Shishira Pathak

Drama

5.0  

Shishira Pathak

Drama

काहे को दुनिया बनाई

काहे को दुनिया बनाई

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झुक चुकी कमर पर एक साड़ी लपेट कर वो बूढ़ी सवेरे- सवेरे ट्रेन की बॉगी में आ गई।"गरमा-गरम समोसे...गरमा-गरम" सब पीछे मुड़े तो पाया कि मोतियाबिंद ग्रसित बिना भाव वाली सूरत पर किसी तरह से हँसी चिपका कर वो एक हाथ मे 2-4 सिक्के लिए सबसे भीख मांग रही थी। एक आदमी बोला" समोसे के नाम पर तू भीख मांग रही है,पूरी उम्र बीत गई पर शर्म नहीं आती तुझे"। बुढ़िया ने उसकी ओर बस देखा और आगे बढ़ गयी।वह आदमी थोड़ा बदतमीज़ था,उसने बुढ़िया का हाथ पकड़ा और झल्ला कर कहा,"अभी निकल यहाँ से,सवेरे की ट्रेन है ,नाश्ते का मूड था,तूने सब बिगाड़ दिया,चल निकल"। ये बोल कर उसने धक्का दे दिया और बूढ़ी गिर गई और कुछ सिक्के जो उसे मिले थे वह बिखर गए। बूढ़ी रो पड़ी,शायद बहुत दिनो से नहीं रोई थी और रोते हुए कांपते शब्दों में बोली,"दो दिन से 2 बिस्कूट खाई हूँ,तेज भूख लगी थी तो भीख मांगने आ गई,हाँ आजकल कुछ बेशर्म सी हो गई हूँ।मेरा बेटा मुझे कल ही अपने नए बंगले में जाएगा न तब ठीक हो जाऊंगी हाँ..,अभी-अभी शादी हुई है उसकी,मेरी बहु बहुत सुंदर ह,अफसर को जना है मैंने क्या समझते हो"।रोते हुए बेचारी गिरे सिक्को को ढूंढने लगी। इतने में उस आदमी की पत्नी के गोद मे उसका बेटा रो पड़ा। बूढ़ी ने सिक्के समेट लिए और एक झलक बच्चे की ओर देखा और दूसरी झलक उस आदमी की ओर,अपना सिर ऊपर-नीचे हिलाते हुए बोली,"गरमा-गरम समोसे,गर्मा-गरम"इतना बोलते हुए बूढ़ी की आखों से आंसू निकल रहे थे,वो रो भी रही थी और हँस भी रही थी।


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