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Swapan Priya Parwaaz

Others

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Swapan Priya Parwaaz

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-ज़िंदगी-

-ज़िंदगी-

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"ये हँसना, खिलखिलाना और चलते जाना ज़िंदगी के साथ ताल से ताल मिलाते हुए... बस यही तो है ना ज़िंदगी...शायद..."

"कभी सोचती हूँ तो लगता है कितनी तेज रफ़्तार है ज़िंदगी। कितना कुछ पीछे छूट जाता है पर...पलट कर ना ये देखती है ना रुकती है। बस चलती रहती है अपनी धुन में। तो कभी लगता है कि सदियों से ठहरी हुई है वहीं। सच कहूँ...तो बहुत जिद्दी लगती है ये ज़िंदगी...जैसे कहती है साथ चलना है तो चलो "मैं रुकूँगी नहीं...किसी के लिए भी।"

"ज़िंदगी के साथ चलते ताल मिलाते मैं भी हो चली हूँ कुछ कुछ ज़िंदगी सी जिद्दी और बेपरवाह। कहाँ सुनती हूँ मैं भी किसी की, कोई रुठे तो रुठ जाये। मुझे आया नहीं कभी किसी को मना लेना या ठहर जाना उसके लिए।"

"पर नींद की थपकियों के बीच अक्सर टूटने लगती है ये जिद्द..जब झाँकती हैं दाे आँखें मेरी आँखों में...और कहती हैं कुछ यूँ..." 

"दिल काे ज़िस्म से जुदा हुए

एक मुद्दत हुई

लौट आ ऐ धड़कन मेरी

कि अब शाम हुई..."



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