-काला गुलाब-
-काला गुलाब-
"प्रेस वाला शाम काे कपड़े देकर गया ताे मैंने कपड़े गिनते हुए देखा माँ की सिल्क वाली साड़ियाँ भी थी उसमें। प्रेस वाले काे पैसे देकर मैंने माँ से पूछा, "माँ काेई किट्टी पार्टी या कीर्तन है क्या कल...? माँ जवाब में बस मुस्कुरा दी। माँ की ये वाली मुस्कुराहट ना सच में मेरी जान ले लेती थी। जब जब माँ ऐसे मुस्कुराती समझ लाे फिर किसी लड़के वाले काे बुलाया हाेगा संडे काे। हर संड़े यही प्राेग्राम लगा रहता, और ये महँगी वाली साड़ियाँ माँ तब ही प्रेस कराती जब उन्हें किसी किट्टी पार्टी, कीर्तन में जाना हाेता या फिर किसी लड़के वाले को आना हाेता।"
"मैं स्कूल में टीचर थी। उम्र के तीस पार कर चुकी थी। मगर अभी तक काेई लड़का नहीं मिल पाया था। कारण था मेरा साँवला रंग या यूँ कहाे की काला रंग। पर मुझे अपने साँवले रंग से कभी काेई शिकायत नहीं थी। शिकायत थी ताे लोगों के रवैये से। जिन्हें मेरे सांवले रंग के आगे मेरे गुण दिखाई नहीं देते थे। मैं अपने सांवले रंग के बावजूद भी बहुत अच्छी नाक नक्श की थी। दाे शब्दों में कहूँ ताे सुंदर थी।"
"कई साल से हर संडे लड़के वाले आते खाते पीते और जवाब घर जाकर देंगे या लड़की बहुत सांवली है कहकर निकल जाते। मुझे अब इस देखने दिखाने के प्राेग्राम से चिढ़ हाे चली थी। मगर माँ पापा का मन रखने के लिये तैयार हाे जाती थी। देखते देखते संडे भी आ गया। माँ ने वही सिल्क की साड़ी दी पहनने काे। सुना था तीन लाेग आ रहे थे लड़का लड़के के पापा और उसकी बुआ। लड़के की माँ की तबीयत ठीक नहीं थी ताे वह नहीं आ रहीं थी।"
"शाम काे समय से वाे लाेग आ गये थे। चाय नाश्ते के बाद बातचीत का दाैर शुरू हुआ। लड़के के पापा ने मुझसे मेरी पढ़ाई और जॉब के बारे में सवाल पूछे। फिर बुआ जी ने सवाल दागे। पढ़ाती ही हाे या घर के काम भी कर लेती हाे.?मैंने कहा, "जी चाय बना लेती हूँ। उन्होंने आश्चर्य से पूछा, "बस चाय..? मैंने कहा, "हाँ कभी कभी खाना भी। बुआ ने हममम कहा। बुआ सवाल पर सवाल दागे जा रहीं थी और बाकी लाेग चुप बैठे थे। बुआ जी ने पूछा सिलाई कढ़ाई कर लेती हाे?? मैंने कहा, "जी।" फिर ढिठाई से कहा, "क्या कढ़वायेंगी आप..? रूमाल या साड़ी..? मेरी बात सुन वाे चिढ़ उठीं। हद ताे उन्होंने तब कर दी जब हमसे कहा की लड़का ताे हमारा चाँद है और लड़की काली है।"
"वैसे उनका कहना भी सही था लड़का वाकई बहुत हैंडसम था। मगर, बुआ जी की बात सुन मेरा ताे पारा अब आसमान पर था। बहुत काेशिश की गुस्से पर काबू करने की, पर नहीं कर पायी। समझ गयी थी की यहाँ से बात नहीं बनने वाली ताे चुप रहकर क्या करना। मैंने बाेली, "आँटी जी चाँद की अहमियत भी ताे काले रंग से ही पता चलती है। जब रात ना हाेगी ताे आपका चाँद कहाँ चमकेगा फिर..? बुआ और चिढ़ गयी। मैंने देखा था मेरा जवाब सुन लड़का...क्या नाम बताया था माँ ने उसका...दिमाग पर जाेर डालते मैंने साेचा...हाँ याद आया... मानव.. धीरे धीरे मुस्कुरा रहा था और साथ में उसके पापा भी। और उधर माँ मुझे आँखों ही आँखों में चुप रहने का इशारा कर रहीं थी। बुआ जी अब उखड़ चुकी थी और बार बार चलने का इशारा कर रहीं थी। और सच पूछाे ताे मैं भी यही चाह रही थी की जल्द से जल्द ये लाेग यहाँ से चले जायें।"
