जो करे सो करतार
जो करे सो करतार
कभी कभी कुछ बातें ऐसी होती हैं जो मानस पटल पर छा जाती हैं। जो घटना मैं बताने जा रही हूँ वो शायद आज के युग के हिसाब से समझदारी की बात नहीं थी।न ही मेरा मकसद अपनी इस बेवकूफी / बहादुरी का बखान करना है।न किसी अकेली औरत के लिए ये प्रेरणा स्रोत है। हर रोज होने वाली घटनाओं के कारण आप इसे मेरी बेवकूफी कह सकते हैं।कहते हैं न अंत भला सो सब भला। आज भी हमारे समाज में अच्छाई जिंदा है।
पता नहीं क्यों उस रात दो लड़कों को देख मेरी कार की स्पीड धीमी ही रही। मन बार- बार मुझे उन बच्चों से बात करने को कह रहा था। अकेली थी और 11बजे के आसपास का समय था। उस रात किसी शादी से घर लौट रही थी। देर हो गई थी पर सड़क चल रही थी। लोग आते जाते दिखाई दे रहे थे। घर शादी की जगह से इतना दूर नहीं था।
जीरकपुर से जैसे ही ट्रिब्यून चौक पहुँची तो सिग्नल लाल हो गया, रुकना पड़ा। मेरे से आगे एक बस रूकी उसी बस से वे लड़के पीठ पर एक - एक पिट्ठू बैग लिए उतरे थे। लड़के 20 -22 साल के होंगे।देखा कि वे लेफ्ट में मुड़ गए हैं। सिग्नल बड़ा था , पता नहीं क्यों मेरी नजर उन पर थी। चौक के बिल्कुल पास गुरुद्वारा है , बच्चे गुरुद्वारे पर गए शायद बंद होने पर वापस मुड़ गए। फिर वही खड़े ऑटो से उन्होंने कुछ पूछा और दोबारा उन्होंने एक टैक्सी को भी रोक कर के पूछा तब तक मैं उस जगह पहुँच गई थी जहाँ वे खड़े थे।
पता नहीं रात थी पर मन के किसी कोने में से लगा जैसे मेरा बच्चा खड़ा हो। मैंने गाड़ी रोकी पूछा कहाँ जाना है ? लड़के एकदम से दो कदम पीछे हट गए। हालांकि अच्छे लंबे ऊंचे लड़के थे फिर भी मैंने दोबारा से शीशा पूरा नीचे किया और कहा बेटा आपने न टैक्सी ली न ऑटो। क्या बात है ? तुम्हें कहाँ जाना है ? लड़के मेरी गाड़ी के पास आ गए बोले- 43 के अड्डे जाना है पर पैसे बड़े माँग रहे हैं सो पैदल ही चल पड़े हैं। यहाँ से कितनी दूर है ? मैने कहा मैं उस तरफ ही जा रही हूँ कुछ रास्ता कम हो जाएगा।
पहले तो वे झिझके पर फिर गाड़ी में बैठ गए। उसके बाद तो बिना साँस रोके बातें करते गए। आँटी रात काटनी हैं। पैसे इतने नहीं है कि किसी होटल में ठहर सकें। पंजाब के किसी गांव से चंडीगढ़ में पुलिस विभाग भर्ती के लिए आए थे। सारे टेस्ट हो गए पर लंबी रेस कल होनी है। उसके बाद जो उनसे बातें शुरू हुई तो दोनों अपने दिल खोलते चले गए। 43 के बस स्टैंड पर रात काट सुबह का टैस्ट दे गाँव लौट जाएँगें। मैंने उनसे कहा अगर बुरा ना मानो तो मेरे घर एक रात रुक जाओ। मेरे बेटे तुम्हारी उम्र के हैं, सुबह तुम खा पीकर चले जाना। लेकिन, शायद मैंने तो विश्वास कर लिया पर वह मुझ मुझ पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। मैंने कहा ठीक है चलो मैं तुम्हें बस स्टैंड छोड़ देती हूँ। कम से कम तुम्हारे पैसे बच जाएँगे और वहाँ से सुबह तुम अपना टैस्ट देने के लिए बस से निकल जाना।
दोनों बहुत खुश हो गए। मेरा घर बस स्टैंड से थोड़ी दूरी पर था। मैंने उन दोनों को सैक्टर 43 के बस स्टैंड पर छोड़ा। दोनों खुश थे उनकी आंखों में खुशी थी। एक ने कहा- दिन माँ की बनाई परोंठियों व लस्सी से कट गया रात आप ने यहाँ पहुँचा दिया। बाबा जी ने मेहर कित्ती, असी जरूर कामयाब हो जावाँगे। मैंने कहा- बेटा जरूर ! मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती। उन्होंने मेरी पैर छुए और कार से नीचे उतर गए। उनको बस स्टैंड के अंदर जाता हुआ मैं देखती रही। भूल गई कि उनसे फोन नंबर तो ले लेती कि पता लग जाता कि कल का रिजल्ट क्या रहा ?
अब तो मैं कुछ कर नहीं सकती थी मैंने भगवान से दुआ कि इन बच्चों को अपने मकसद में कामयाबी दे। मुझे नहीं पता कि अगले दिन बच्चों का क्या रिजल्ट रहा लेकिन जो मुझसे बन पाया मैंने कर दिया। वैसे मेैं भगवान पर विश्वास रखती हूँ। भगवान ने जो किया होगा अच्छा ही किया होगा। बस मन में एक इच्छा है कि कभी जिंदगी में वे दौबारा मिल जाएँ वो भी पुलिस की वर्दी में।
