कालचक्र
कालचक्र
सुबह की ठंड में एक बूढ़े सज्जन अख़बार के कागज से अपने तन को ढककर गर्मी पाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे। सुबह की सैर पर निकले लोगो की चहल पहल धीरे धीरे बढ़ने लगी थी। अचानक एक तेज आव़ाज से वह बंदा चौंक गया, “अरे! रमाकांत, आज सुबह जल्दी ही यहाँ आ गए?”
रमाकांतने गणपत की ओर देखकर नाराजगी से कहा, “हाँ"
दोस्त की नाराजगी को पहेचान गए गणपतने सांत्वना भरे स्वर में कहा, “क्या हुआ दोस्त? क्यों इतना परेशान सा यहाँ बैठा है? घर पर सब ठीक तो है न?” गणपतने एक ही सांस में कई सवाल किए।
रमाकांत, “कल मेरी पुत्रवधु सुधा ने फिर से मेरे साथ तकरार की।“
गणपत, “तो फिर तेरे बेटे सुरेश ने क्या कहा?”
रमाकांत हताशा भरे स्वर में बोले, “उसने कहा पिताजी, रोज रोज के इस लड़ाई झगड़े से मैं परेशान हो गया हूँ। ऐसा बोलकर उसने मुझे घर से बाहर निकाल दिया।”
गणपत, “क्या बात कर रहे हो यार? तेरा सुरेश शादी से पहेले तो एकदम सीधा सादा लग रहा था। उसने तेरे साथ ऐसा किया इस बात पर मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है।“
रमाकांत, “हाँ यार, मेरा बेटा सुरेश तो लाख मोल का हीरा है... हीरा... लेकिन वह जरा सा...”
गणपत, “बीवी की बातों में आ गया.. यहीं न? और ऐसे बेटे को तू लाख मोल का हीरा कह रहा है? अरे! मेरे बेटे महेंद्र को देख उसकी बीवी शोभा भी आए दिन हम से लड़ती झगड़ती रहती थी लेकिन एक दिन मेरे बेटे ने उसकी बीवी को मुँह पर कह दिया कि अगर घर छोडकर जाना है तो तू जा। मेरे माँ बाप ने बड़ी तकलीफे झेलकर मुझे पालपोष के बड़ा किया है। अब इस उम्र में वह कहीं नहीं जाएंगे। तब से शोभा सीधी हो गई है।“
रमाकांत, “तेरी किस्मत अच्छी है दोस्त, लेकिन अब मुझे इस बात की चिंता है की अब इस उम्र में कहाँ जाऊं? कहाँ रहूँ?
गणपत, “अरे! कहाँ जाऊं मतलब? अपने घर वापस जाओ और निकालना है तो अपने बेटे को घर से बाहर निकालो... घर तो तेरे नाम पर ही है न?”
रमाकांत, “घर मेरे नाम पर नहीं है... दोस्त, इकलौता बेटा है इसलिए मैं सारी प्रोपर्टी उसीके नाम से खरीदता था। घर भी उसके नाम पर है। अब क्या करूं?”
रमाकांत. “अब करना क्या! जब तक कोई रास्ता नहीं निकलता तब तक चल मेरे घर पर आकर रह ले। मेरा महेंद्र कुछ नहीं बोलेगा... चल.. चल यूँ इस तरह यहाँ बैठे मत रह.. सब देख रहे हैं...”
रमाकांत, “नहीं, दोस्त, इस तरह किसी के घर में पड़े रहना अच्छी बात नहीं है... वैसे भी मैं तुम पर बोझ बनना नहीं चाहता...”
गणपत, “यह क्या कह दिया दोस्त! एक दोस्त दुसरे दोस्त पर बोझ कब से होने लगा? अगर यही हालात मेरे साथ होते तो क्या मैं तुझ पर बोझ बना होता?”
रमाकांत, “अरे गणपत, तुझे तो बुरा लग गया... दोस्त मैं तेरी पुत्रवधू शोभा का स्वभाव अच्छे से जानता हूँ... कहीं मेरी वजह से तुझे भी इस बांकड़े पर आकर बैठना न पड़े।
गणपत, “अरे! बैठना पड़ेगा तो बैठेंगे... बचे खुचे जिंदगी के कुछ साल साथ में गुजारेंगे। चल उठ यहाँ से...”
रमाकांत: नहीं दोस्त, लोग मेरे बेटे के बारे में अनापशनाप बोलेंगे, कहेंगे देखो इकलौता बेटा है फिर भी बाप दोस्त के घर पर रहता है। उसकी समाज में क्या इज्जत रह जाएगी?”
गणपत, “कमाल है! तेरे ऐसे यहाँ बैठे रहेने से उसकी इज्जत बढ़ेगी?”
रमाकांत, “मैं अब यहाँ रुकने वाला नहीं हूँ।“
गणपत, “तो कहाँ जाएगा?”
रमाकांत, “सोचता हूँ कि कहीं दूर तीर्थयात्रा पर चला जाऊं। वैसे भी अब मेरी जिंदगी कितनी बाकी है! वहीँ भगवान के चरणों में बाकी के दिन गुजार दूंगा।“
गणपत, “तेरा बेटा सुरेश इतना नालायक निकलेगा एसा सोचा नहीं था।“
रमाकांत बौखलाकर बोले, “अरे! सुरेश को कुछ मत बोल... वह तो लाख मोल का हीरा है लेकिन वह तो जरा...”
गणपत गुस्से से बोले: “कमाल है यार, हम माँ बाप कब सुधरेंगे? तेरे बेटे ने तुझे घर से बाहर निकाल दिया। तुझे दरदर की ठोकरें खाने पर मजबूर कर दिया फिर भी तू उसी की तरफदारी कर रहा है?” थोडा रुककर गणपतने आगे कहा, “किसी ने सच कहा है एक बाप चार चार बच्चों को पालपोष कर बड़ा कर सकता है लेकिन चार चार बच्चे मिलकर एक बाप को संभाल नहीं पाते... लानत है ऐसे बच्चों पर।“
रमाकांत बैचेन होकर बोले, “अब जो हुआ उसे छोड़ो। अब उन बातों को दोहराने से क्या फायदा?
गणपत, “रमाकांत, देखना ऐसे कपूत की हालत ख़राब ही होगी। जो इंसान अपने माँबाप को संभाल नहीं सकता वो इंसान नहीं हैवान... है... हैवान...”
रमाकांत, “अब छोडो इन बातों को... इसमें बेचारे सुरेश का क्या दोष?”
गणपतने असमंजस में कहा, “अरे! तू कैसा इंसान है!!! सुरेश के इस व्यवहार के बाद भी तू उसकी तारीफों के पुल बांध रहा है! देखना जिस बेटे ने अपने पिता को घर से बाहर निकाला है उसकी संतान भी यही देखेगी और यही सीखेगी भी। उसे इश्वर कभी माफ़ नहीं करेगा। देखना सुरेश का बेटा भी एकदिन सुरेश को कैसे घर से बाहर खदेड़ता है।“
रमाकांत बेबस होकर बोले, “गणपत, बस मैं तुझे यही समझाना चाहता था कि मेरा सुरेश तो लाख मोल का हीरा है मगर वह तो जरा....
रमाकांत की आँखों के सामने उसके लाचार माँ बाप के मायूस चहेरे उमड़ आए। लाचार और बेबस... रमाकांत को हाथ जोड़कर घर से बाहर नहीं निकालने की विनती करते हुए। फिर से आज वही समय दोहराया था। फिर से घूमकर वहीं आया था कालचक्र।