"अभी मैं अपनी साेच में ही गुम थी की बुआ बाेली की, "चलें भैय्या। मेरे ताे जैसे मन की बात कह डाली थी उन्होंने। अंकल उठने काे हुए तभी पहली बार मानव की आवाज सुनाई दी। आंटी एक कप चाय और मिलेगी क्या..? सभी ने हैरानी से मानव की तरफ देखा। माँ कुछ कहने काे मुँह खाेलती की बुआ ने मुँह बनाकर कहा बेटा घर जा ही रहे हैं वहीं पी लेना। मानव ने बुआ की बात अनसुनी कर फिर से माँ से कहा, "आँटी चाय? माँ खुश हाेती बाेली, "हाँ हाँ क्यूँ नहीं बेटा। कहकर माँ किचन की तरफ जाते जाते मुझे भी किचन में आने का इशारा कर गयीं थी। मैं भी उठकर किचन की तरफ बढ़ चली। मेरे किचन में पहुँचने पर माँ ने पहले मुझे घूरा और फिर बाेली, "जुबां चलाने की क्या जरूरत थी..? चुप नहीं रह सकती थी। मैंने कहा, "माँ आपने देखा नहीं कैसे हमारी बेइज्जती की बुआ ने। यूंँ मुझे काली और मानव काे चाँद बताते हुए। माँ शायद उस वक्त बहुत गुस्से में थी, और मेरी ओर देखते हुए बाेली, "ताे गलत क्या कहा उन्होंने? माँ की ये बात सुन मेरे चाय छानते हाथ कुछ कांपे और चाय छलक कर इधर उधर कुछ छींटे बिखर गये। और कुछ बूंदें मेरी पलकाें पर भी छलक आयीं थी। आंटी, "चाय में चीनी थाेड़ा ज्यादा डालियेगा। मानव की आवाज सुन हम दाेनाें माँ बेटी चौंक गये। हमें पता ही नहीं चला मानव कब किचन में चला आया था।"
"मानव जाते जाते पलटा और बाेला, "आँटी चाय के साथ पकाैड़े और हाें ताे मजा आ जाये। माँ ने मुस्कुरा कर कहा, "ठीक है बेटा। मानव जाकर ड्राइंग रूम में बैठ गया। मैं हैरान थी की आखिर ये इंसान चाहता क्या है। पहले चाय की फरमाइश और अब ये पकाैड़े की फरमाइश। और माँ काे देखाे जरा कितना खुश हाे पकाैड़े की तैयारी में जुट गयी। प्याज काटते हुए मैंने बेसन घाेलती हुई माँ का चेहरा देखा। कितनी खुशी थी उनके चेहरे पर, मगर मुझे मालूम था ये खुशी थाेड़ी देर की है। ये लाेग खा पीकर जवाब के इंतजार में लटका कर हमें चले जायेंगे। जैसा की कई बार से हाेता आ रहा है। और वही हुआ भी। चाय पकाैड़े खा पीकर वाे लाेग चले गये।"
"दाे दिन बाद सुबह सब्जी काटते हुए माँ ने पापा से कहा, "सुनाे, एक बार फाेन करके जरा पूछाे मानव के घर। पापा ने न्यूज पेपर में नजरें गढ़ाये बिना माँ की ओर देखे कहा, की अगर उनकाे रिश्ता पसंद आता ताे वाे लाेग खुद ही बता देते। पापा की बात सुनकर माँ चुप हाे गयी और सब्जी लेकर किचन की ओर चली गयी। कुछ दिन यूं ही गुजर गये और उस रिश्ते वाली बात काे हम सभी भूल गये।
"एक राेज मैं स्कूल से लाैट रही थी पता नहीं किस साेच में थी कि अचानक एक तेजी से आती बाइक मुझे टक्कर मार निकल गयी। इससे पहले मेैं गिरती किसी की मजबूत बाँहाें ने मुझे थाम लिया। अभी मैं अपने आप काे संभाल पाती कि उस शख़्स ने कहा, "ध्यान कहाँ था आपका..? मैंने सिर उठाकर देखा ताे चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा। अचानक मेरे मुँह से निकला, "मानव.. मानव बाेला, "हाँ मैं मानव। मेरा बायां पैर जमीन से रगड़ खाने से छिल गया था और उसमें खून निकल आया था। मैंने पर्स से अपना रूमाल निकाल पैर पर बाँधने की असफल काेशिश की। मानव मुझे उसी हाल में छाेड़ कर चला गया, और मैं मन ही मन उसकाे काेस रही थी कि कितना अजीब इंसान है ये भी नहीं हुआ की एक रिक्शा या ऑटाे भी करा देता।"
"मैं पास ही बनी बेंच पर बैठ गयी। बेंच पर बैठ मैंने पानी की बाेतल निकाली और पीने लगी.. तभी पास में एक गाड़ी आकर रूकी...देखा मानव था। मानव बाेला,"आइये बैठिये मैं आपकाे घर ड्राप कर देता हूँ। मैंने कहा, "नहीं मैं ऑटाे से चली जाऊंगी। मानव बाेला, "कहा ना मैं छाेड़ दूंगा। मैंने कहा, "आप तकलीफ ना करें मैं ऑटाे... मेरी बात बीच में ही काट मानव बाेला बहस करने की बड़ी आदत है आपकाे..चलिये बैठिये..। मैं इस बार मना नहीं कर पायी और चुपचाप गाड़ी में बैठ गयी। मानव ने एक पाेलेथिन से आइंटमेंट कॉटन और पटटी निकाली और बाेला पैर दिखाईये। मैंने कहा, "आप मुझे दे दें मैं खुद लगा लूंगी। मानव ने झुंझलाकर कहा, "अभी आप चुप रहिये। पटटी लेकर उसने पैर पर बांधी और फिर गाड़ी स्टार्ट की। स्कूल से घर पहुँचने तक हमारे बीच काेई बात नहीं हुई। मानव ने मुझे घर पर ड्राप किया और चला गया। और मैंने पलट कर उसे शुक्रिया तक नहीं कहा।"
"मैं अंदर पहुँची ताे देखा माँ किचन में थी। शुक्र था कि माँ ने मुझे मानव की गाड़ी से उतरते नहीं देखा था...नहीं ताे पचास सवाल कर डालती। माँ ने शायद कढ़ी बनायी थी उसकी महक पूरे घर में आ रही थी। माँ ने किचन से ही कहा, "स्वप्न कढ़ी बनायी है तेरी पसंद की। जल्दी से चेंज करके आजा बेटा। मैं जाकर साेफे पर आँख बंद कर बैठ गयी। मेरी हिम्मत नहीं हाे रही थी उठने की। पैर दर्द कर रहा था।"
"माँ ने दाेबारा आवाज लगायी बेटा खाना लगा दूँ...? माँ की आवाज से मैंने आँखें खाेलीं। अभी बस उठने ही जा रही थी की किचन से माँ टॉवल से हाथ पाेछती हुई बाहर आयीं और बाेली, "तू अभी तक यहीं है चेंज नहीं किया? मैंने कहा, "हाँ माँ बस जा ही रही हूँ। माँ की नजर मेरे पैर पर पड़ी और वह घबरा कर बाेलीं, बेटा ये पैर में क्या हुआ ? मैंने कहा, कुछ नहीं माँ एक बाइक वाला टक्कर मार गया। माँ प्यार से बाेलीं, "ज्यादा दर्द हो रहा है क्या? मैनें कहा, "हम्म बस थाेड़ा सा। मैं उठी और चेंज करने चली गयी।"
