच रही काश हम भी होते रामोतार और पत्नी भी यही सोच रही।

उधर लाखन लाल जी हरिहर के बाबूजी रामोतार को ले के बडका शहर जाते हैं इधर उनके अपने बाबू जी कई दिन के बोखार के बाद दुनियां छोड़ जाते हैं।

मैं अपनी खिड़की से आज भी सुन रही हूं लाखन लाल जी की पत्नी की सिसकियां वो कह रही हैं "हाय बाबूजी ई परोपकार के पीछे आपको एकलौते बेटे के हाथ से अंतिम समय मे गंगाजल और तुलसी पत्ता तक नहीं नसीब हुआ।"

(मुझे लगता है कुछ लोग वाकई होते हैं ऐसे जो पारिवारिक तो हो नहीं पाते पर सामजिक होने का स्वांग खुब रचते हैं।)


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