STORYMIRROR

Bhushan Kumar

Classics Inspirational

4  

Bhushan Kumar

Classics Inspirational

ज्ञान वाणी

ज्ञान वाणी

3 mins
237

एक बार एक राजा अपने सहचरों के साथ शिकार खेलने जंगल में गया था। वहाँ शिकार के चक्कर में एक दूसरे से बिछड़ गये और एक दूसरे को खोजते हुये राजा एक नेत्रहीन संत की कुटिया में पहुँच कर अपने बिछड़े हुये साथियों के बारे में पूछा।

नेत्र हीन संत ने कहा महाराज सबसे पहले आपके सिपाही गये हैं, बाद में आपके मंत्री गये, अब आप स्वयं पधारे हैं। इसी रास्ते से आप आगे जायें तो मुलाकात हो जायगी। संत के बताये हुये रास्ते में राजा ने घोड़ा दौड़ाया और जल्दी ही अपने सहयोगियों से जा मिला और नेत्रहीन संत के कथनानुसार ही एक दूसरे से आगे पीछे पहुंचे थे।

यह बात राजा के दिमाग में घर कर गयी कि नेत्रहीन संत को कैसे पता चला कि कौन किस ओहदे वाला जा रहा है। लौटते समय राजा अपने अनुचरों को साथ लेकर संत की कुटिया में पहुंच कर संत से प्रश्न किया कि आप नेत्रविहीन होते हुये कैसे जान गये कि कौन जा रहा है, कौन आ रहा है ?

राजा की बात सुन कर नेत्रहीन संत ने कहा महाराज आदमी की हैसियत का ज्ञान नेत्रों से नहीं उसकी बातचीत से होती है। सबसे पहले जब आपके सिपाही मेरे पास से गुजरे तब उन्होंने मुझसे पूछा कि ऐ अंधे इधर से किसी के जाते हुये की आहट सुनाई दी क्या ? तो मैं समझ गया कि यह संस्कार विहीन व्यक्ति छोटी पदवी वाले सिपाही ही हैं।

जब आपके मंत्री जी आये तब उन्होंने पूछा बाबा जी इधर से किसी को जाते हुये... तो मैं समझ गया कि यह किसी उच्च ओहदे वाला है, क्योंकि बिना संस्कारित व्यक्ति किसी बड़े पद पर आसीन नहीं होता। इसलिये मैंने आपसे कहा कि सिपाहियों के पीछे मंत्री जी गये हैं।

जब आप स्वयं आये तो आपने कहा सूरदास जी महाराज आपको इधर से निकल कर जाने वालों की आहट तो नहीं मिली तो मैं समझ गया कि आप राजा ही हो सकते हैं। क्योंकि आपकी वाणी में आदर सूचक शब्दों का समावेश था और दूसरे का आदर वही कर सकता है जिसे दूसरों से आदर प्राप्त होता है। क्योंकि जिसे कभी कोई चीज नहीं मिलती तो वह उस वस्तु के गुणों को कैसे जान सकता है!

दूसरी बात यह संसार एक वृक्ष स्वरूप है- जैसे वृक्ष में डालियाँ तो बहुत होती हैं पर जिस डाली में ज्यादा फल लगते हैं वही झुकती है। इसी अनुभव के आधार में मैं नेत्रहीन होते हुये भी सिपाहियों, मंत्री और आपके पद का पता बताया अगर गलती हुई हो महाराज तो क्षमा करें।

राजा संत के अनुभव से प्रसन्न हो कर संत की जीवन वृत्ति का प्रबंन्ध राजकोष से करने का मंत्री जी को आदेशित कर वापस राजमहल आया।

शिक्षा:-

संत कबीर जी ने लिखा है -

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं, कि प्रत्येक मनुष्य को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो श्रोता (सुनने वाले) के मन को आनंदित (अच्छी लगे) करें। ऐसी भाषा सुनने वालो को तो सुख का अनुभव कराती ही है, इसके साथ स्वयं का मन भी आनंद का अनुभव करता है। ऐसी ही मीठी वाणी के उपयोग से हम किसी भी व्यक्ति को उसके प्रति हमारे प्यार और आदर का एहसास करा सकते हैं।

आजकल हमारा मध्यमवर्ग परिवार संस्कार विहीन होता जा रहा है। थोड़ा सा पद, पैसा व प्रतिष्ठा पाते ही दूसरे की उपेक्षा करते हैं, जो उचित नहीं है। मधुर भाषा बोलने में किसी प्रकार का आर्थिक नुकसान नहीं होता है। अतः मीठा बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिये..!


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Classics