"वापस आयी ताे देखा माँ खाना लगा चुकी थी। हम बस खाना शुरू ही करने वाले थे की कॉल बेल बजी। मैं उठकर देखने वाली थी की माँ ने मना कर दिया तू बैठ मैं देखती हूँ। माँ ने दरवाजा खाेला ताे सामने मानव खड़ा था। मानव काे सामने देख कर जितनी हैरानी माँ काे थी उतनी ही मुझे भी। मानव ने माँ काे नमस्ते आँटी कहा और फिर बाेला, "आँटी ये स्वप्न जी का मोबाइल गाड़ी में ही रह गया था। माँ ने मुझे ऐसी नजराें से देखा जैसे मेरी काेई चाेरी पकड़ी गयी हाे। खैर माेबाइल देकर मानव चला गया पर जाने से पहले उसने माँ के कान में कुछ कहा था जाे मैं सुन नहीं पायी थी।"
"खाना खाते हुए माँ ने पूछा, "तेरा माेबाइल मानव की गाड़ी में कैसे? मैंने माँ से नजरें मिलाये बिना कहा की वाे बाइक वाला टक्कर मार कर गया था ताे मानव ने ही मुझे गिरने से बचाया और उसी ने पैर पर ये पट्टी भी बाँधी। माँ ने कुछ नहीं कहा बस हल्की सी मुस्कान उनके चेहरे पर तैर गयी। मैं समझ गयी थी की माँ मुझे और मानव काे लेकर कुछ बुनने लगी हैं जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। अगले दिन मैं स्कूल से लाैटी ताे अंदर से माँ की किसी के साथ हँसनें बातें करने की आवाजें आ रहीं थी। मुझे हैरानी थी की इस वक्त काैंन आया हाेगा.? और घर के बाहर से ही कढ़ी की महक आ रही थी। मैं मन ही मन गुस्सा हुई माँ भी ना... माना के कढ़ी पसंद है मुझे उसका मतलब ये ताे नहीं की राेज कढ़ी ही बनायें।"
"मैं अंदर पहुँची ताे देखा मानव साेफे पर बैठा चटखारे लेकर कढ़ी खा रहा था। माँ मुझे देख बाेली जा बेटा जल्दी से चेंज कर के आजा। कढ़ी के साथ आज नान भी हैं। मानव बाेला, "हाँ स्वप्न जी जल्दी आ जाइये कढ़ी बहुत टेस्टी बनी है। उसकी बात सुन एक पल काे मुझे लगा मेहमान मानव नहीं मैं हूँ। अब मानव लंच टाइम में हमारे यहाँ किसी ना किसी बहाने आ जाता और माँ से खूब बातें करता। प्यार से वो माँ को गर्ल फ्रेंड बोलने लगा था।
"मैं बचती थी मानव से बातें करने से जबकि वह बहाने ढ़ूंढता था। मैं जानती थी की मेरा और मानव का काेई मेल नहीं इसलिए मानव से दूरी ही बनाये रखती। एक राेज मैं अपने कमरे में खिड़की के पास खड़ी चाँद काे निहार रही थी की दिल कह उठा, हाँ.. बिल्कुल ऐसा ही ताे दिखता है मानव,चाँद सा और मैं... बिल्कुल इस स्याह रात के जैसी काली। जाने क्यूँ पर कहीं ना कहीं मन चाहता था वह चाँद मेरा हाे जाये। अब मुझे सपनाें में भी मानव का चेहरा दिखने लगा था, जाे की सही नहीं था। मुझे अपने आप से डर लगने लगा था।"
"एक राेज माँ घर पर नहीं थी बाजार गयी हुई मैं लॉबी में कुर्सी पर बैठी काेई नॉवल पढ़ रही थी कि मानव आ गया। मानव बाेला, "अरे वाह बहुत बढ़िया नॉवल है ये। लास्ट में लड़के काे जॉब मिल जाती है और लड़की के घरवाले मान जाते हैं। मैंने गुस्से से नॉवल एक तरफ रख दिया। मानव बाेला, "अरे रख क्यूँ दिया पढ़िये आप। मैंने कहा,"स्टाेरी ताे बता दी आपने अब क्या करूँगी पढ़कर।"
"मैंने फिर मानव की तरफ देखते हुए कहा, लड़की पसंद आयी काेई ? मानव बाेला हाँ, "अगले हफ्ते प्रपाेज करने वाला हूँ उसे। मैंने कहा, "घरवाले मिले हैं उससे? मानव बाेला, "नहीं, वैसे जाे मुझे पसंद वही उनकी पसंद। मानव किसी काे प्रपाेज करने वाला है ये बात सुन मुझे बुरा नहीं लगना चाहिये था मगर, मुझे बुरा लग रहा था पता नहीं क्यूँ।"
"चार पाँच दिन मानव नहीं आया। शनिवार की शाम मैं ड्राइंग रूम में बैठ कॉपियाँ चेक कर रही थी और माँ काेई पत्रिका पढ़ने में मशगूल थी। तभी घंटी बजी माँ ने दरवाजा खाेला ताे मानव खड़ा था। उसने कहा, "आँटी कल मेरी जन्मदिन की पार्टी है और आप सभी को आना है आपके बिना पार्टी नहीं हाेगी फिर मेरी ओर देखते हुए बाेला और आप जरूर आइयेगा। अगले दिन माँ बाेली चल बेटा तैयार हो जा। मैंने कहा, "नहीं आप लाेग चले जाइये मेरा मन नहीं है। माँ ने कहा, "फिर मैं भी जाकर क्या करूंगी? माँ के लिये मुझे जाना ही पडा़।"
"माँ, पापा और मैं तैयार हो कर करीब साढ़े सात बजे हाेटल पहुँचे। मानव ने अपने दोस्तों और रिश्तेदाराें से हमारा परिचय कराया। पार्टी अरेंजमेंट बहुत अच्छा था। मैं इधर उधर देख रही थी तभी बुआ दिखाई दे गयी उनकाे देखते ही मन खराब हाे गया। वाे मेरे और माँ के पास आयीं और फिर मुझसे किसी बात पर उलझ पड़ी और कहा, "अच्छा हुआ मानव का रिश्ता तुमसे नहीं हुआ। देखना मानव ने बहुत सुंदर लड़की पसंद की है बिल्कुल गुलाब सी। आज प्रपाेज करने वाला है। माँ भी बाेल पड़ी मेरी बेटी भी गुलाब से कम नहीं। ताे बुआ ने घृणा से कहा, "हाँ काला गुलाब। माँ बाेली की क्या हुआ जाे काला गुलाब है। है ताे गुलाब ही ना..। बुआ आगे कुछ और कहती की मानव आ गया। शायद मानव ने हमारी बातें सुन ली थी। मानव बाेला, "बुआ आपकाे माँ बुला रही है।"
"सच कहूँ ताे अब इस पार्टी से मेरा और माँ का मन उखड़ चुका था। हम बस केक कटने का इंतजार कर रहे थे। मानव ने केक काटा फिर पापा जा कर मानव काे बाेल आये की हम जा रहे हैं बहुत लेट हाे गया है। हम सब जाने काे पलटे ही थे कि मानव दाैड़ कर आया और माँ के सामने घुटनाें के बल बैठ गया प्रपाेज करने के स्टाइल में। सभी बहुत हैरान हुए आखिर ये लड़का कर क्या रहा है? मैं और पापा भी समझ नहीं पा रहे थे कि ये करने क्या वाला है।"
"हॉल में बिल्कुल सन्नाटा छा गया। म्यूजिक बंद कराया जा चुका था। सब मानव की तरफ देख रहे थे। तभी मानव ने सीधा हाथ माँ की तरफ बढ़ाते हुए कहा, गर्ल फ्रेंड, "क्या आप...मानव इतना कह थोड़ी देर चुप रहा तो सबकी साँसे अटक गई।"
मानव ने फिर कहा, " गर्ल फ्रेंड, क्या आप मेरी मदर-इन-लॉ बनेंगी..? क्या आप मुझे अपना दामाद बनाना पसंद करेगी..? फिर मेरी ओर देखते हुए कहा, "क्या आप अपना काला गुलाब मुझे देंगी ?? इतना सुनना था की मेरी, माँ और पापा की आँखें खुशी से भर आयी। माँ ने मानव का माथा चूमा और कसके उसे गले लगा लिया। हॉल तालियाें की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। और म्यूजिक फिर से शुरू हाे चुका था शायद पहले से भी कहीं तेज आवाज में....

