जरुरत

जरुरत

2 mins
352


आटो से जैसे ही चित्रा अपना सूटकेस लेकर उतरी। घर के भीतर से कोई भी उसके स्वागत को आगे बढ़कर नही आया, ये वही घर है जहाँ वो नाजों पली। हर ख्वाईश मुँह से निकलने से पहिले पूरी हुई। चित्रा के अंदर आते ही, भाभी अपने कमरे मे चली गई, पापा अखबार के पन्ने पलटने लगे। माँ सामने आई और सीधा प्रश्न किया- "अकेले आई हो" न चाय, न पानी कुछ न पुछा। 25साल जिस घर मे बीते, वहाँ आज आँखों की किरकिरी हो गई वो।

"हाँ, मै वो नरक छोड़ कर आ रही हूँ हमेशा के लिये"मैने जोर से कहा। सब लोग चौंक गये , भाभी अपने कमरे से निकल आईं। पापा ने अपनी कानो की मशीन को अपनी उंगली से दबाया। जैसे कनफ़र्म कर रहें हों, उन्होने जो सुना वो सही सुना न। "क्या कह रही है तू, लड़ाई झगड़ा किस घर मे नही होता। पति है तेरा। गुस्से मे थोड़ा तेज है। धीरज और प्रेम से काम लेती। पांच साल हो तेरे ब्याह को , उस घर को एक खिलौना देती।

पर नही , ---झुक जाती तो ----"हर बार की तरह माँ ने रोना शुरु कर दिया "पांच सालों से सहन ही तो कर रही थी।

कितना अपमान सहती। कितनी मार खाती उन पिशाचों से। कितना कहा मैने आप लोगो से। आप सबने मुझे समाज का, छोटी बहिन की शादी का डर दिखाया। बहुत हुआ माँ, किसी पर बोझ नहीं बनूँगी। पुरानी नौकरी जौइन कर लूंगी। " माँ ने अबकी बार अपने पास बिठाया, अपने आँसू पोछे, जीवन दर्शन समझाते हुए बोली--औरत को झुकना ही पड़ता है।

तू कोई पहिली औरत तो है नहीं, जो पति की मार खाती हो। समय सब ठीक कर देता है"थोड़ा रुककर धीरे से आगे बोली--तेरे सामने पूरी जिन्दगी पड़ी है, उमर ही क्या है तेरी, क्या कभी तुझे आदमी की जरुरत नहीं होगी" "ऐसे जानवर आदमी की तो कभी जरुरत नही होगी। "दृढ जवाब दिया चित्रा ने।

आखिर चित्रा ने वो घर छोड़ दिया। जहाँ वो रोज अपमानित होती रही।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama