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Prafulla Kumar Tripathi

Drama

4  

Prafulla Kumar Tripathi

Drama

काली गाड़ी लाल सवार !

काली गाड़ी लाल सवार !

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900

मुहल्ले में उस काले रंग की गाड़ी का बड़ा दबदबा था। वह जिधर से गुजरती लोग बाग किनारे हो जाया करते थे मानो कोई लाट साहब की सवारी आ रही हो !उस पर सवार साहब को वैसे तो रिटायर हुए लगभग दस साल हो गये थे लेकिन उनकी लाल बत्ती का मोह अभी नहीं छूट पा रहा था। साहब से उन्नीस उनका ड्राइवर भी नहीं था। हमेशा वह दनदनाती हुई गाड़ी चलाया करता था। कोई उसके नीचे दबे तो अपनी बला से !

हां,तो बात हो रही थी उस काले रंग की गाड़ी और उसके सवारों कीऔरऔर उस गाड़ी पर अब भी टंगी उस लाल बत्ती की। असल में इस कहानी की चर्चित गाड़ी के मालिक मिस्टर जवाहर सिंह आईपीएसथे और उनकी पहचान बेहतर यह रहेगी कि वे अपने ज़माने के महाभ्रष्ट पुलिस अधिकारियों में उनकी गिनती हुआ करती थी। जिस ज़िले में रहे उनकी निगाह उस ज़िले के धन्नासेठों पर टिकी रहती।

उनके लिए वे हर तरह की मदद करके अपनी तिजोरी भरते रहे। जिस शहर में मौक़ा लगा तो मौक़े की ज़मीन भी औने पौने दाम पर लिखवा लिये। सच यह था कि आजादी के बाद के देश में यह जो शासकों का नया तबका आईएएसऔर आईपीएसका तमगा लगाकर हर ज़िलों में बैठ गया था वह अपने को उन्हीं अंग्रेजों जैसा हाक़िम समझ बैठा था जिन्होंने बरसों राज किया था। सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश को जमकर लूटा था। देश की जनता अशिक्षित थी और चंद देशभक्तों ने उनमें जनचेतना जगाई तो आज़ादी का बृहद शंखनाद हुआ। संयोग से आज़ादी मिल भी गई लेकिन ऐसी आज़ादी का मक़सद पूरा होना तब तक संभव नहीं था जब तक उसके नागरिक शिक्षित ना हों।

नये शासकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी। लेकिन यह जो राजनीति होती है वह बहुत आत्मकेंद्रित हुआ करती है। आजादी के लिए जिस पार्टी नहीं मुख्य भूमिका निभाई उसको बागडोर मिलनी ही थी और उनको अपने किये गये बलिदान की क़ीमत भी वसूलनी थी। वही हुआलगभग वैसा ही होता रहा। आजादी के तीन चार दशक तो उन टोपीधारियों और इन लालबत्तियां लगाये साहबों ने आपसी तालमेल से अपनी अपनी तिजोरियां भरने में बिता दिये। मिजवाहर सिंह भी उन्हीं कुछ विशेष लोगों में शामिल थे।

उनकी शानदार लाइफस्टाइल के बारे में लोगों को कौतूहल बना रहता था। चाशनी में डुबो कर उनके बात करने का ख़ास सलीक़ा उन्हें और भी महान बना दिया करता था।

लेकिन हर दिन एक जैसा थोड़े ना रहता है। ये जो लाल बत्तियों वाला दौर था इसे भी एक न एक दिन ख़त्म ही होना था। सूबे के मुखिया ने ऐलान कर दिया कि अब कोई भी अधिकारी लाल या नीली बत्तियां लगाकर नहीं चलेगा। मिजवाहर के लिए तो मानो यह बहुत ही बेकार का निर्णय था। उनकी दादागिरी का एक हथियार उनसे छिना जा रहा था। उन्होंने सरकारी फरमान को अंगूठा दिखाते हुए अपनी काली गाड़ी की शोभा बरकरार रखी और लाल बत्ती जस की तस लगी रहने दी। जाड़े का दिन था। शहर में एक नये एसएसपीआए हुए थे। हर थाने में बढ़ते अपराधियों की धर पकड़ का सरकारी हुक्म तामील हो रहा था। गाड़ियों की चेकिंग अक्सर हो रही थी। अचानक एक दिन इस काली गाड़ी का भी आमना- सामना थानेदार से हो ही गया।

"रोकोरोकोगाड़ी रोको। " एक सिपाही ने गाड़ी के लगभग सामने आते हुए गाड़ी रोक दी।

"गाड़ी किनारे लगाओ और काग़ज निकालोसाहब के पास चलो। "सिपाही ने ड्राइवर से कहा।

ड्राइवर को सिपाही की यह बात बहुत अपमानजनक लगी। तमतमाते हुए बोला-

"आप जानते नहीं हैं कि यह गाड़ी किसकी है?"ताव खाये ड्राइवर ने कहा।

सिपाही ऐसे उत्तर की उम्मीद में नहीं था। अचकचाते हुए बोला-

"किसकी है बे ?"

"साहब आईपीएसहैंतुम्हारी नौकरी ले लेंगे। "ड्राइवर ने अब उस सिपाही को ताव दिखाना शुरु किया।

तब तक शोरगुल सुनकर दारोगा भी पास आ गये और जब उनको पूरा माजरा पता चला तो उन्होंने गाड़ी थाने भिजवा दी और ड्राइवर को घर जाकर गाड़ी के पेपर लेकर आने को कहा।

भन्नाते हुए ड्राइवर घर पहुंचा और अपने साहब को सारी बातें बताईं। साहब भी सन्न रह गये। उनको यह कतई उम्मीद नहीं थी कि एक दारोगा उनकी ऐरावत को रोक लेगा। फोन पर फोन करने लगे लेकिन बात कुछ बन नहीं रही थी। थक हार कर ड्राइवर के हाथ गाड़ी के पेपर्स भेजने में ही उन्होंने भलाई समझी।

ड्राइवर को उसके अब तक के सेवाकाल में इतना बड़ा झटका पहली बार लगा था। किसी तरह थाने पहुंचा तो यह देखकर सन्न रह गया कि उसकी गाड़ी से लालबत्ती उतारी जा चुकी है। उसका ख़ुद का चेहरा तमतमा गया। ऐसा लगा मानो किसी ने उसकी वर्दी से तमगा नोंच लिया है। उसको गश आ गया। किसी तरह संभल कर उसने गाड़ी के पेपर्स एक एक कर दिखाए,अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया और गाड़ी लेकर वापस बंगला पर आ गया।

उस मनहूस दिन और उसके अगले कई दिन तक मिस्टर सिंह हाथ पांव मारते रहे कि कम से कम उस दारोगा का ही ट्रांसफर हो जाय जिसने उनकी प्राणदायिनी गाड़ी की लाल बत्ती हटवा कर उन्हें शक्तिहीन कर दिया है। उनके भौकाल राज्य का असमय सूर्यास्त कर दिया है !

क्या वह सफल हो पायेंगे ?


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