ज्योति
ज्योति


यह मेरे बचपन की कुछ यादें हैं । तब मैं चौथी कक्षा में पढ़ती थी । हम कुछ चार सहेलियाँ रिक्शा से स्कूल आना और जाना करती थी । तब अभी जैसा ओटो रिक्शा, बस ,कूछ ऐसे साधन नहीं थे।तब सड़कों पर रिक्सा बहुत चला करते थे । घर से विद्यालय काफी दूर था । अगर एक आध दिन रिक्शावाला, अरे मैं तो उसका नाम ही बताना भूल गई। उसे सब ज्योति बुलाते थे । ज्योति जिस दिन नहीं आता, तो कोई हमें पहुँचा देता या फिर उस दिन हम घर पर ही रहते यानी कि हम अनुपस्थित हो जाते।
दूसरे दिन जब ज्योति आता, माँ के हज़ारों सवालों के सामने वह घुटने टेक देता और कहता अगली बार ऐसा नहीं करूंगा । अपने हक के पैसे यानी अपने महीने भर की कमाई लेने ठीक समय पर पहुँच जाता । और क्यू न आता, इतनी मेहनत जो करता था। हमें रोज स्कूल इतनी दूर पहुँचाना और लाना करता । इसके लिए उस मिलते थे सिर्फ पंद्रह रूपये ।
हम चार सहेलियों में से एक थी बड़े घर की बेटी । उसके पिता उस जमाने में नेता हुआ करते थे । ऐशो-आराम थे ,नौकर चाकर सब थे। परन्तु मुझे कभी यह समझ नहीं आया, जब भी ज्योति अपने हक के पैसे मांगने जाता उसे हर बार मुँह की खानी पड़ती ।
" बाबूजी आज महीना पूरा हो गया, मुझे पैसे दे दीजिए "।
" किस बात के पैसे, किस मुँह से तुम पैसे मांगते हो। चले जाओ वरना......।" हर महीने ऐसा ही होता । ज्योती पैसे माँगता और बदले में उसे ढेर सारी गालियाँ मिलती । उसने तो अपने हक के पैसे, अपनी मेहनत के पैसे मांगे थे।। यहाँ तक की एक दिन उसके बाबू ने तो उस पर हाथ उठाया और कस कर एक तमाचा लगाया और कहाँ, " खबरदार जो तूने पैसे मांगे । चुपचाप स्कूल लाना ले जाना करो वरना ठीक नहीं होगा "।
बेचारा ज्योती, उसकी हालत ऐसी थी जैसे साँप के मुँह में छछुंदर, न उसे निगलते बन रहा था ना उगलते । डर से उसने पैसे मांगना भी बंद कर दिये । एक दिन हमने अपनी सहेली से कहा कि वह अपने बाबूजी को समझाये और उसके पैसे दिला दे। परन्तु उसमें इतनी हिम्मत कहाँ की वह अपने बाबूजी से बात करें । फिर उसने अपनी माँ से कहाकि वह बाबूजी से कहें और उसके पैसे दिला दे। पर कुछ न हो पाया । न ज्योति को पैसे मिले न कुछ । कई महीने बीत गए पर उसे पैसे नहीं मिले। उसने डर से अब मांगना भी बंद कर दिया । अब वह छुट्टी भी ज्यादा लेने लगा।
समय बीतता गया । मैं चौथी से पाँचवी कक्षा में चली गई । ज्योति अब भ
ी हमें स्कूल ले जाता । उसे फिर कभी मैने मेरी सहेली के बाबूजी से पैसे मांगते नहीं देखा । उसे सिर्फ तीन सवारी के ही पैसे मिलते । हमें क्यू ऐसा लगा कि वह थोड़ा थक सा गया था । वह बीच बीच में खाँसता था। वह कभी-कभी रिक्शा चलाते चलाते रूक जाता था । कभी-कभी हमें स्कूल पहुँचने में देर हो जाती थी और फिर हमें प्रधान अध्यापिका को अपने देर से आने की वजह बतानी पड़ती ।
समय बीतता गया। एक दिन हम सब सहेलियाँ स्कूल के बाहर ज्योति के आने का इन्तजार कर रहीं थीं । अधिकांश बच्चे चले गए थे । सिर्फ कुछ बचे हुए थे । तभी हमें लेने ज्योति आया । हमें तो उसके देर आने की आदत हो गई थी । उसे देख आज हमें कुछ अच्छा नही लगा । हमें लगा की आज वह नशा कर के आया है । वह हमें लगातार अपने देर से आने की वज़ह बता रहा था । हमें लगा की उसे तो एसे भी कम पैसे मिलते थे तो उसे यह आदत कहाँ से लगी। हमने घर पहुँच कर अपने बाबूजी से यह बात बताई । उन्होंने उसे दुसरे दिन फटकार लगाई और कहाँ " आगे से ऐसा हुआ तो ठीक नहीं होगा "। इसपर ज्योति ने आगे से ऐसा ना करने की कसम खाई और माफ़ी मांगी । परन्तु कुछ दिनों बाद वह फिर नशा कर के आया । इस बार हम सभी के घरवालो ने उसे पैसे देकर उसकी छुट्टी कर दी । अब हम दुसरे रिक्शा में जाने लगे।
एक दिन जब हम दूसरे रिक्शा से घर आ रहें थे , तब हमने अपनी सहेली के घर के बाहर भीड़ और बहुत आवाजें सुनाई पड़ी। हम वहाँ देखने के लिए रूके की माजरा क्या है ।हमने देखा ज्योति पूरे नशे में मेरी सहेली के बाबूजी से अपना पैसा माँग रहा था । तभी सहेली के बाबूजी हाथ में एक बेल्ट लेकर आये । आँव देखा ना ताँव बह ज्योती पर बरस पड़े। उसे मारा भी और खरी खोटी भी सुनाईं । मैंने सोचा सिर्फ अपने पैसों के लिए उसे यह सहना पड़ रहा है । बेल्ट की मार से वह नीचे गिर गया कयोंकि वह नशे में भी था । किसी ने उसके घरवालो को ख़बर की और वे दौड़े दौड़े आयें और उसे वहाँ से उठाकर ले गए । सब कुछ शांत हो गया । मुझे बहुत बुरा लगा । ज्योति ने तो सिर्फ अपने पैसे मांगे थे न की हीरे मोती , फिर उसके साथ ये सलुक क्यो । यह सोच कर मैं रात भर सो नहीं पाईं । बार-बार ज्योति का चेहरा मेरे सामने आता । उस दिन के बाद हमने कभी उसे नहीं देखा ।अपने ही पैसों के लिए उसे यह सब सहना पड़ेगा उसने कभी नहीं सोचा होगा । गरीबी क्या होती है यह मैं कुछ कुछ समझने लगी थी ।