हमारे शिक्षक और हमारा जीवन
हमारे शिक्षक और हमारा जीवन
हमारे जीवन में शिक्षक का बहुत महत्व होता है। आज हम जो भी है यह उनकी ही तो देन है। उन्होंने हमें ऐसी शिक्षा दी और हमें इतना क़ाबिल बनाया की आज हम अपने पैरों पर खड़े है। उनके बगैर हम कैसे रहते यह सोच ही नहीं सकते।
मुझे एक प्रसंग अपने स्कूल की याद है, वह मैं आप सभी के साथ यहाँ बाँटना चाहती हूँ।
तब मैं सातवीं कक्षा में थी। मुझे सारे विषय अच्छे लगते थे सिर्फ हिंदी छोड़ कर। मुझे तनिक भी इस विषय से लगाव नहीं था। मुझे किसी तरह इस मे पास नम्बर मिल जाते थे।
हमारी परीक्षाएं चल रही थी और दुसरे दिन हिंदी की परीक्षा थी। मैंने बार बार सब कुछ पाठ किया था। जब प्रश्न पुस्तिका सामने आई, मैंने लिखना शुरू किया और जैसे तैसे दो घंटे में खत्म किया। मुझे खुशी इस बात की थी कि मैंने सभी प्रश्नों के उत्तर दिए थे। अब उत्सुकता थी की मैंने जो लिखा था वो ठीक था या नहीं और मुझे कितने नम्बर मिलेंगे। आखिर वो घड़ी आ ही गई। हमारी शिक्षिका ने हमारी उत्तर पुस्तिका हमें देने लाईं थी। हमारी शिक्षिका का नाम मेघा बनर्जी था। वह बहुत अच्छी थी। उनहोंने एक एक कर नाम पुकारा और उनकी उत्तर पुस्तिका दी।
अब उनहोंने मेरा नाम पुकारा। मेरी तो धड़कन तेज़ हो गई। उनहोंने मुझे से पुछा कि तुम्हारी हिंदी टीचर का क्या नाम है बताओ। मैंने डरते डरते कहा 'मेघा बनर्जी'। उनहोंने कहा पर तुमने तो मेरा नाम 'मेघा वानरजी 'लिखा है। सारी कक्षा की लड़कियां हंसने लगीं। टीचर जी ने कहा आज से मैं वानर हो गई। फिर उन्होंने तुरंत कहा कोई बात नहीं गलतियाँ सब से होती है और कक्षा को शांत होने को कहा। मैं अंदर ही अंदर शर्म से मरी जा रही थी। पर टीचर इतनी अच्छी थी, उनहोंने मुझे समझाया कि कहाँ गलती हुई थी और उसके बाद उन्होंने मेरी हिंदी सुधारने का बेड़ा उठाया और मुझ में हिंदी के प्रति दिलचस्पी जगाई। बस फिर क्या था मैंने भी जान लगाकर मेहनत की और मेरी हिंदी बहुत सुधर गई। अब मुझे अच्छे नम्बर भी मिलने लगे। और अब मैं हिंदी में कविताएं और कहानियां भी लिखती हूँ।
उस शिक्षिका को मेरा प्रणाम जिनकी क्षत्र छाया में रहकर आज मैंने यह मुकाम हासिल किया है।